हलधर

ग़ज़ल -आज के हालात पर
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समंदर तक खँगाले जा रहे हैं ।
सड़े मोती निकले जा रहे हैं ।


कहें जो संघ को आतंकवादी ,
वही मरकज़ सँभाले जा रहे हैं ।


जहाँ चाकू भी वर्जित था बताओ ,
वहाँ बंदूक भाले जा रहे हैं ।


अभी भी देश के कुछ चैनलों पर ,
दबे मुद्दे उछाले जा रहे हैं ।


यहाँ इक सोच ऐसी पल रही है ,
दिलों में द्वेष घाले जा रहे हैं ।


चिकित्सक नर्स पीटे जा रहे हैं ,
विदेशों तक रिसाले जा रहे हैं ।


पुरानी सोच में भटके उलेमा ,
नवी पर दोष डाले जा रहे हैं ।


कहे "हलधर" हमेशा बात सच्ची ,
जमीं पर नाग पाले जा रहे हैं ।


हलधर -9897346173


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