"श्री सरस्वती माँ संगीता"
(चौपाई)
तुम साहित्य कला संगीता।
व्यास बनी लिखती नित गीता।।
निष्कामी योगिनी यमादिक।
योग प्रणेता शिव नियमादिक।।
तुम साहित्य मधुर भाषा हो।
जग की अति विनम्र आशा हो।।
कलाकार प्रिय कला रचयिता।
मनोहारिणी स्वरा दिव्यता।।
अति सरला शुभ ज्ञान समन्दर।
प्रेमामृत रसज्ञान धुरन्धर।।
सदा समुन्नत भाव लोक हो।
रचती दिव्यमान श्लोक हो।।
परम प्रसन्न मुखर मधु वक्ता।
प्रमुदित सहज सुबोध प्रवक्ता।।
आदरणीया नित प्रियतम हो।
मधुर रागिनी शिव लय नम हो।।
सदा सुहागिनि विद्या सबला।
नित्य सुशोभित सर्वा सुफला।।
सत्यधाम प्रिय राम नाम हो।
सीता -राधामयी ग्राम हो।।
कष्टमुक्त कर हे प्रिय माता।
पुत्रमोह बन हे सुखदाता।।
हंस चढ़ी जल्दी अब आओ।
कोरोना को दूर भगाओ।।
सहज मंत्रमय पुस्तक बन जा।
सभी राक्षसों का वध कर जा।।
दोहा--दुर्गा बनकर आइये, कर राक्षस संहार।
वीणापाणी माँ करो, जग में शुभ उजियार।।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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