डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"धर्ममय दोहे"


धर्म ध्वजा फहराइये, लहराये आकाश।
असाधारण ध्वज करे, अब पशुता का नाश।।


विषधर मन का फन कुचल, अमृतपन का जाप।
सज्जन संस्कृति से मिटे, मानव का अभिशाप।।


पावन सुन्दर कृत्य ले, अपना शुभ विस्तार।
ज्यामितीय अनुपात की,पकड़े यह रफ्तार।।


एक एक ग्यारह रचे, दे सुन्दर सन्देश।
बढ़े सौ गुनी चाल से,अत्युत्तम परिवेश।।


शुद्धिकरण होता रहे, दानव- मन परित्याग।
मनमोहक अंदाज में,गाओ मधुमय फाग।।


वैश्विक मानववाद का,हो नियमित अनुवाद।
मोहक परिभाषा गढ़े, अति मादक संवाद।।


रोड़े वंधन सब हटें, जागे वसुधा भाव।
जलते जग को चाहिये, निर्मलता की छाँव।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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