अनन्तराम चौबे अनन्त  जबलपुर म प्र

        नई दुल्हन


माता पिता का घर छोड़
बेटी जब ससुराल चली ।
नई दुल्हन के रूप में वह
पति संग ससुराल चली ।


बिलखता अपनी मां को 
दुल्हन बन ससुराल चली ।
विधि का ये कैसा विधान है
खुशियों के नये द्वार चली ।


नई दुल्हन बनकर एक बेटी
नये घर में ससुराल चली ।
पति के माता पिता के घर 
दुल्हन बन ससुराल चली  ।


बाबुल का घर हुआ पराया जहां
बचपन बीता सब सुख पाया ।
पाल पोस कर माता पिता ने
बेटी को जहां इस योग्य बनाया ।


बेटी एक पराया धन होती है
बात ये सबको पता होती है ।
एक दिन बाबुल का घर छोड़ेगी
नई दुल्हन बन ससुराल जायेगी ।


विधि का ये कैसा, विधान है
जो हर नारी के साथ ही होता है ।
पति के बिन नारी ही है अधूरी
नई दुल्हन का घर ससुराल होता है ।
     अनन्तराम चौबे अनन्त
           जबलपुर म प्र
               2432/
          9770499027


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...