"करुणा"
(चौपाई)
देख गरीबी की हालत को।
दुःख होने लगता है मन को।।
झुग्गी-झोपड़ में सब रहते।
जाड़ा गर्मी वर्षा सहते।।
भोजन का भी नहीं ठिकाना।
लोग समझते उन्हें बेगाना।।
मैला-फटहा वस्त्र पहनकर।
रह लेते गरीब जीवनभर।।
भोजन की भी नहीं व्यवस्था।
कितनी है दयनीय अवस्था।।
बच्चे रोते सदा विलखते।
सहज कुपोषण दंश झेलते।।
वृद्ध रूप में युवक दीखते।
अपनी दुःखद कहानी लिखते।।
अति मलीन चेहरा ले चलते।
रोज दिहाड़ी हेतु भटकते।।
स्थायी काम नहीं मिलता है।
यह दुर्योग चला करता है।।
जीवन में संकट के बादल।
आँखों में केवल जल ही जल।।
सुख की रेखा मिटी हुई है।
हाय!गरीबी सटी हुई है।।
देख दीनता मन अति विह्वल।
झर झर नीर नयन से निर्मल।।
यह करुणा रस का सागर है।
सर्वश्रेष्ठ रसराज अमर है।।
जहाँ करुण रस तहँ शिवशंकर।
काशी-अवध राम रामेश्वर।।
कर दुःखियों की निश्चित सेवा।
बन करुणाकर प्रिय महदेवा।।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी।
9838453801
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