"नेहनीय हैं माँ सरस्वती"
नश्वरता का चक्कर छोड़ो।
अविनाशी से रिश्ता जोड़ो।।
जग नश्वर में मोह निशा है।
कभी नहीं यह उचित दिशा है।।
जग में फँस मत खुद को मारो।
उचित उपाय से खुद को तारो।।
पार उतरना बहुत जरूरी।
श्री माँ से कर इच्छा पूरी।।
चतुर विवेकी विज्ञ सुहृद बन।
अर्पित कर माँ चरणों में मन।।
माँ के साथ सदा जो रहता।
भव-कूपों में कभी न गिरता।।
माँ सहाय अति सरल कृपालू।
नित रखती भक्तों पर ख़्यालू।।
देतीं भक्तों को विद्या वर।
अपने ही उर में नित रखकर।।
भक्तों को सम्मान दिलातीं।
मधुर ज्ञान विज्ञान पिलातीं।।
साथ निभातीं सदा प्रेम कर।
भक्तों के सर पर कर रखकर।।
दिव्य धाम है श्री माता का।
ज्ञानदायिनी सुखदाता का।।
निराकार अतिशय शुभदाई।
विद्या विनय विभूषण माई।।
बन सपूत नित करो साधना।
आराधना और वंदना।।
पाया मधुरामृत फल भाई।
जिसने की माँ की सेवकाई।।
मीठा फल है अमी समाना।
जो चाखत वह होत सयाना।।
मीठे फल का यह मतलब है।
तेरी ही दुनिया यह सब है।।
माँ चरणों में पड़े रहो नित।
अपना सबका साध सदा हित।।
मेरा सबसे यही निवेदन।
करते रहना माँ पर लेखन।।
सदा साधते लिखते रहना।
भव सागर से पार उतरना।।
जो उतरा वह विज्ञ बहादुर।
पहुँचा माँ के ही अन्तःपुर।।
सबकुछ पाया क्या बाकी है।
बना विश्व का मधु साकी है।।
पाया तो खो गया स्वयं में।
विचरण करत अलौकिक धम में।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
983845380
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