डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"लाठी लेकर कविता लिखता"
        
         (हास्य रस, वीर छंद) 


हूँ सशक्त  अति रचनाकार,लाठी लेकर चिन्तन करता.,
गुर्राता हूँ कलम को देख, कांप रही है मोर लेखनी.,
आने को है नहिं तैयार, मुझे देखकर अश्रु बहाती.,
माफ करो हे माई-बाप,अब मत तंग करो हे कविवर.,
जब मैं हुआ थोड़ सा नम्र, किसी तरह से आई कर में.,
लगा खोजने भाव विचार,सोये हुये सभी अंदर थे.,
किया गर्जना जब घनघोर, सिंहनाद सुन भाव जगा कुछ.,
लगा खोजने जब मैं शव्द, पाया मैंने सभी पलायित.,
थोड़ा-बहुत बचे बेकार, सोचा मैंने काम चलेगा.,
चलने लगी लेखनी तेज, बिना किये परवाह किसी की.,
लगा रही थी दौड़ सपाट, कामा पूर्ण विराम नदारद.,
लिखना ही था केवल लक्ष्य, हो सार्थक या भले निरर्थक.,
देखा नहीं भाव भावार्थ, लिखता गया सिर्फ लिखना था.,
किया लेखनी बहुत कमाल, लिखती जाती बिना थके ही.,
देख लेखनी की वह चाल, फिदा हुआ मैँ उसके ऊपर.,
अगर लेखनी का हो साथ, समझ स्वयं को व्यास वृहस्पति.,
दुनिया को देना ललकार, आत्म प्रशंसा करो स्वयं की.,
चाहे जैसे भी हों शव्द, कभी शव्द पर ध्यान न देना.,
लिखते जाओ करो कमाल, केवल पन्ना ही भरना है.,
हँसी-खुशी से रहना सीख, लिखते जाओ बन सेनानी.,
वाक्यों पर मत देना ध्यान, सभी वाक्य सुन्दर होते हैं.,
करे लेखनी भले अनर्थ, इस पचड़े में कभी न पड़ना.,
माना जायेगा यदि दोष,जाने कलम मुझे क्या कहना?
लिखते जाना है बेजोड़,कलम-सिपाही यदि बनना है.,
लिखने की संस्कृति को फांस, समझ स्वयं को कालिदास ही.,
वाक्यों को पढ़ मत दो बार,शव्दों से भी मत मतलब रख.,
दिखलाओ दुनिया को ग्रन्थ, पढ़ें लोग या नहिं पढ़ पायें.,
अपना लिखना ही है धर्म, धर्म निभाना बड़े काम का.,
रचना को पढ़ता है कौन, बन जाओ बस रचनाधर्मी।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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