हिंसाचार बढ़ रहा घर-घर जाकर अलख जगाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर, महावीर के आने की।।
सिंहासन पर चोर चढ़ गए, हुई उपेक्षा संतों की,
भूल गए हैं लोग अहिंसा, शिक्षाएँ अरिहन्तों की,
पंच महाव्रत से जीवन को, फिर से सफल बनाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर..................................................
विश्वधर्म को छोड़ लोग अब, भोगवाद में उलझे हैं,
इसीलिए तो प्रश्न समूचे, तार-तार अनसुलझे है,
नहीं कवि अब करते कोशिश, जिन वाणियाँ सुनाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर..................................................
भारत का इतिहास बताता, पंचशील जो साधेगा,
न्मोकार और क्षमा याचना से दुश्मन को बाँधेगा,
वही बनेगा सिद्ध, कला है यही मोक्ष तक जाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर..................................................
अणुव्रत साध-साध कर जो नर, संयम को अपनायेगा,
विश्वमैत्री के बल से वह शीघ्र सफलता पायेगा,
मुनियों की जीवन शैली को जन जन तक पहुँचाने की।
बहुत ज़रूरत है धरती पर..................................................
गोविंद भारद्वाज, जयपुर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें