डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"वक्त का इंतजार नहीं करते"


काम करने वाले
वक्त का इंतजार नहीं करते,
किसी का प्रतिकार नहीं करते ,
अनावश्यक को स्वीकार भी नहीं करते।


कार्य उनका मिशन है,
शुभ शिव रतन है,
आत्म का प्रक्षेपण है,
स्व का विश्लेषण-विवेचन है,
परमार्थ का संश्लेषण है,
विश्व के प्रति समर्पण है।


इंतजार करनेवाला रह जाता है,
समाज से कट जाता है,
अपनी ऊर्जा को देखते देखते नष्ट कर डालता है,
हाथ मल कर रह जाता है।


कार्य में त्वरित गति हो,
आदर्श की नियति हो,
परम का भाव हो,
उन्नत स्वभाव हो।


लोक के आलेखन में परलोक का स्मरण हो,
आत्मिक संस्मरण हो,
दिव्यता की बू हो,
परमानन्द की खुशबू हो।


कार्य में चरैवेति की दृष्टि हो,
अनन्त में गमन की प्रवृत्ति हो,
चलना सबसे बड़ा कार्य है,
यही संस्कृति सहज स्वीकार्य है।


अवरोध को आने दो,
बगल से जाने दो,
बुद्धिमान आगे बढ़ जाता है,
शिखर पर चढ़ जाता है।


वह रुकता नहीं,
खिसककर भी झुकता नहीं,
भीतर गुरुत्व है,
कार्य संस्कृति की चढ़ी हुई भौहों का प्रभुत्व है।


जो रुका नहीं वही पाया है,
गीता के श्लोकों को दोहराया है,
माँ भारती के गीत गाया है,
भारत माता की सोंधी मिट्टी को  विश्व मस्तक पर लगाया है,
मानवता के राष्ट्र ध्वज को चतुर्दिक फहराया है,
सकल लोक मंच से मधु संस्कृति की यश गाथा को सहज भाव से सुनाया है,
 आचार्य भवभूति बनकर करुणा का रसपान कराया है,
कृष्ण बनकर लोक मंगल हेतु प्रेम  को पहचान दिलाया है।


रचनाकार


:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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