गीतिका (हिंदी)
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इस जिंदगी की दौड़ पर भारी पड़ीं तनहाइयाँ।
इक रोग ऐसा आ गया घर में छिपी परछाइयाँ ।
इक्कीस दिन का बंद ये शदियों सरीखा लग रहा ,
बस दाल रोटी मिल रही गायब सभी रानाइयाँ ।
अब क्या करें मजबूर हैं आदेश सरकारी हुआ ,
किससे गिले शिकवे करें किससे रखें रूसवाइयाँ ।
सारी दुकानें बंद हैं विश्की नहीं सोडा नहीं ,
दो पैग बिन फीकी पड़ी हैं शाम की अँगड़ाइयाँ ।
सारे जहाँ का दर्द कोरोना बना है आज कल ,
पश्चिम हवा भी मंद है धीमी पड़ीं पुरबाइयाँ ।
बस एक ही चर्चा यहाँ सब लोग चिंतित दिख रहे ,
क्यों मज़हबों के नाम पर खुदने लगी हैं खाइयाँ ।
कुछ मरकजों में भीड़ कर इस रोग को फैला रहे ,
इन जाहिलों ने नीचता की पार की गहराइयाँ ।
शादी किसी की रुक गयी गौना किसी का रुक गया ,
अब शोकपत्रों में सिमटती दिख रहीं शहनाइयाँ ।
दीपक जलाओ द्वार पर यह रोग भागेगा तभी ,
"हलधर" पकी फसलें खड़ी बांगों सजी अमराइयाँ ।
हलधर-9897346173
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