कविता - दीप वार्ता
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दीपक से पूछ लिया मैंने क्यों जलते हो ,
वो बोला जग को मैं उजियारा देता हूँ !
दिखने में छोटा हूँ करता हूँ काम बड़ा ,
खुद तो जलता पर अँधियारा हर लेता हूँ !
नदियों झरनों से भी तो जाकर के पूछो ,
क्यों अविरल अपनी धार बनाए रखते हैं !
धरती को हरियाली देते चलते फिरते ,
प्रदूषण पी जो स्वयं हलाहल चखते हैं !
क्या कभी हिमालय से जा के पूछा तुमने ,
सदियों से क्यों वो अचल खड़ा है धरती पे ।
कितने आंधी तूफानों से जूझा अब तक ,
वीरों ने प्राण दिये हैं उसकी छाती पर !
युग युग से मानव पथ को प्रसस्त किया मैन ,
पर उसने मुझको अब तक काफी भटकाया !
फिर भी मानव का दर्द पकड़ में आ न सका ,
मैंने जल जल कर खाक करी अपनी काया !
घने अँधेरों से लड़ना कोई खेल नहीं ,
मैंने सूरज से लड़ने का गुण पाया है !
जिससे तम भी डर डर के दूर भागता है ,
सच मानी मुझमें उसका अंश समाया है !
अनजाने में ही सही मुझे तो लड़ना है ,
पर हार नहीं मानूँगा तम की चालों से !
रोशन हर घर को कर दूंगा अपनी लौ से ,
मैं सतत युद्ध करता तम लिप्त दलालों से !
तुम भी कविता लिखते रहना निर्भय होकर ,
जन गण को यह कविता पैगाम सुनायेगी !
जो कहते हैं "हलधर" पागल है दीवाना ,
कविता उनको इक दिन परिणाम दिखायेगी !
(मेरे कविता संग्रह -मेघनाद से )
हलधर -9897346173
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