"जन्म संगिनी"
मृत्यु जन्म की सबसे बड़ी संगिनी है,
जन्म के साथ आती है,
जीवन भर रहती है,
और फिर एक दिन
साथ छोड़कर जल देती है।
साथ-साथ रहते हुए भी
जीवन से कोई ममता नहीं,
जीवन के प्रति कोई विनम्रता नहीं,
सदैव निष्ठुर और क्रूर,
मद से भरपूर,
घमंड में चकनाचूर,
संवेदना से अत्यंत दूर।
पर मृत्यु ही तो सच्चा दर्शन है,
ह्रदय की धड़कन है,
भविष्य को वर्तमान में समेट लेने का प्रेरक है,
अच्छे कार्य को संपन्न करने के लिए सच्ची उपदेशक है।
मृत्यु तो हमेशा कहती रहती है--
मैँ कभी भी आ सकती हूँ,
तुम्हें समतल बना सकती हूँ,
सावधान रहना,
सूझ-बूझ से चलना,
बुद्धिमत्ता का परिचय देना,
नैतिकता की रक्षा करना,
मानवता का संवरण करना,
अपने सारे कार्यों का विवरण रखना,
तुम्हारे जीवन का दस्तावेज देखा जायेगा,
सबकुछ यमराज के समक्ष रखा जायेगा।
जीवन को अनुशासित बनाओ,
सत्कर्मों को हृदय से लगाओ,
सत्कर्म ही जीवन है,
गमकते हुये फूलों का मनमोहक चमन है।
दुष्कर्म करोगे तो वर्वाद हो जाओगे,
जन्मजन्मांतर तक पश्चाताप करोगे,
कोई बचा नहीं पायेगा,
दण्ड अवश्य मिलेगा,
स्वयं अपनी रक्षा करो,
संमार्ग पर चलते रहो।
मैँ मृत्यु हूँ,
अनवरत स्तुत्य हूँ।
जो मुझे नहीं मानता है,
वही दलदल में फँसता है,
शरीर अमर नहीं,
यह तो मृत्यु का ग्रास है,
मृत्यु हमेशा जीवन के पास है ।
रचनाकार०डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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