डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"छोड़ दुष्ट को रामचरण गह"


          (वीर छंद)


दुष्ट संग से लगता पाप, इनकी संगति बहुत बुरी है.,
सदा दंभ की करते बात,अहंकार जैसे रावण का.,
करते रहते निन्दित काम, फिर भी अपनी सतत प्रशंसा.,
नहीं सेटता है चाण्डाल, अपने आगे कभी किसी को.,
अपने को बनता विद्वान, मूर्ख क्रूर जाहिल मनरोगी.,
करता धोखे की ही बात, रचा-बसा नित नीच कर्म में.,
सुनता नहीं किसी की बात, सिर्फ सुनाने को व्याकुल वह.,
अच्छे अच्छे भी वर्वाद, हो जायें यदि चूक करें तो.,
जो भी आया उसके पास, हुआ विनष्ट समझ निश्चित ही.,
ऐसे नीच पतित का साथ,छोड़ चलो बस रामचरण गह.,
अवधपुरी में जीना सीख, दर्शन कर श्री रामचन्द्र का.,
सरयू मैया में नित स्नान, करते रहना राम भजन कर.,
वे ही सकल लोक के देव, भक्त हितैषी सहज कृपालू.,
सरल भक्तवत्सल भगवान, भक्तों की रक्षा में नित रत.,
यही एक है उनका काम, ऐसा राम कहाँ पाओगे.,
करो उन्हीं के पद से प्रीति, चाहत रख उनसे मिलने की.,
मिल जायेंगे निश्चित राम, श्रद्धा अरु विश्वास अटल कर।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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