"माँ सरस्वती दोहावली"
जब-जब विपदा पड़त है, माँ आती हैं द्वार।
करुण रुप धर भक्त को,करती हैं स्वीकार।।
भक्त हेतु हैं ज्ञानधन,और प्रेम धन नित्य।
माँ की ममता अति सहज,सर्वश्रेष्ठ प्रिय स्तुत्य।।
वन्दनीय माँ भारती, पूजनीय है नाम।
रचनाएँ करतीं सदा, बिना किये विश्राम।।
बन प्रेरक लिखवा रहीं, सबसे वही सुलेख।
आ लिख आ लिख कह सदा,लिखवातीं आलेख।।
सद्विवेक का दान दे, हर लेती हैं शोक।
देती रहतीं भक्त को, मानवता की कोख।।
धारण सुन्दर भाव का,कर रचतीं संसार।
महा भारती शारदा, से सबका उद्धार।।
अति विनम्रता का वरद, बन देतीं आशीष।
सकल लोक में भक्त ही, दिखत नवाये शीश।।
माँ की जिसपर हो कृपा, वही पूज्य हर स्थान।
बिन माँगे देता जगत, स्नेह प्रेम सम्मान ।।
माँ सरसती का करो, सदा भजन गुणगान।
मन वाणी अरु कर्म से, करो उन्हीं का ध्यान।।
रचनाओं को मात्र माँ, देती हैं अमरत्व।
कृपा पात्र माँ शारदा,का पाता अभयत्व।।
लिखने का अभ्यास कर, लिख-पढ़ बारंबार।
माँ का वन्दन नित लिखो, यदि माँ से हो प्यार।।
हाथ उठाकर कह रहा, हरिहरपुरी स्वतंत्र।
लेखन जीवन दृष्टि हो, लेखन ही गुरु मंत्र।।
लिखने से चूको नहीं, लिख सब उठते भाव।
छिपी हुई है भाव में,शीतल रचना-छाँव ।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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