डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"धर्म और अधर्म"


      (चौपाई)


धर्म नाम अति पुण्य काम है।
कष्ट निवारक सुखद धाम है।।
निर्मल भाव प्रभाव धर्म है।
स्वार्थमुक्त निःस्वार्थ मर्म है।।
परहित दॄष्टि जहाँ रमती है।
धर्म सुसंस्कृति तहँ टिकती है।।
लोक कल्पना हो यदि सुन्दर।
वहीं दीखता धर्म समन्दर।।
सात्विक स्नेह जहाँ बसता है।
वहीं धर्म विचरण करता है।।
जहाँ त्यागमय मनोवृत्ति है।
वहीं धर्म की शिव सत कृति है।।
जो हैं दिल से धर्मपरायण।
उनके अंतस में नारायण।।
पारदर्शिता भाव धर्म है।
पूर्वाग्रह निश्चित अधर्म है।।
जिसके मन में स्वार्थ भरा है।
वही अधर्मी पाप घड़ा है।।
अहितवाद का जो परिचायक।
वही पाप वृत्ति का गायक।।
परद्रोही जो अनायास है।
अति अधर्म नित सहज पास है।।
ईर्ष्या-द्वेष अधर्म कराते।
भव कूपों में सदा गिराते। 
धर्म और सत्कर्म समाना।
रहते वही सन्त भगवाना।।
जहाँ अधर्मी वहीं असुर हैं।
महा भयानक महिषासुर है।।
धर्म पंथ सात्विक सोपाना।
क्रूर अधर्म पंथ वीराना।।
धर्म नगर नित हरा-भरा है।
हरित क्रान्तिमय सकल धरा हैं।।
दूषित वातावरण अधर्मी।
शुचि भावों का सिन्धु सुधर्मी।।
जहाँ कपट तहँ विकट अधर्मा।
पावन भाव विशाल सुधर्मा। 
बाहर भीतर जहाँ राम हैं।
वहीं धर्म का शुभग ग्राम है।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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