जया मोहन प्रयागराज

लघु कथा
सबक
आज ड्राइवर नही आया था।ऑफिस खत्म होने के बाद मैंने चपरासी से घर जाने के लिए रिक्शा मंगवाया।वह एक कमजोर बूढ़े रिक्शेवाले को ले आया।उसे देख कर मुझे क्रोध आया।ये किसे पकड़ लाये ।ये ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा मुझे क्या पहुचाएगा।मैंने पर्स से बीस का नोट निकाल कर देते हुए कहा बाबा आप जाईये।वह बोला अगर आपको जाना नही तो आप मुझे पैसे क्यों दे रही है।मैंने कहा रख लीजिए।नही मैं भीख के नही मेहनत के पैसे लेता हूं।बेटी मैं बूढ़ा व कमज़ोर हो गया तो क्या मेरा स्वाभिमान ज़िन्दा है। आप पैसा दे कर दानवीर और मुझे भिखारी बनाना चाह रही है।उसने नोट मेरे हाथ मे रख दिया और चला गया।मैं आवाक थी वह मुझे सबक सिखा गया।मेरा मन आत्मग्लानि से भर उठा।सच अनजाने में सही एक मेहनतकश का अपमान करने का अपराध तो मुझसे हो गया।मन ही मन माफी मांगते हुए मैंने उसे नमन किया।



स्वरचित 
जया मोहन
प्रयागराज


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