डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कैसे विरह गीत लिख दूँ"


भाव भरे इस कवि कुटिया मेँ,
      कैसे विरह गीत लिख दूँ?
तार जुड़े हैं प्रितिवाद के,
     कैसे विरह गीत लिख दूँ?
समझ तुझे अपनाया प्रियवर,
     कैसे विरह गीत लिख दूँ?
मन में बैठे एक तुम्हीं हो,
     कैसे विरह गीत लिख दूँ?
दर्द तुम्हारा अपना समझा,
     कैसे विरह गीत लिख दूँ ?
जबसे होश हुआ है मुझको,
     प्रेम परस्पर झूमे हैं.,
गले लगे हैं कल्प लोक में,
     हाथ पकड़ कर घूमे हैं.,
बांह छुड़ा कर भले चला जा,
    उर से जाना कठिन समझ.,
बहुत सबल हो मैँ निर्बल हूँ,
     मन से जाना कठिन समझ.,
भाव भरे हैं कवि कुटिया में,
     कैसे विरह गीत लिख दूँ?
स्वीकारा है प्रेम पत्र लिख,
     कैसे विरह गीत लिख दूँ?
भावों में गंगा निर्मल जल,
     कैसे विरह गीत लिख दूँ?
कहीं रहोगे पास रहोगे,
       इतना तो विश्वास मुझे.,
साथ तुम्हारा सदा मिलेगा,
     यह निश्चित अहसास मुझे.,
भावों में जीता हूँ हरदम,
     विरह गीत कैसे लिख दूँ?
कवि की नगरी है भावों की,
      विरह गीत कैसे लिख दूँ?


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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