"इक सुन्दर सा गाँव चहिए"
इक सुन्दर सा गाँव चाहिए
प्रिय सन्तों की छाँव चाहिए
सबके मन में हो अपनापन
सुन्दरता का भाव चाहिए।
अत्युत्तम शिव चाव चाहिए
सद्गतिदात्री नाव चाहिए
सबको मिले राम का केवट
यह सुन्दर प्रस्ताव चाहिए।
यात्रा हो बस स्व से पर तक
पहुँचें हम सब मिलकर सब तक
भीतर देखो बाहर झांको
यह देखो क्या देखा अबतक?
बाहर हो जब घोर निराशा
खुद से पूरी कर अभिलाषा
आजीवन करनी है यात्रा
स्वअरु पर की गढ़ परिभाषा।
परजीवी ही नारकीय है
स्व- जीवी ही भारतीय है
बनकर भार कभी मत जीना
आत्म -विभूषण आरतीय है।
काम क्रोध मद लोभ त्यागिए
अपने में ही नित्य जागिए
पर्व मनाएँ सत्कर्मों का
आगे बढ़ते चले जाइए।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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