कालिका प्रसाद सेमवाल रुद्रप्रयाग उत्तराखंड

मैं बलिहारी होता हूं
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आओ मेरी प्रेयसि!
मैं नित करता वन्दन!
 हंस दो मेरी संगिनी!
विखरे रोली चन्दन!


तुम ललकार भरो अब टूटे जग का बन्धन,
तुम भुज बल्लरियों की शोभा,मानस नन्दन।


गीत नयन की हो तुम मधुरिम प्रीति हृदय की,
वर वंशी वयनी हो,हो वरदान अभय की।
टूटी कड़ियों की झंकार, मधुरिमा लय की,
रागी राग सपन हो, चंचल वायु मलय की।


तेरे भुज वंदन में बंधने को अकुलाता,
देख तुम्हारा रूप मनोहर मन तरसाता।
विह्वल होकर गीतों के जब छंद बनाता,
आकुल उर के गायन से उनको दुहराता।


कैसे मीत हृदय के, जिसको भूल न पाता,
कैसे गीत हृदय के, जिनको नित प्रति गाता।
कैसे हास नयन के, जिसके बिना घबराता,
कौन मधुरिमा मन की
मैं बलिहारी जाता।
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कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड
पिनकोड 246171


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