"हर सुन्दर मानव इक योधा "
(वीर छंद)
लिये करध्वज अरु उत्साह, चल देता है सुन्दर मानव.,
अपने धुन में रहता मस्त, बिना किये परवाह किसी की.,
सिर्फ देखता अपना लक्ष्य, चलता जाता उसे वेधने.,
कांटे और पुष्प इक भाँति, सुख-दुःख के उस पार खड़ा है.,
सुनता नहीं किसी की बात.,अपने में ही मस्त बहादुर.,
प्रतिकारों पर नहीं है ध्यान, मान और अपमान एक सम.,
सुन्दरता का है प्रतिमान, सहज अहिंसक अति विराट इव.,
चलता अत्युत्तम है चाल, सर्वजनों का बना हितैषी.,
स्थापित करता जग में नाम, यद्यपि यह है नहीं कामना.,
सदा ख्याति से कोसों दूर, सिर्फ कामना लोकमंगला.,
मन में आती कभी न ग्लानि, अति उल्लास -उमंग रगों में.,
दिल में सबके प्रति सम्मान, रखता चलता सुन्दर योधा.,
पावन भावों के संसार, का रचना-संकल्प हृदय में.,
रखता सदा है ऊँचा ख्याल,तुच्छ बुद्धिवाले जलते हैं.,
नयी-नयी चीजों की खोज, मेँ ही सदा लगा रहता है.,
पा लेता है पावन लक्ष्य, इक दिन सुन्दर सत शिव योधा.,
नहीं कभी मन में अभिमान, सबको सहभागी कहता है.,
सबके दिल पर करता राज, आता जग मेँ देवदूत बन.,
करने को सबक कल्याण, आतुर व्याकुल सुन्दर योधा।
रचनाकार:
डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें