"प्रिय दर्शन"
करे स्थापना धर्म की, स्थापित हो नित न्याय।
प्रेम और सद्भाव से ,मिटे गेह-अन्याय।।
पावन प्रतिमाएँ बनें, अति शुचि रुचिर समाज।
दिव्य भावना ही करे, इस दुनिया पर राज।।
आदर्शों की स्थापना, करता दर्शनशास्त्र।
जहाँ नहीं आदर्श है, वह कैसा है शास्त्र।
दर्शन पढ़ना ही भला, दर्शन मधु साहित्य।
दर्शन में ही निहित है, भावुक जीवन स्तुत्य।।
दर्शन मन का भाव है, नित्यानन्द मनीष।
दर्शन को आतुर सदा, कविवर सन्त मुनीश।।
दर्शनीय इस जगत में, ईश्वर साधु फकीर।
जिनको कुछ नहिं चाहिये, केवल गुण गंभीर।।
गुणाग्रही खोजत चलत, राम रहीम कबीर।
सदा पंथ उत्सर्ग पर, बहत जात जिमि नीर।।
दर्शनीय इस विश्व में, रामेश्वर घनश्याम।
जिनके कारण भूमि यह, बनी पावनी धाम।।
दर्शन करने योग्य वे, जिनका मन निष्पाप।
जिनकी संगति से कटत, जीवन के सब पाप।।
दर्शनीय पावन पवन, क्षिति जल पावन व्योम।
दर्शनीय सब देव हैं, दर्शनीय रवि सोम।।
धर्म स्थापना के लिए, आया जो इस देश।
कहलाया वह दार्शनिक ,धर कर पावन वेश।
जीवन जिसने दे दिया, सकल जगत को दान।
वही बना फैला वही, जग में बना महान।।
महा पुरुष के शव्द से, बहता दर्शनशास्त्र।
सकल लोक में घूमता, बना दार्शनिक पात्र।।
दर्शनीय इस भूमि पर, महामना का ज्ञान।
देते ये हैं विश्व को, सहज मोक्ष का दान।।
दर्शन में ही मुक्ति का, छिपा हुआ है धाम।
दर्शन में पावन निलय, दर्शन में विश्राम।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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