हलधर

ग़ज़ल ( हिंदी)
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जीवन के सब चरण अटल हैं ,भीड़ पड़ी तो डरना कैसा !
जन्म हुआ तो मरण अटल है ,नाम करे बिन मरना कैसा !


रस हर कण का तू लेता चल कर्जा जन गण का देता चल ,
दुख सुख सिक्के के पहलू हैं ,फिर इसका ग़म करना कैसा !


जीव जंतु की नीति पुरातन , जन्म मृत्यु है सत्य सनातन ,
झर झर पात गिरें पतझड़ में , डर डर आँसू झरना कैसा !


भव सागर की सजी पालकी ,सब पर चलती छड़ी काल की ,
धन बल का अब छोड़ आसरा ,कालिख बीच विचरना कैसा !


ये तन है माटी का टीला , बसता इसमें मन रंगीला ,
पूरा डूब महा सागर में , उससे पार उतरना कैसा !


पैसा तूने खूब कमाया ,सच बतला क्या काम ये आया ,
साथ नहीं दमड़ी जा पाए , फिर इससे घर भरना कैसा ।


जिसके दम पर झूल रहा तू ,उसको ही क्यों भूल रहा तू ,
जिसका अंश उसी में मिलना ,"हलधर" टूट बिखरना कैसा ।


हलधर -9897346173


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