"सदा धैर्य को मित्र बनाओ"
(वीर छंद)
जीवन में विपदा चहुँओर,बहुत कठिन है राह गुजरना.,
फैला चौतरफा अँधियार, राह दिखाई नहीं देत है.,
नहीं दिशा का कुछ भी ज्ञान, कैसे पहुँचेंगे हम मंजिल.,
कोई नहीं बताता पंथ, हो निरीह हम खड़े एकाकी.,
नहीं साथ देता है सूर्य, मुँह मोड़े भी चांद पड़ा है.,
तारागण की बात न पूछ,हँसते दिखते सब ऊपर से.,
पवन देव हो गये हैं मूक, सुखी लगती जल की नदिया.,
पावकमय हो गया है देह, बहरा जैसा सकल गगन है.,
सूना-सूना है हर कोन, अपने में खो गये सभी हैं.,
सन्नाटा लगता हर ओर, अति उदास सम्पूर्ण जगत है.,
पंछी छोड़ चले हैं क्षेत्र, कलरव नहीं सुनायी देता.,
वातावरण में नहिं है गूँज, मन अति व्याकुल बहुत दुःखी है.,
उर है आज बहुत उद्विग्न, धड़क रहा यह आज निरन्तर.,
बला बुलाये बिन है पास, कैसे कष्ट कटेगा मित्रों.,
फिर भी मन में एक उपाय, साधु-संत, सद्ग्रन्थ कहत हैं.,
जब सारा जग छोड़ दे साथ, सदा धैर्य को मित्र बनाओ.,
यही एक आयेगा काम, इसको मानो दिल से साथी.,
यही बहादुर योद्धा वीर,साथ निभयेगा आजीवन.,
यह निष्कामी पावन मीत, धर्मशास्त्र का मूल तत्व है.,
वफादार बलवान महान, नहीं स्वार्थ की बातें करता.,
इसे चाहिये केवल प्यार,जब भी बुलाओगे आयेगा.,
अगर नहीं इसपर विश्वास, जरा बुलाकर देखो भी तो.,
इंतजार में रहता नित्य,थोड़ा सा ही देख इसे तो.,
इसे नहीं कुछ का दरकार, आत्मनिवेदन सिर्फ चाहिये.,
यह अति भावुक सहज सुजान, परम सशक्त यह महावीर सम.,
राम भक्त का यह अवतार, देशज में धीरज कहलाता.,
कहीं नहीं रहता है दूर, अन्तःपुर का यह वासी है.,
विपदा में आता है काम,साथ निभाना खूब जानता.,
इसके जैसा सुन्दर मित्र, कहीं नहीं सारी दुनिया में.,
जो भी धरता इसकी बांह, पार उतर जाता निश्चित ही.,
हो जाते सारे अनुकूल, धैर्य अगर है साथ खड़ा तो.,
समझो इसको सच्चा पार्थ, जीवन का संग्राम विजेता.,
इसको कभी न जाना भूल, यह जीवन की असली पहिया.,
जो भी करता इससे प्रीति, रिद्धि-सिद्धियाँ पास उसी के.,
चेहरे पर रहती मुस्कान, आत्मतोष का बिगुल बजाता.,
जीवन हो जाता अति शान्त, सब चुनौतियां मुँह की खतीं।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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