डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"गुरु दर्शन"


गुरु दुर्लभ इस जगत में, पाते जो बड़भाग।
श्री गुरु चरणों से करो आजीवन अनुराग।।


सच्चे गुरु के संग रह कर गुरुवर से प्रीति।
गुरु की संगति अति सुखद कहते वेद सुनीति।।


गुरु महिमा जो जानता वह पाता सद्ज्ञान।
रामचन्द्र भी हैं किये गुरु वशिष्ठ का मान।।


गुरु संदीपनी ने दिया है कान्हा को ज्ञान।
गुरु बिन किसने है किया कभी ज्ञान रसपान।।


गुरु को केवल चाहिये श्रद्धा अरु विश्वास।
सद्गति किसको है मिली बिना बने गुरुदास।।


गुरु ईश्वर का रूप है जानत विरला कोय।
गुरु को जो पहचानता वह सद्ज्ञानी होय।।


गुरुवर के अपमान से होता सत्यानाश।
गुरुवर के सम्मान से रहत शिष्य हरि पास।


गुरु स्वभाव नवनीत सम रहो उन्हीं क़े संग।
बन चेतन प्राणी सहज देख ज्ञान का गंग।।


गुरु इक सुन्दर भाव है गुरु पावन सुविचार।
गुरु ही खेवनहार है गुरु ही तारनहार।।


गुरु इक दर्शन दिव्य है कर गुरु दर्शन रोज।
जीवन  में बनना अगर है शिव पुष्प सरोज।।


गुरु दर्शन इक शास्त्र है पढ़ो इसी को नित्य।
जीवन अतिशय सुखद हो अरु  समाज में स्तुत्य।।


गुरु दर्शन प्रिय चिन्तना अति पावन आराध्य।
कठिन नहीं है साधना चाह रखो तो साध्य।।


पाया जिसने गुरु नहीं उसे मिला कुछ नाहिं।
व्यर्थ गयी सब जिन्दगी अति असफल जग माहिं।।


गुरु महिमा अनमोल है मधु अमृत के तुल्य।
इसे जान समझो इसे यह महान शिव मूल्य।।


गुरु द्रोही बनना नहीं कभी भूलकर मित्र।
गुरु के कृपा-प्रसाद से गमकोगे जिमि इत्र।।


गुरु का नित सम्मान कर खत्म करो सब दर्प।
दर्प जंगली हिंस्र है दर्प भयंकर सर्प।।


विष की हाला त्याग दे कर अमृत का पान।
गुरु प्रत्यक्ष त्रिदेव हैं गुरु अमृत रस खान।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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