"धर्मदर्शन'
(वीर छंद)
करो धर्म का दर्शन नित्य, करते जाना काम सुहाना.
करना कभी नहीं आलस्य, समझ धर्म को जीवन साथी.,
धर्म नहीं तो सब बेकार, मानव तन है मिला धर्म से.,
सकल अधर्मी को ही देख, बने हुए नाले का कीड़ा.,
क्षमा करो सबको हे मित्र, क्षमा याचना को स्वीकारो.,
दया दमन अरु दान के काम, करते रहना है जीवन भर.,
शुचिता का करना निर्माण, सुन्दर संस्कृति सदा उगाओ.,
करो बुद्धि का सुखद प्रयोग, विकृत बुद्धि सदा दुःखदायक.,
विद्या अर्जन करना सीख, अतिशय मोहक विनयशील बन.,
चलना सच्चाई की राह, नित्य सत्य का करो समर्थन.,
सदा क्रोध का कर प्रतिकार, प्रेम शान्ति में सुख ही सुख है.,
अति व्यापक है धर्म महान, करो आचरण धर्म रूप धर.,
यही युधिष्ठिर का है देश, यहाँ धर्म के सब लक्षण हैं.,
पुण्य पाप में समझो फर्क, पुण्य पाण्डवों की संस्कृति है.,
दुर्योधन है पाप समान, उसको कीट-पतंग समझ बस.,
दुर्योधन से मुँह को मोड़, चल पाण्डव का पंथ पकड़कर.,
धर्म दर्शनीय जग माहिं, सकल देह में धर्म विछा दो.,
रग-रग में हो धर्म-निवास, धार्मिक मानव ही बनना है।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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