हलधर

गीतिका (हिंदी)
----------------


इस जिंदगी की दौड़ पर भारी पड़ीं तनहाइयाँ।
इक रोग ऐसा आ गया घर में छिपी परछाइयाँ ।


इक्कीस दिन का बंद ये शदियों सरीखा लग रहा ,
बस दाल रोटी मिल रही  गायब सभी रानाइयाँ  ।


अब क्या करें मजबूर हैं आदेश सरकारी हुआ ,
किससे गिले शिकवे करें किससे रखें रूसवाइयाँ ।


सारी दुकानें बंद हैं विश्की नहीं सोडा नहीं ,
दो पैग बिन फीकी पड़ी हैं शाम की अँगड़ाइयाँ ।


सारे जहाँ का दर्द कोरोना बना है आज कल ,
पश्चिम हवा भी मंद है धीमी पड़ीं पुरबाइयाँ ।


बस एक ही चर्चा यहाँ सब लोग चिंतित दिख रहे ,
क्यों मज़हबों के नाम पर खुदने लगी हैं खाइयाँ ।


कुछ मरकजों में भीड़ कर इस रोग को फैला रहे ,
इन जाहिलों ने नीचता की पार की गहराइयाँ ।


शादी किसी की रुक गयी गौना किसी का रुक गया ,
अब शोकपत्रों में सिमटती दिख रहीं शहनाइयाँ ।


दीपक जलाओ द्वार पर यह रोग भागेगा तभी ,
"हलधर" पकी फसलें खड़ी बांगों सजी अमराइयाँ ।


हलधर-9897346173


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...