"प्यार बिन जीवन अधूरा रह गया"
(वीर छंद)
प्यार बिना सब जीवन सून, जीवन का यह नामकरण है.,
सारी बस्ती गलियाँ छान, डाला फिर भी मिला नहीं यह.,
गाँव नगर में घुमा खूब, फिर भी पता नहीं लग पाया.,
खोजा इसको चारोंओर, मिला एक-एक मानव से.,
जो भी मिलता कहता जय, हम भी कब से ढूढ़ रहे हैं.,
हर मानव का यही सवाल, मिल जाये तो हमें बताना.,
मैं ही जग में नहीं अकेल, सारे जग को प्यार चाहिये.,
भूखे-प्यासे हैं सबलोग, सबका सिर्फ वही मकसद है.,
दिखते सब हैं यहाँ उदास, भावभंगिमा अति मलीन है.,
खोज रहे हैं सब आनन्द, छिपा हुआ जो प्रेम-त्वचा में.,
सब बोझिल सब जगह तनाव, सभी थकित अरु सभी व्यथित हैं.,
सबके भीतर हाहाकार, मचा हुआ है प्रेम रत्न बिन.,
सभी दिखे दुर्गति को प्राप्त,कोई नहीं आत्मतुष्ट सा.,
सब भीतर से हैं बेचैन, खोज रहे हैं सब कस्तूरी.,
पता नहीं है नहीं ठिकान,फिर कैसे संभव है पाना.,
कुंडल का कुछ नहीं है ज्ञान, खोज रहे सब बाह्य लोक में.,
बाह्य जगत के दुःख को देख, वापस आया स्वयं स्वयं में.,
किया आत्म का जीर्णोद्धार, मंदिर दिखा एक अद्भुत सा.,
उसमें बैठे सिताराम,जाप कर रहे थे अपना ही.,
नहीं द्वैत का नाम-निशान, एकाकार ब्रह्म-ब्रह्माणी.,
प्रकृति-पुरुष का भेद विलुप्त, हो जाता तब प्यार दीखता.,
यह जीवन का असली सार, खुद प्रवेश कर अन्तःपुर में.,
बाहर दुःखियों का संसार, कुछ भीबाहर नहीं है मित्रों.,
यदि पाना है असली प्यार, प्यार करो तुम खुद से नियमित.,
भीतर इक सुन्दर संसार, अति सुरम्य प्रिय परम मनोहर.,
करना विकसित यह संसार, प्यार भरा बस प्यार भरा है.,
कर लो जीवन को उजियार, खालीपन सब भर जायेगा.,
बन इक संस्कृति सहज महान,
बांटो प्यार स्वयं का सबको.,
आशा-तृष्णा के उस पार, जा आशा के दीप जलाओ.,
यह सारा संसार हताश, बनकर प्यार स्वयं वितरित हो.,
फूले-फले सकल संसार, आत्म-प्यार का मंत्र पढ़ा दो।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें