काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 10 जनवरी२०२०

काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 10 जनवरी२०२०


आशुकवि नीरज अवस्थी मो.-991925695


विश्व हिंदी दिवस पर हिंदी की दुर्दशा पर चर्चा न करके कुछ ऐसे मनाये हिंदी दिवस


बोली हजारन हैं जग मा,मनभावनि आपनि है मोरी हिंदी।
तुलसी के राम ,हौ सूर के श्याम कबीरौ के पद गावति हिंदी। 
मीरा की तान, रहीम के राग, भजन रसखान सुनावति हिंदी।  
नीरज नयनन नीर भरे,हमरिउ पहिचानि बतावति हिंदी।   


भारत भाल सोहाय रहा अरु भाल पे शोभित है शुभ हिंदी।
तीनिहु लोक करै उजियार मयंक गगन बिच मा जस बिंदी।
हिन्दुस्तान के लोग धनी धनह्वान बनाय रही मोरी हिंदी।
आप पढ़ो ओरों को पढ़ाओ बढावति ज्ञान सबै दिन हिंदी।।


''हिंदोस्ताँ की आन बान शान है हिन्दी,
माँ भारती का दिल दिमाग़ जान है हिन्दी|
दुनियाँ में चाँदनी बिखेरता जो गगन से,.
ब्रम्‍हांड में है चाँद,इस संसार मे हिन्दी||


रेनू द्विवेदी
लखनऊ


"गीत"


अगर तिरंगा प्यारा है तो ,
हिंदी से भी प्यार करो!
इसके अक्षर-अक्षर में नित,
शस्त्र सरीखी धार करो!


युवा वर्ग के कंधे पर अब ,
है यह जिम्मेदारी!
हिंदी की खुशबू से महके,
भारत की फुलवारी!


संस्कृति अगर बचानी है तो,
हिंदी को स्वीकार करो!
इसके -------------


भारत का गौरव कह लो,
या स्वाभिमान की भाषा!
एक सूत्र में बाँधे सबको,
स्नेहिल है परिभाषा!


है भविष्य हिंदी में उज्ज्वल,
इस पर तुम ऐतबार करो!
इसके---------


माँ समान हिंदी हम सब पर,
प्रेम सदा बरसाती!
सहज सरल यह भाषा हमको,
नैतिक मूल्य बताती!


बापू ने जो देखा सपना,
उसको तुम साकार करो!
इसके-------------


अंग्रेजी की फैल गयी है,
घातक सी बीमारी!
इससे पीड़ित भारत सारा,
कैसी यह लाचारी!


हिंदी की रक्षा खातिर इक,
युक्ति नयी तैयार करो!
इसके -----------


रचना सक्सेना
प्रयागराज


कैसे दूँ अपना परिचय,
कोई पहचानता ही नही,
सोचती हूँ
वही नाक नक्श,
वही नाम-
वही तो हूँ मैं,
जो कल तक थी,
आईना देखती हूँ,
हाँ वही तो हूँ,
लेकिन फिर भी,
यह रिश्तों में -
इतनी दूरी क्यों?
नही ऐसा नही हो सकता,
या मैं झूठी,
या आईना?
समय का प्रकटीकरण,
चीर देता है मेरा सीना,
हाँ मैं बदल गयी हूँ,। क्योकि इन हवाओं के थपेड़ों ने,
मेरे चेहरे को ही नही
मेरे चरित्र को भी
बदल डाला है।
अब मै,
मैं, मैं न रही
समाज के रंग में रंग गयी हूँ।
इसीलिये ही तो जिंदा हूँ।
वरना न जाने कब,
मर गयी होती।


यशवंत"यश"सूर्यवंशी
       भिलाई दुर्ग छग


विधा कुण्डलिया


विषय हिन्दी भाषा


हिन्दी भाषा मात सम,भारत की है शान।
बिन माता के वंश तो,रहे सदा सुनसान ।।
रहे सदा सुनसान, बिना हिन्दी फुलवारी।
सारा हिन्दुस्तान, शोर गूंजे किलकारी ।।
कहे सूर्य यशवंत,बड़ा है महान बिन्दी।
करता अर्थ अनर्थ ,शुद्ध हो भाषा हिन्दी ।


आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  महाराणा प्रताप, न्यू मार्केट रोड़,
 


हिन्दी दिवस
========


कुछ तो सुनाओ,
  हिन्दी दिवस पर,
    चुपके-चुपके न गाओ,
       हिन्दी दिवस पर,
नफ़रतों को छोड़ मिल जायें,
दिल से दिल,कुछ ऐसा कर दिखाओं,
                 
हिन्दी दिवस
========


विश्व हिन्दी दिवस,
  मनाईये,
   अग्रेंजी में,
      पत्राचार,
        कराइयेगा।


जयप्रकाश सूर्य वंशी
साकेत नगर नागपुर  भगवान नगर  महाराष्ट्र ।
काव्य रंगोली
आन लाइन प्रतियोगिता
हिंदी दिवस
दिनांक १०.१.२०२०
रचना। 
भारत की शान है, हिंदी
--------------------------
भारत की शान है हिंदी
विश्व की पहचान है हिंदी
इस देश की आन , शान है हिंदी
हिन्द की। जुबान हेै हिंदी ।


आ अो हम सदा इसे अपनाये,
हिन्दी काम गुणगान सब गाये
हम सबके लिये वरदान है हिंदी ।
विश्व की।...........


उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम,
मातृ भूमि की पहचान है हिंदी
हम सब काम सममान है हिंदी ।
इस देश की। जुबान है हिंदी ।


इस देश की आन , बान , शान है हिन्दी ।
विश्व की। पहचान है हिन्दी ।
विश्व की।..


रुपेश कुमार
चैनपुर,सीवान बिहार


~ हिंदी है मेरी भाषा ~


हिंदी है मेरी मातृभाषा ,
हिंदी है मेरी जान !


हिंदी के है हम कर्मयोगी ,
हिंदी है मेरी पहचान ,
हिंदी मेरी जन्मभूमि ,
हिंदी हमारी मान ,
हम हिंदी कि सेवा करते है ,
हम जान उसी पे लुटाते है ,


हिंदी है मेरी मातृभाषा ,
हिंदी है मेरी जान !


है वतन हम हिंदुस्ता के ,
भारत मेरी शान ,
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा ,
हिंदी हमारी एकता ,
हिंदी में हम बस्ते है ,
हिंदी मेरी माता ,


हिंदी है मेरी मातृभाषा ,
हिंदी है मेरी जान !


हिंदी मेरी वाणी ,
हिंदी मेरा गीत , ग़ज़ल ,
हिंदी के हम राही ,
हिंदी के हम सूत्रधार ,
हिंदी मेरी विश्व गुरु ,
हिंदी मेरी धरती माता ,


हिंदी है मेरी मातृभाषा ,
हिंदी है मेरी जान !


एस के कपूर
श्री हंस बरेली
छंदमुक्त(तुकांत)


मैं    हिंदुस्तान       हूँ।
मैं ऋषि मुनियों  का    ज्ञान   हूँ।
मैं पुरातन मूल्यों का गुणगान हूँ।
मैं  इस पुण्य माटी  की  शान हूँ।।
मैं संस्कारों  की इक  शाला  हूँ।
मैं गीता   की   पाठ  शाला  हूँ।
मैं महाभारत की भी  हाला  हूँ।।
मैं राम   कृष्ण  की   धरा   हूँ।
मैं एक शान्ति दूत सा खरा हूँ।
मैं इतिहासों से   भी   भरा हूँ।।
मेरी  विश्व में ऊंची शान है।
सहयोग   ही मेरा ईमान है।
पर पराक्रम पर अभिमान है।।
मैंने दुश्मन को  धूल चटाई है।
बस तिरंगे  की शान बढ़ाई है।
शत्रु पर  भी   करी  चढ़ाई  है।।
हर भाषा  जाति   धर्म और वर्ग है।
जैसे बसता धरती पर कोई स्वर्ग है।
विविधता में एकता ही हमारा तर्क है।।
गुलशन हरियाली और बाग बगीचे।
झीलें   नदिया   पर्वत   ऊपर  नीचे।
गंगा यमुना इस मिट्टी को     सींचें।।
मेरे मस्तक पर हिमालय सिरमौर है।
तीन  ओर     सागर   का    छोर  है ।
सबसे बड़ा लोकतंत्र नहीं कोई और है।।
मैं तुलसी, गौतम ,गांधी गौरव गान हूँ।
मैं  अपना  भारत   देश    महान  हूँ।
मैं हिंदुस्तान हूँ।
मैं हिंदुस्तान हूँ


नाम -: कुँ० जीतेश मिश्रा "शिवाँगी"
पता -: धौरहरा-लखीमपुर खीरी


*काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020*


रचना -:
**********💐💐*************
देश का गौरव बनी ये देश का मान है हिन्दी ।
आन-बान-शान और अभिमान है हिन्दी ।।
है मिली हमको विरासत में जो अपने पूर्वजों से ।
ये हमारी  जान हमारी पहचान है हिन्दी ।।


सारी भाषा में मधुर मुस्कान है हिन्दी ।
सुर में लय के ताल का अनुमान है हिन्दी ।।
संस्कृति और सभ्यता की नींव पड़ती है जहाँ ।
संगीत की हर ताल का गुमान है हिन्दी ।।


हर शिखर का ये अमिट विश्वास है हिन्दी ।
इस जहाँ में प्रेम की इक आश है हिन्दी।।
शोणित के कणों में जोश का उन्माद भर दे।
बाँसुरी की मधुर तान में प्रेमरूपी वास है हिन्दी ।।


मातृभाषा है हमारी सभ्यता का मान रखती ।
कुछ ना अनुचित मुख से निकले इसका पूरण भान रखती ।।
तेज मुख पर रहता प्रतिपल  चन्दिका सी शीतलाता भी ।
मात्र अपने नाम से ही विश्व में ये शान रखती ।।


नाम  रतन राठौड़
मालवीय नगर, जयपुर-(राज.)


रचना कविता :: अपनी गलतियां
अपनी गलती, अपनो की गलती-
कौन गिनाता,    कौन बतलाता।
है दूध धुला कोई,   इस जगत में?
सबसे सस्ता प्रेम,  वही बिक जाता।
झांखो गिरेबां में ज़रा अपने अपने-
संग स्वेद मलमैल, स्वतः आ जाता।
खुद दृष्टि आंकते, बहुमूल्य स्वयं को-
दूजी चीज जौहरी,
सदा सस्ती परखता।
उठा अँगुली करे इशारा, हथेली जब -
इशारा तीन अंगुलिया, तुझ पे साधता।
अपनी अपनी गलतियां, कौन क्यों कहे-
सहृदय हमेशा ही,
अपनी गलती मानता।।


नीरजा शर्मा
चंडीगढ़
मातृभाषा


मातृभाषा हिन्दी
माँ सी मुझे प्यारी है
बच्चों की दुलारी है ।
बच्चे खुश हो जाते हैं
जब हिन्दी में बतियाते हैं
सब पर रौब जमाते है ।
मजा ज्यादा तब आता है
जब मुहावरों में अटक जाते हैं
समझने पर मुस्कुराते हैं ।
लोकोक्तियों की शान निराली
अर्थ छलकता अलग ही प्याली
बच्चों को हैं बहुत ही भाती ।
अब तो उनमे होड लगी है
कौन मुहावरे ज्यादा कहेगा
बात -बात में ज्ञान बढ़ेगा ।
हिन्दी है सबसे अनोखी भाषा
देती सबको अनेको शाखा
सबका मान भी बढ़ जाता ।
उच्चारण से ही लिखा जाता
सबसे स्टीक है यह भाषा
हमारे राष्ट्र की शान यह भाषा ।
हिन्द की शान
हिन्दी भाषा है महान
इसी से है मेरा भारत महान ।


जगदीश्वरी चौबे
लंका वाराणसी


    "अकेली मां "
बरसों लगे थे पैसे जुटाने में
अपने सारे खर्च काटकर ,
कभी चावल की टंकी में ,
कभी दाल के डिब्बे में ,
कुछ सिक्के छिपा देती
पोटली में बांध कर ।
आंचल फट जाता तो ,
बदल देती तरीका साड़ी बांधने का ।
गर्मी में उसे धूप न जलाती ,
सर्दी में उसके हाड़ न कांपते
वो मां थी ।
पैसे जो जुटाने थे उसे ।
बेटे के लिए घर बनाना था ।
आख़िर वो पल आ गया ।
बन गया दो कमरे का आशियाना ।
बेटे के पसंद की सभी चीजें ।
ख़ूब सजाती , संवारती ।
हाथ के छाले अब निशानी दे गए थे ।
पैरों की बिवाई अब नहीं भरेगी ।
बहुत गहरी हो चुकी है।
दर्द भी अब नहीं होता ।
घड़ी खुशियों की जो आने वाली थी ।
टपकती छत ने बहुत दूर रखा बेटे को ।
बेटा ,अब आएगा ।
मां ख़ुश थी ।
एक दिन चिट्ठी अाई ।
बड़े शहर में बड़ा घर मिल गया मां ।
अच्छा था ,
सो जाना ही था ।
अपने आशियाने को निहारती वो मां ।
आंखों से एक भी आंसू नहीं गिरे ।
याद अाई ,अपनी मां की बातें
सोच तू ख़ुद का
कोई नहीं है तेरा ।
बच्चा छोड़ दे ,
तू जा ।
लेकिन वो मां थी ।
बच्चा कैसे छोड़ती ।
वो तब भी अकेली थी ,
जब जूझ रही थी ।
वो तब भी अकेली थी ,
जब संवार रही थी ।
वो अब भी अकेली है ,
जब संवार चुकी ।


काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020


नाम - सुश्री अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
पता - जाम मार्ग  उमरानाला
जिला छिंदवाड़ा
म•प्र• पिन -480107
9098902567
             मुक्तक


बिसरती संस्कृति की नीव अब फिर ठान रखना है ।
हमें हिंदी की मर्यादा का प्रतिदिन मान रखना है ।
कि हर अक्षर है नागर का ऋचा सा मंत्र सा पावन ।
नयी पीढ़ी के हाथों में यही वरदान रखना है ।
                ग़ज़ल


संस्कारों की ये पिटारी है,
अपनी वाणी ही लाभकारी है ।


फूल अभिधा के लक्षणा लेकर,
व्यंजनाओं की ये तो क्यारी है ।


अपनी भाषा में बोलना सुनना,
भूलना भूल एक भारी है ।


ठेठ हिंदी का ठाठ तो देखो,
मन में रसखान के मुरारी है ।


कितनी भाषाएँ  हैं मनोरम पर,
सब में हिंदी बड़ी ही प्यारी है ।


अपने घर में दशा पराई सी,
देख कर मन बहुत ही भारी है ।


इंडिया अब कहो न भारत को,
'आरज़ू' अब यही हमारी है ।


रचना स्वरचित एवं मौलिक है ।


नाम--डॉ०कुसुम सिंह 'अविचल'
पता-- 1145-एम०आई०जी०(प्लॉट स्कीम)
रतन लाल नगर
कानपुर-208022 (उ०प्र०)


विश्व हिन्दी दिवस पर


काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10जनवरी 2020
काव्योत्सव हेतु रचना प्रेषित


       देवनागरी हिन्दी
      **************
नवरस छंदों से अलंकृता, श्रृंगार हमारा है हिन्दी,
मान और सम्मान देश का,भारत की पहचान है हिन्दी,
सूर,कबीर,तुलसी की धरती,हिन्दी रग रग में बसती है,
व्यंजना,लक्षणा और अविधा, आत्मा साहित्य की है हिन्दी।


वीणा के तारों सी झंकृत,जन जन की भाषा है हिन्दी,
भारत माता का भला सजा,माथे की बिंदी है हिंदी,
विज्ञान ज्ञान से सजी हुई,सम्प्रेषण की अद्भुत क्षमता,
भारत की शिक्षा संस्कृति की,समुचित परिभाषा है हिंदी।


वेद पुराणों की भाषा,संस्कृत की तनया है हिंदी,
प्राचीन से अर्वाचीन काल तक,देवनागरी है हिंदी,
दीप जलाएं हमसब मिल,हिन्दी के अविचल पथ पर,
पाथेय हमारा हो हिन्दी, अभियान हमारा हो हिन्दी।
***********************


वीरेंद्र सिंह 'वीर'
हेवी वॉटर कॉलोनी रावतभाटा
'कोटा' राजस्थान


अम्ल...
-----------


युगों-युगों के दर अंतर से
तू मुझको छलता ही रहा,
दीपक से गुलजार चमन,पर
क्यों बाती को सदा छला
जल कर रस्सी रही ऐंठ में
बल जैसे का तैसा ही रहा
विधि-विधान का दंभ दिखाकर
अम्लीय अम्लों का दंश दिया...


यत्र - तत्र का मंत्र रचाया
और देवों का वास बताया,
मुखोटा ओढा दशानन का
अक्सर तो बनकर कंस रहा...
कारावास की खूनी कालिख
कभी अगन का ढाह दिया...
विधि-विधान का दंभ दिखाकर
अम्लीय अम्लों का दंश दिया...


मुझे सोंदर्य की उपमा दे दी
मेरे अंग -अंग में रतन जड़ा,
चाहा जब तक खेला मुझसे
फिर कील कील कर छेद दिया
रिसते लहू कतरों पर भी तो
तेरे अट्टहास में कहकहा दिखा...
विधि-विधान का दंभ दिखाकर
अम्लीय अम्लों का दंश दिया...


छल बल कपटी कामी हो कर
शील हरण की हसरत में रहा,
चोला पहना था उजला पर
बनकर तू क्रूर आखेटी रहा,
कृष्णा जानकी तुलसी को छल
श्योना को पाषाणी रूप दिया
विधि-विधान का दंभ दिखाकर
अम्लीय अम्लों का दंश दिया...


तृष्णा तृप्त न हुई सागर से तेरी
अहम तेरा था हिमगिरी से भारी,
मन मोहनी छवि इस नारी पर
प्रीत की रीत सुंदर क्यारी पर,
दूषित आशाओं का जाल बनाकर
गिन गिन परों को काट दिया...
विधि-विधान का दंभ दिखाकर
अम्लीय अम्लों का दंश दिया...


वंदना रश्मि तिवारी
पता - अशोक नगर इटावा उत्तर प्रदेश


पिता हमारा संभल है
तो मां है सधन धूप में छांव
ईश्वर का साकार रूप है
शीश झुकाऊं इनके पाव
जब से मैं दुनिया में आयी
सदा  नेह है बरसाया  है
निश्छल पावन सी ममता से
मेरा मन हरषाया है
पिता हमारे ने जीवन में
मान मुझे दिलवाया है
शीश उठा चल सकूं सदा
ऐसा सम्मान दिलाया है
मैं हूं बेटी तेरी बाबुल
तेरा मान  बढाऊंगी
है आशीष दिया तुमने
मैं और निखरती जाऊंगी
मैं हूं उस मां की परछाई
जो है एक ममता का रूप
मिला मुझे आशीष तुम्हारा
सह लूंगी जीवन की धारा
गर्व मुझे है मात पिता पर
ये ही मेरे ईश्वर हैं
दीया  मुझे आशीषो के फल
यह मेरे परमेश्वर है


नाम - पुरंदर शर्मा


पता - मु.पो. मूण्डवाड़ा, वाया - खूड़, जिला - सीकर, राजस्थान।


कविता** ठान लो **


जब मानव ठान लिया।
पाषाण पिघल लिया।।


हठी सिंधु पर मग बना दिया।
दशरथनन्दन संकेत पा लिया।।


वासुदेव सानिध्य पाथ लिया।
देखो कौरवों परास्त किया।।


एकलव्य ठाना,गुरु मूर्त्ति निपूणता लाया।
वाचाल श्वान मूकता कर दिया।।


गुरुदेव वचनबद्धता निभाया।
तब अंगुठा भी कटवाया।।


द्विज अवतारी शिक्षा ग्रहण।
भ्रमर पीड़ा किया सहण।।


एक न अनेक उदाहरण ऐसे।
ठानने सिद्ध हुए कार्य जैसे।।


जब मानव ठान लिया।
पाषाण पिघल लिया।।


गीता गुप्ता "मन"
उन्नाव,उत्तरप्रदेश


काव्यरंगोली हिन्दी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020


   हिन्दी


हिंद देश की भाषा हिन्दी,
भारत माँ की आशा हिन्दी,
जन-जन के ह्र्दयों में बसती,
नेह की परिभाषा हिन्दी ll


वागेश्वरी का वरदान है हिन्दी,
भारतीय का मान है हिन्दी,
वन्दनीय है माँ समान जो,
माँ भारती की शान है हिन्दी ll


भाषाओं की जननी हिन्दी,
है संस्कृत की अनुगमनी हिन्दी,
शब्द-बाण तरकश में भरे है,
सुह्र्द सरल मृगनयनी हिन्दी ll


कालजयी इतिहास है हिन्दी,
शीत कभी मधुमास है हिन्दी,
शब्दों से छलकती मादकता,
यमक कहीं अनुप्रास है हिन्दी ll


जीवन का आधार है हिन्दी,
बहती गंगा की धार है हिन्दी,
सरस, मनोरम,मधुर,सरल,
अनुपम एक संसार है हिन्दी ll


आज शिखर से गिरती हिन्दी,
अस्तित्व को अपने लड़ती हिन्दी,
है राष्ट्रभाषा अपनी फिर क्यू,
गिरती संभलती बढती हिन्दीl


निधि मद्धेशिया (नम)
पता- कानपुर नगर
रचना-  *पंचतत्व*


पक्षी से सुन जाह्नवी
का यौवन भार
पगला जाती मन्द बयार।


बेसुध पवन कणों को
करती अंगीकार।


अम्बर से न मिले धरा,
ध्यान देता संसार।


खुशी दूर से देख
मुफलिश मना
लेता त्योहार।


सलाम दें ढ़लते
सूर्य को,उन जनों
को मेरा नमस्कार।


कुदरती चीज के
लिए तड़पता
आदमी का प्यार।


जर्रे-जर्रे में भरा
प्रकृति के,जीवन सार।


धरती को देकर
वापस लेना
ए आसमा
सुना न देखा
ऐसा प्रेम व्यापार।


निःस्वार्थ नहीं
अगर फिर यह
प्रेम कैसा आधार।


मूल्य हर वस्तु
का चुकाना आसान
नहीं
फिर भी जीवन
सार्थक है,
पंचतत्व साकार।





पंकज कुमार शुक्ल
ग्राम-पुरैना शुक्ल
पोस्ट-करायल शुक्ल
तहसील-बरहज
जनपद-देवरिया
----------------------------------------              
   01
हमे अपना बनाकर  कहा  चल दिये,
गीत  गंगा  बहाकर  कहा  चल दिये।
रात धड़कन भी कहने लगी सांस से,
हमे सपना दिखाकर कहा चल दिये।
                    02
हलाहल  जग का  जो  हजम  किया,
उसी शंकर-सुकरात का भजन किया
दिनकर    की    रश्मियाँ   साक्षी    है,
पंकज  फिर सबको का नमन किया।
                  03
एक सपना  नयन मे  सजा लिजिए,
प्यार पंक्षी को  अपने बचा लिजिए।
प्यार मे आज पंकज कहे और क्या,
गीत  को मीत अब से बना लिजिए।
                    04
गीत गजलों को अपना  बना लिजिए,
भाव अम्बर तलक भी बहा  लिजिए।
यह पंकज  अकिंचन  कहे और क्या,
छंद की बन्दगी पर  मुस्कुरा लिजिए।
                     05
आख अंजन किया मीत को पा लिया
माथ चन्दन किया प्रीति को पा लिया।
अधर ने जो किया कैसे कह दे पंकज
गीत वन्दन किया जीत को पा लिया।
                      06
सांपो ने लिपटकर चन्दन बना दिए,
कीचड़ उछालकर पंकज बना दिए।
तू पारस हम लोहा जनम-जनम के,
प्रिये छू-छू कर के कंचन बना दिए।
                  06
आज किसका  धरा पर नमन हो रहा,
प्यार  से प्यार  का  आगमन  हो रहा।
आंखो  खोलो  प्रिये  प्रेम  के  संग  मे,
प्यार के  भाव का  आचमन  हो रहा।
                    07
चाहत  की कैसी  लगन  हो  गई,
क्या  सोचकर  तू  मगन  हो गई।
मनमीत जब-जब किया मै नमन,
धीरे-धीरे  सही  तू  गगन  हो गई।
                 08
आइए साथ  चन्दन करा  लिजिए,
आइए  प्रात  वन्दन करा  लिजिए।
पंकज  अकिंचन  करे  और  क्या,
आइए आंख अंजन करा लिजिए।
                    09


छोटा हूँ छोटा सा  सम्बन्ध हमारा है,
मन से  मन का  अनुबन्ध  हमारा है।
तुम धरती हो अम्बर हो बडे हो प्रिये,
छू लेना हाथो  से लघु छंद हमारा है।
                  10
आज  बढती  हमारी  प्रबल  आस है,
देखने  रूप  को  आया  मधुमास है।
फ़ूल  की  गंध  को  विखरा  दो प्रिये,
होठ पर अनबुझी सी अमर प्यास हैं।
                    11
कौन  सा रस  गंध लेकर,
नेह  का  अनुबंध  लेकर।
तू आ  गयी  गीतो  मे मेरे,
प्यार का नव छन्द लेकर।
 


शीमती अरुणा अग्रवाल ।लोरमी।जिला मुंगेली,लोरमी ।छःगः ।


गोधुली _बेला।
***********


गोधुली बेला होती अति सुंदर ।
सभी लौटते है अपने घर।
पशु पक्षी किसान व्यापारी।
कार्य पूर्ति की है तैयारी।
अपने घर सब हुए रवाना।
जिसका जैसा जहां ठिकाना।
प्रकृति भी होती सिन्दूरी।
जैसे मांग हो गयी पूरी।
आरती शंख अजान सुनाती।
डाली डाली है मुस्काती।
परम शांति लगती हर ओर।
जलते दीप पुंज चहुं ओर।
संध्या के पहले की बेला।
जगह जगह लगता है मेला।
बच्चे खेल रहे है खेल।
छुक छुक छुक छुक करती रेल।


मेघना रॉय शोधार्थी
वाराणसी(उत्तर प्रदेश)


*काव्य रंगोली हिन्दी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10जनवरी 2020*
*शीर्षक ः   मोबाइल*


मैं और मेरा मोबाइल,
जान से प्यारी सखी हमारी,
फुर्सत के क्षण सेल्फी लेती,
कभी न उसको अकेला रखती।


सोते जागते बातें करती,
खाते पीते साथ में रखती।
मोबाइल संग समय ऐसा बीता,
भूल गई वीकली टेस्ट है अपना।
बस , फिर क्या
ऐसा हुआ धमाल,
नम्बर मेरे आए कमाल
घर मे मेरी हुई धुलाई,
हाथ से छीनी गई मोबाइल,
माँ की तरफ से आया फरमान,
बैटरी निकाल ,करो इसे बेजान।।


         
श्रीयांश गुप्ता
शाहदरा, दिल्ली -


भोपाल गैस कांड


दिसंबर का महीना
ठंडी - चाँदनी रात
जिसके आगोश में
सोने वाला था भोपाल।
अपना काम निपटा कर
सोने को बेकरार था हर इंसान।
पर अन्जान थे वह कि
आने वाला है उनके जीवन में काल।
नहीं जानता था कोई भी
नहीं मिलेगा उन्हें नीला आसमान
क्योंकि सूँघने वाले थे वो
अपनी ही मौत का सामना।
आँधी रात होते ही
मच गया भोपाल में कोहराम
क्योंकि बिछ चुका था वहां
ज़हरीली गैस का जाल।
अचानक ही तड़प उठा
वहां का बूढ़ा, बच्चा और जवान।
कर रहा था वह हर मुमकिन कोशिश
बचाने के लिए अपनी जान।
पर हर बार के साथ ही
खो रहा था वह थोड़ी सी साँस।
यह दर्दनाक मंजर देख
दहल गया था पूरा हिंदुस्तान।
जब खून के आँसू बहा रहा था
भोपाल का हर इंसान।
यह नजारा देख कर
रूह कांप उठी होगी इंसानियत की।
जब माँग रहा होगा हर इंसान
भीख अपनी सलामती की।
पढाई - लिखाई और दवाई
कुछ काम नहीं आई उस रात को
जब तड़प उठा सारा भोपाल
हर एक साँस को।


कवि संतोष अग्रवाल "सागर"
Mp
नर नारी की प्यारी हिंदीl
भारत की है न्यारी हिंदीll
सब धर्मों रक्षा करती हिंदीl
भारत के मा थे की बिंदीll
जगह-जगह बोली जाति हिंदीl
सैनिकों का मान है हिंदीll
भाषा का सम्मान है हिंदीl
एक दूसरे की जान है हिंदीll


नाम - संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली तह० अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब
गीत


माँ हमारी भारती की जो बनी शुभ शान ये ,
गा रहे हैं मिल सभी जन आज हिंदी गान ये।


रच गए तुलसी इसी में राम का गुणगान कर ,
सूर ने भी लिख दिया था श्याम का जो ध्यान कर।
जायसी ने जो लिखा है हिन्द की पहचान है ,
गा रहा हूं गीत हिन्दी का हमें अभिमान है।


वीर रस की खान है श्रृंगार की भी जान ये
गा रहे हैं मिल सभी जन आज हिंदी गान ये।


सोरठा दोहा निराले देख लो यह छंद है ,
तुम उठाकर लेखनी कर दो यही स्वछंद है।
राष्ट्र की भाषा प्रथम का मिल इसे ये राज दो ,
मान में राष्ट्रीय भाषा का सुनो तुम ताज दो।


हिंद से मैं मांगता हूँ दो मुझे अब दान ये ,
गा रहे हैं मिल सभी जन आज हिंदी गान ये।


कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम'
117सी स्पेशल गांधीनगर इन्दौर 453112( म.प्र.)


****************
लेने - लेने आता है
****************
लेने-लेने आता है तू
मिलने भी कभी आया कर,
मोह छोड़ दें मन भर का तू
बेमन से भी आया कर ।
जीवन की ये डोरी इतनी
जितनी ईश्वर ने दी है ,
क्यूं कर खींचा करता इतना
काहे की मजबूरी है ।
सुबह-शाम के फेरों में तू
इतना डूबा रहता है ,
भरी दोपहर पूरी मिलती
फिर क्यूं रूठा रहता है ।
टूटे हुए मनोबल से भी
क्या जीवन ये चलता है,
कर्म की पगडंडी पर ही
सारा जीवन फलता है ।
धरती ने जीवन भर तुमको
कितनी सौगातें दीं हैं ,
ध्यान नहीं है इसका तुमको
फिर-भी इतनी श्वांसें दी हैं।
अगर-मगर के फेर में पढ़कर
जीवन को बर्बाद न कर,
बांटता चल तू खुशियां सारी
और सबकोआबाद भी कर।
देने की जो राह चला तो
खुशियां मनभर आएंगी ,
स्वर्ग धरा पर बस जाएगा
धड़कन भी मुस्कायेंगी ।
लेने-लेने आता है तू ....
--------------------------


- बबली सिन्हा
स्थान - गाज़ियाबाद, उत्तरप्रदेश


*मोह*


छूट जाते हैं
समय की आंधी में
कुछ सम्बन्धों से साथ


पर जो नहीं छूट पाता
वो है उसमें निहित मोह


मन अकारण ही
उसे याद करता
और मौजूदा वक्त
पराया सा लगने लगता


मन अशान्त
खोया-खोया सा रहता
उसकी कमी
वक्त के हर लम्हें में
खालीपन भर देता


कोई अर्थ नहीं
उन सम्बन्धों के होने न होने से
पर फिरभी
कुछ है अमूर्त अनजाना सा


जज्बातों की अनकही सुगबुगाहट
दिल को पोषित करती है
और एहसासों की नरमी से
उद्देलित हो उठता है
मन का कोर-कोर


परिस्थितियां हंसती है
हम रोते हैं
और इन्हीं आसुओं में
मोह के सम्वेदनाओं को सिसकियों में समेटे
दिल के कोने में पुनः
उसे जज्ब कर लेते हैं।



सरिता बाजपेयी
शाहजहाँपुर


छंद (१)
सभी हिंद के वासी शुद्ध अंतः करण द्वारा ,
राष्ट्रभाषा आगे बढ़े मन से सम्मान दें |
राष्ट्रप्रेम गौरव का मान गुणगान हिंदी ,
भारत की 'नागरी' है मूल भाषा ध्यान दें |,
तुलसी , कबीर ,रसखान मीरा भक्ति भाव
जन्मी है ये संस्कृत से लेखनी को मान दें |
व्याकरण , अलंकार , छंद रस हिंदी भाषा ,
निज सभ्यता को विश्व भाल पहचान दें |,


रीतु देवी"प्रज्ञा"
-करजापट्टी, केवटी, दरभंगा, बिहार
विधा:-कविता
आओ चले गांव


आओ चले गाँव की  ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती, उन्मुक्त गगन ओर
रस बस जाए गाँव में ही,
स्वर्ग सी अनुभूति होती यहीं।
खुला आसमाँ, ये सारा जहाँ
स्वछंद गाते, नाचते भोली सूरत यहाँ।
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
आमों के बगीचे हैं मन को लुभाते,
फुलवारियाँ संग-संग  हैं सबको झूमाते,
झूम-झूम कर खेतों में गाते हैं फसलें,
मदहोश सरसों संग सब गाते हैं वसंती गजलें।
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती, उन्मुक्त गगन ओर
संस्कारों का निराली छटा है हर जहाँ,
नये फसले संग त्यौहार मिलकर मनाते यहाँ।
प्यारी बोलियाँ, मधुर गाने गूँजते कानों में
स्वर्णिम किरणें चमकते दैहिक खानों में
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती, उन्मुक्त गगन ओर
एकता सूत्र में बंधे हैं सब जन,
भय , पीड़ा से उन्मुक्त है सबका अन्तर्मन।
पुष्प सा जनमानस जाते हैं खिल यहाँ,
वर्षा खुशियों की होती हैं हर पल यहाँ।
आओ चले गाँव की ओर
गाँव की मिट्टी बुलाती, उन्मुक्त गगन ओर
             


ऋषि कुमार शर्मा
नकटिया
पोस्ट पी0 ए0सी0 बरेली
          बेटियां
------------------------
नवयुग का नया गान यह होती है बेटियां
भगवान का वरदान यह होती है बेटियां
माता पिता के मान को हरदम जो बढ़ाती
माता-पिता का ही तो है अभिमान बेटियां।
ससुराल में जाती हैं समर्पण के भाव से
ससुराल में ही फूल खिलाती है बेटियां।
चारों दिशाओं में यह महक छोड़ जाती हैं
ससुराल को गुलशन यह बनाती है बेटियां।
बेटी का पिता बन के सदा मान पाओगे
आकाश तक यह नाम ले जाएंगी बेटियां।
हर क्षेत्र में यह अपने झंडे गाड़ रही हैं
अंतरिक्ष तक को भेद यह देती है बेटियां।
बेटी के जन्म पर यूं तुम निराश ना होना
परिवार का आधार यह होती है बेटियां।
बेटी को पाल पोस कर समर्थ बनाओ
पढ़ लिख के ही तो नाम कमाती हैं बेटियां।
हमको मिली प्रकृति से खजाने की तरह से
अनमोल सा उपहार यह होती है बेटियां।
नवयुग का नया गान यह होती है बेटियां
भगवान का वरदान यह होती हैं बेटियां।


संगीता शर्मा कुंद्रा
चंडीगढ़


सफेद चादर फैली है हरी वादियों में


सफेद चादर फैली है हरी हरी वादियों पे।
मन क्यों नहीं हो जाता इसी तरह शांतीमय।


आंखें भी पाती है सुकून दृश्य अनुपम देखकर।
मन क्यों नहीं हो जाता शांत यह सब देख कर।


प्रकृति किस तरह संवारती रहती है खुद को।
मानव क्यों नहीं संवार पाता है इसी तरह खुद को।


पशु पक्षी हर परिस्थिति में शांत हो घूमते हैं।
मानव क्यों परिस्थितियां बदलते ही बदल जाते हैं।


आओ सीखें प्रकृति से , संभालते रहना खुद को।
हर परिस्थिति में, शांत होकर रहना और रखना खुद को।



भूप सिंह 'भारती',
आदर्श नगर, नारनौल (हरियाणा)


"जय हिंदी हिंदुस्तान की"


आओ मिलके गाथा गाये, जन जन की जुबान की।
संस्कृत से निकली हिंदी, भाषा हिन्दुस्तान की।।


दुनिया में लोगों, भाषाएँ कई,
इनसे जागी है, आशाएं नई,
भिन्न-भिन्न सभ्यताएं, आई-गई,
संस्कृत से निकली है, भाषाएँ सारे जहां की।


आज जग में लोगों, छाया अमेरिका,
मेरे देश के आगे, वो भी है फीका,
हमसे ही सीखा, जीने का सलीका,
आज नकल कर रहे हैं सारे, हमारे वेद पुराण की।


भारत में भाषा, अनेक सुनो,
हिंदी है सबसे, भई नेक सुनो,
हम सबको बनाये, एक सुनो,
हिंदी हमारी मातृभाषा, जय हिंदी हिन्दुस्तान की।


नर-नर में लोगों, नारायण रमता,
भारत में पाये, अनेकता में एकता,
हिन्दी मातृभाषा, दे हमको ममता,
'भारती' गाये गौरव गाथा, अपनी ही जुबान की।


आओ मिलके गाथा गाये, जन-जन की जुबान की।
संस्कृत से निकली हिंदी, भाषा हिन्दुस्तान की।।



-मीना विवेक जैन  दीनदयाल चौक वारासिवनी


*कविता*


*मातृभाषा*


सुगम सरल
स्वाभाविक भाषा
हमारी प्यारी
मातृभाषा
भावों को सहजता
से व्यक्त करती
हमारी प्यारी
मातृभाषा
राष्ट्रीय गौरव और
स्वाभिमान प्रदान करती
हमारी प्यारी
मातृभाषा
स्वतंत्र भारत में
सम्मान प्राप्त करती
हमारी प्यारी
मातृभाषा


हरिशंकर पाटीदार
लिम्बोदा हाटपीपल्या
(देवास
आया एक नया साल रे ,
हम स्वागत करने आये हैं।
लाये खुशियों की सौगात रे,
हम आशीष माँगने आये हैं ।।


कोई रोटी को ना तरसे ,
न आँखों से आँसू बरसे ।
ना हो कोई अनाथ रे ,
हम आशीष माँगने आये हैं...


हो देश में भाईचारा ,
रहे एकता का नारा ,
हो सबका ही विकास रे...
हम आशीष माँगने आये हैं ।।


ये जाति धर्म के झगड़े ,
ये नेताओं के रगड़े ।
सद्बुद्धि दे भगवान रे...
हम आशीष माँगने आये हैं ।।


ना सूखे की मार सतायें ,
ना अतिवर्षा भी आये ।
और पाले से बचे किसान रे..
हम आशीष माँगने आये हैं ।।


नारी की लाज ना जाये ,
दुराचारी बच ना पाये ।
हर बेटी हो खुशहाल रे...
हम आशीष माँगने आये हैं ।।


आया एक नया साल रे....
हम आशीष माँगने आये हैं ।।


******************


डॉक्टर अजीत कुमार श्रीवास्तव "राज़"
जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश,
            मुक्तक
   =============
नैन में मेरे ऐसे सपन आए हैं
ज्यौं  अयोध्या में राम औ लखन आए हैं
एक ही दीप से घर उजाला हुआ
जीतकर युद्ध मेरे सजन आए हैं


अवनीश त्रिवेदी "अभय"
सीतापुर
सशक्त युवा


युवा कर्णधार होता हैं देशों की  परिपाटी  का।
तन मन न्यौछावर करते मान बढ़ाते माटी का।
युवा विवेकानंद बन कर इस जहाँ रौशन करते।
हर बंजर मरु भूमि को भी महकता गुलशन करते।
कंधें  पर  जम्मेदारी   मुठ्ठी   में तकदीरें   होती।
निर्णय   क्षण  में  लेते  कदमों में जागीरें  होती।
कितना भी प्रतिकूल समय साहस नही  छोड़ते।
होती   जो  विपरीत  नदी  पल  में  उसे  मोड़ते।
सबको खुशहाली देते नित नव  आयाम  बनाते।
कष्ट अकेले सहते  खुशियाँ सबके साथ  मानते।
जब  युवा  सबल  होगा  तो  हर   देश  बढ़ेगा   आगे।
फिर सबको सब कुछ मिलेगा बिना ही कुछ भी माँगे।
सभी मौक़े इनको मिले अपना हुनर दिखाने का।
कोशिश कोई छूट न जाए रूठे  हुए  मनाने  को।
रोजगार के  लिए भी कोई युवा  न शोषण  झेलें।
सब हाँथ बने मजबूत  अब  चाँद  तारों  से  खेलें।
मुश्किल कितनी भी हो इसका ज़रा सा गम नही हैं।
कोशिशें जो छोड़  दे  उनमें  से  युवा  हम  नही  हैं।
हर देश की हैं शान  युवा  यह  सदा  ही  ध्यान  रहें।
जब   तक  गंग  में  धार  हैं  हमारा  हिंदुस्तान  रहें।


सुबोध कुमार शर्मा
गदरपुर ऊधम सिंह नगर
उत्तराखण्ड
      ,,,,,,"""""""""""""""""""""
हिंदी दिवस पर  विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी


यह कैसी शर्मिन्दी      है हिंदी भारत मां की बिंदी है।
अपनी     ओर निहारो तुम
इसको जरा      सँवारो तुम ।।
भारती का सौंदर्य है    यह
इसकी जग में    बुलन्दी  है।।


सरल विमल है जिसकी छवि
ज्योतिर्मय हो        जैसे रवि
प्रकाश पुंज है        भावों का
मर्यादा की          ह दबंदी है।""""""""""""


मानवता का।        गौरव है
भारत मां का          वैभव है
कविता की वाणी       है यह
यह आदिकाल से जिंदी   है,,,,,,,,,,,,


जो देववाणी से  उद्भिद     हो
औ जनवाणी से    सुरभित हो
जो कोटि कंठ    का हार बनी
मन - भावन       ऐसी हिंदी है। ।।,,,,,,,,,,,


सजग हो जाओ सत्ताधारी
मत समझो  इसको बेचारी
अमर रहेगी    तब तक यह
जब तक यह सांसे जिंदी है।।,,,,,,


यह चंद्रवरदाई की वाणी है
रासौ    की अमर कहानी है
भूषण की नव महिमा है यह
गाथाओं की मधुरिम संधि है।।,,,,,


सूर का सागर है अपरिमित
तुलसी का पावन राम चरित
मीरा का         राग गोविंद है
रसखान की राधा बंदी है।।,,,,,,


बिहारी की बिरही नायिका
रहीम के नीति     नाटिका
घनानंद        की प्रेम कथा
अंग्रेजी की       प्रतिद्वंदी है।।।।।,,,,,,,,


राष्ट्रभाषा      का गौरव तो
  हिंदी ने     हीं      पाया है
सब भाषाओं का प्यार बनी
ऐसी जन-जन की हिंदी है।।,,,,
                        
            


वसंत जमशेदपुरी
मानगो,जमशेदपुर
झारखण्


कविता का शीर्षक-
चुप रहो साथियो षडयंत्र कोई गहरा है


चीख है,पुकार है
फिर भी सन्नाटा है,
नैतिकता के गाल पर
अनैतिकता का चाँटा है |
सत्य की जबान पर
आततायी पहरा है |
चुप रहो साथियो
षडयंत्र कोई गहरा है |


पुरस्कृत होना है
तो राष्ट्र का विरोध कर,
सत्य को असत्य बता
ऐसा कोई शोध कर |
बहते हुए पानी को
बोल दे कि ठहरा है |
चुप रहो साथियो
षडयंत्र कोई गहरा है |


धर्म की ,संस्कृति की
बात नहीं करना,
बेवजह बताओ भाई
काहे को मरना |
हर तरफ मुखौटे हैं
चेहरे पर चेहरा है |
चुप रहो साथियो
षडयंत्र कोई गहरा है |



संजय जैन (मुम्बई)
शहर: मुम्बई
हिंदी भाषा
विधा : कविता


हिंदी ने बदल दी
प्यार की परिभाषा।
सब कहने लगे
मुझे प्यार हो गया।
कहना भूल गए
आई लव यू।
अब कहते है
मुझ से करोगी..।
कितना कुछ बदल दिया
हिंदी की शब्दावली ने।
और कितना बदलोगे
अपने आप को तुम।
हिंदी से शोहरत मिली
मिला इसी से ज्ञान।
तभी बन पाया
एक लेखक महान।
अब कैसे छोड़ दू
इस प्यारी भाषा को।
ह्रदय स्पर्श कर लेती
जब कहते है आप शब्द।
हर शब्द अगल अलग
अर्थ निकलता है।
तभी तो साहित्यकारों को
ये भाषा बहुत भाती है।
हर तरह के गीत छंद
और लेख लिखे जाते है।
जो लोगो के दिलको छूकर
हृदय में बस जाते है।
और हिंदी गीतों को
मन ही मन गुन गुनते है।।


अमलेन्दु शुक्ल
सिद्धार्थनगर उ०प्र०


शब्दों का भण्डार है हिन्दी।
ममता का उपहार है हिन्दी।
माँ के होठों ने जो सिखलाया,
अपनों का अनुपम प्यार है हिन्दी।
ममता का उपहार है हिन्दी,
भाषाओं का त्योहार है हिन्दी।
शब्दों का भण्डार है हिन्दी।


तोतले शब्दों से दादी रीझे,
ऐसा एक मनुहार है हिन्दी।
शब्दों का भण्डार है हिन्दी।
करते प्रयोग बहुसंख्य इसे,
भाषा नहीं, माता कहें जिसे।
हिन्द का वह श्रृंगार है हिन्दी
शब्दों का भण्डार है हिन्दी।


क्षमता इसकी अद्भुत,न्यारी,
हमको प्राणों से भी प्यारी।
भाव जन्मते मन में जो भी,
देती उनको आधार है हिन्दी।
शब्दों का भण्डार है हिन्दी।


वर्णों को छोटा,बड़ा बनाकर,
भाषा का करे श्रृंगार है हिन्दी।
नहीं कोई व्यापार है हिन्दी,
अतुलनीय उपहार है हिन्दी।
शब्दों का भण्डार है हिन्दी।।


           



अंजना कण्डवाल 'नैना'
         पौड़ी गढ़वाल उत्तराखण्ड
          


आग बन तू'*


मुर्दा शहर,
अकेले कैसे जाएँ,
अंजान डर ।


सुनी हैं राहें,
सिमटी सी लड़की
गिद्ध निगाहें।


ख़ूनी दरिन्दे,
फंसाने को हैं बैठे,
बिछा के फन्दे।


आहत मन,
गिद्धों की नज़र से,
कैसे बचायें,


मूक समाज,
लाचार गरीब की,
सुनाता कहाँ।


कैसे जगाऊँ?
जगे हुए सोये हैं
ज़िन्दा लाशों को।


कैसे मैं लाऊँ?
इन ज़िन्दा मुर्दों में,
जन चेतना।


जगाना होगा,
अब स्वयं ही सोई,
आत्म चेतना।


खौलना होगा,
रगों में दौड़ रहे,
गर्म लहू को।


बज़्र बन के,
गिर पड़ो तुम जो,
ख़ाक कर दो।


उठ खड़े हो,
मुर्दो को जला तुम,
राख़ कर दो।


जान खुद को,
शक्ति का रूप तुम,
अबला नही।


नाश कर दे,
कर बला को खत्म
काल बन के।


तू है ज्वाला,
जला के राख़ कर,
बन मिशाल।


नीलम राकेश
, केशव नगर, सीतापुर रोड, लखनऊ


मानवता


इस पावन धरती पर
जन्म लिया ।
धर्मों की खेती
होती इस पर।
मैं तो जानू इतना ही
धर्म बड़ा सबसे बस
है मानवता!


कर्तव्य की वेदी
पर हम
नित्य कसे जाते हैं।
पर
मूल भावना कर्तव्य की
है मानवता!


स्नेह भावना अनुभूति
का मूल
है मानवता!
इंसानियत का
भी मापदंड
है मानवता !


स्वार्थ से परे
धर्म-कर्म का सिरमौर
है मानवता!
जिसका कोई नहीं
उसका सहारा
है मानवता!


धर्म बड़ा सबसे बस
है मानवता!


==================


-डॉ सुरंगमा यादव
जानकीपुरम विस्तार
निकट मुलायम तिराहा
      लखनऊ


कविता


*बढ़ता चल*


अंधेरों से हम
नहीं डरने वाले
अंधेरों को करके
सूरज के हवाले
हम चलते रहेंगे
यूँ ही मतवाले
पाँव में बेशक
पड़े अपने छाले
कंटकों  से ही हमने
काँटें निकाले
और क्या हम सुनायें!
ढंग अपने निराले
चले जा रहे हम अकेले
खुद ही खुद को संभाले
धरा भी अकेली
चाँद, सूरज अकेला
मगर उनका कोई
सानी नहीं है
कह रहा मन निरन्तर
चलाचल
गंवाये बिना पल


==================
..मधु गुप्ता "महक"
पता....सीतापुर     जिला ..सरगुजा
           छत्तीसगढ़


कविता


*भजन*


रे मन रख ले जरा सा धीर,
वक्त रहते ही दूर होगी,
तेरी सारी पीर....
रे मन.............


शैया लगाया काम क्रोध का
पग घुघरुं बाँधा माया का
अब तो भज ले प्रभु का नाम
क्यूँ होता है अधीर...
रे मन..........।।


ये जग गुण अवगुणों का मेला,
चंचल मन खेले है कई  खेला,
दुर्गुणों को त्याग के बंदे
पावन करले शरीर.....
रे मन...........


==================
वंदना दुबे
आनंदेश्वर मार्ग धार , मप्र


वचन तुम्हे निभाना होगा


संकट में है प्रजा हिन्द की
वचन तुम्हे निभाना होगा
बहुत हो रही धर्म हानि
हे ! कृष्ण! तुम्हे आना होगा


कुछ पाँडव को छोड़ शेष सब
दुर्योधन-से व्यभिचारी
तब  थी द्रोपदी एकमेव
अब द्रोपदियों की संख्या भारी
सबकी लाज बचाने तुमको
धरती पर आना होगा
संकट में है  प्रजा हिन्द की  --------


गोपालक बन मटकी फोड़ी
माखन खूब  लुटाया
अबके ये गोरक्षक कैसे
दूध दही को तरसाया
नकली दूध का फैला धंधा
शिशु के प्राण बचाना होगा
संकट में है प्रजा हिन्द की ------


कण-कण में रिपु-कंस बसे हैं
शासन जिनका अत्याचारी
नहीं भरोसे लायक कोई
लूट रहा वो जिसकी बारी
इन बगुलाभक्तों के छल से
आकर हमें छुड़ाना होगा
संकट में है प्रजा हिन्द की -------


खूब  धरा का हुआ है दोहन
षड्ॠतुओं का बिखरा है क्रम
प्राणवायु भी दुर्लभ अब तो
सूखा पड़ा, कहीं जल प्लावन
उँगली में गोवर्धन लेकर
सबके प्राण बचाना होगा
संकट में है प्रजा हिन्द की
वचन तुम्हे निभाना होगा ।


==================
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'
(सहायक अध्यापक)
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द,
जनपद- महराजगंज, उ० प्र०


'हर सुबह हर शाम'
--------------------------
एक गीत की तरह
कोई आवाज़ आती है
मीठी सी प्यारी सी
कदाचित् वह कोयल है जो
गीत गाती है
हर सुबह हर शाम......


जगाकर मेरे सुप्त हृदय को
खो जाती है या
छिप जाती है नीड़ में
देखता रहता हूँ देर.. तक
उस छायादार बृक्ष को
हर सुबह हर शाम....


फिर जाती है नज़र
सामने की खिड़की पर जो
खुलती है... फिर बन्द हो जाती
फिर खुलेगी जब
मुझे नींद आने को होगी
देखता रहता हूँ उसी को
हर सुबह हर शाम.....


कितनी निष्ठावान है
वह कोयल, वह चेहरा
जो छिपाये हुए है हृदय में
कसक, वेदना और पीड़ा को
और मैं.... चौंक पड़ता हूँ
ज़रा सी आहट पर
कदाचित् वो.... आये...
हर सुबह हर शाम.......
हर सुबह हर शाम।


==================
-पवन गौतम बृजराहीबमूलिया कलाँ
जिला बाराँ(राज)


/गीतिका)
*
प्रबल भावों विचारों का नवल उत्थान है हिन्दी।


हमारे पूर्वजों के रक्त  का  अनुदान है हिन्दी।


इसे जगमग सजाना है दुनिया के आँगन में.....


परम उद्देश्य पाने का हृदय आह्वान है हिन्दी।


खिले निज गन्ध भाषा सी  रहे हिन्दी बहारों सी.....


हमारी मातृ भाषा का अमर  वरदान है हिन्दी।


हिन्दी जाँ हमारी है ओ हिन्दी माँ हमारी है........


रस और छन्द के उद्गार का तूफान है हिन्दी।


लिखो हिन्दी पढो हिन्दी पुकारो नेह से *गौतम*.....


द्विवेदी,गुप्त,दिनकर का स्वप्न सम्मान है हिन्दी।


==================
नाम       निशा"अतुल्य"
पता        देहरादून
रचना      ऐसा क्यों होता है


गूंगी -पाती


मौन भाव मेरे नैनो के
पढ़ सको तो पढ लो साथी
गूंगी पाती मेरे हिय की
नैनो में ही बस दिख पाती ।


समझो साजन मौन की भाषा
पीर जिया की ये समझाती
तुम बिन सूना मेरा जीवन
बात तुम्हे है ये बतलाती ।


तुम आओ तो बरसे सावन
बंजर मन तुमको दिखलाती
फूल मुरझाए जब उपवन के
मन की बात नही कह पाती ।


जीवन छोड़ चला जब आशा
मिलन की रात नही सज पाती ।
अब तो मूक है भाव जिया के
लिखे निशा क्या गूंगी पाती ।


==================


नाम - निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
हैदरगढ़ - बाराबंकी उ०प्र०)


रचना - दोहा


नीर -निधि से नयन कहे, निशिदिन नेह नवीन |
अमर अनुराग अधिकता,अंतस आस अधीन |१|


जिनकी सपनों में कभी, हुई न गीली आँख |
उनको भी तकलीफ है, लिये हाथ में राख |२|


 पाने को इंसाफ ही, भटके क्यों निर्दोष |
धीमी है रफ्तार तो , किसका है ये दोष |३| 


लाना है बदलाव तो, खुद से रखिये आस |
दुनिया मतलब से मिले, मतलब से ही खास|४|


कपट-क्रूरता भाव में, बोझिल होती साँस |
स्नेह,सहज संवेदना, लाती मधुर उजास|५|


==================
नाम -भुवन बिष्ट
पता -रानीखेत (उत्तराखंड)
रचना -हिन्दी हमारी शान


हिन्दी न केवल बोली भाषा, 
                       ये हमारी शान है।
मातृभाषा  है  हमारी,  
                        ये बड़ी महान है।।........
चमकते तारे आसमां के , 
                         हिन्द देश के वासी हम।
कोई चंद्र है कोई रवि, 
                        कोई यहां भी है न कम।।
आसमां बनकर सदा, 
                          हिन्दी मेरी पहचान है।
हिन्दी न केवल बोली भाषा ,
                          ये हमारी शान है।।
मातृभाषा  है  हमारी,  
                          ये बड़ी महान है।...
पूरब है कोई पश्चिम, 
                          कोई उत्तर है दक्षिण।
अलग अलग है बोलियां, 
                          पर एक सबका है ये मन।।
अंग हिन्द के हैं सभी, 
                         हिन्दी दिल की है धड़कन।
एकता में बांधे हमको,
                          इस पर हमें अभिमान है।।
हिन्दी न केवल बोली भाषा, 
                           ये हमारी शान है।
मातृभाषा  है  हमारी, 
                         ये बड़ी महान है।।...
=================
                     


नाम- सीमा निगम
  दलदल सिवनी मोवा रायपुर छत्तीसगढ़
    रचना- शीर्षक-


"त्वरित न्याय की दरकार"


हैवानियत के नए रूप देखकर बेटियां पूछ रही हैं
अब तो जीना मुश्किल है बेटियां कह रही हैं
वर्तमान परिवेश में बेटियां सुरक्षित नहीं
घर से सहम सहम कर बेटियां निकल रही हैं|


नित्य नए-नए अत्याचार बेटियों पर हो रहे हैं
एक दो नहीं चार चार मिलकर अनाचार कर रहे हैं
सिलसिला थम नहीं रहा बेटियों को जिंदा जलाने का
पीड़ित परिजन दर-दर न्याय की गुहार लगा रहे हैं


सड़क से संसद तक स्त्री सुरक्षा की केवल चर्चा करते हैं
गुनहगारों को फांसी या सख्त सजा की हम मांग करते हैं
बहुत हो चुका अब नहीं सहेगी बेटियां अत्याचार
सरकार से त्वरित न्याय की दरकार हम करते हैं|
——————————


डॉ सरोज गुप्ता
विभागाध्यक्ष हिंदी
सागर मप्र


हाय! हुए असहाय आज हम !

जबतक मां का हाथ था सिर पर,
तबतक  वेपरवाह रहे हम,
अब इस संघर्षी जीवन के ,
एक नये अध्याय बने हम,
हाय! हुए असहाय आज हम !


कितना प्यार दुलार दिया मां
संस्कारों का संसार दिया मां।
मेरी मां थी कवच सुरक्षा,
आफत, मुश्किल दूर हटाती,
हंसते, जीते मिसाल बने हम।
  हाय! हुए असहाय आज हम !


जन्म दिया मां तूने हमको,
पाला-पोसा बढ़ा किया मां,
पल पल, रक्षित रखकर माता,
वात्सल्य उड़ेला, ममत्व सहेजा,
एक झलक को मोहताज हुए हम।
हाय! हुए असहाय आज हम !

पिताजी सदा व्यस्त रहते थे
सपने कुछ बुनते रहते थे,
घर में आए कोई मुसीबत,
मिलजुलकर सब हल करते थे।
बीता बचपन पर बच्चे बने रहे हम ।
हाय! हुए असहाय आज हम !


छोटा घर, छोटा-सा आंगन,
सारा घर तुलसी का उपवन,
धर्म ,कर्म और मर्म सिखाया,
दुनिया का सब पाठ पढ़ाया,
श्रेष्ठ काव्य के ग्रंथ बने हम।
हाय! हुए असहाय आज हम !
——————————


क्रांति पांडेय  "दीपक्रांति" ।
रीवा मध्य प्रदेश ।


घर की बिटिया, रही सिसकती, हैं  मंत्री, नेता मस्त यहां।
नोच  रहे  हैं  जिस्म  भेड़िए, सब  के सब हैं  व्यस्त यहां।।
आन  बचा  ना  सके, जो घर की, लंबे भाषण झोंक रहें।
बनकर  दर्शक, तुम,  ना मर्दों ! सुनकर  ताली  ठोक रहे।।


क्या बची ना ताकत संविधान में,घर की लाज बचाने को।
निपटारा हो तुरंत यहां,क्यो देरी है,फास्ट कोर्ट लगाने को।।
क्यों हैं हबसी,बेखौफ यहां इतने,खुलकर इज्जत लूट रहे।
बनकर   कुत्ते  और   भेड़िए, हर   लड़की   पर  टूट  रहे।।
काट  रहे,  बेख़ौफ   लड़कियां,  मर्यादा  सारी  तोड़  रहे।
देख अकेला जिस्म  मान  बस,  हवस  मिटाने  दौड़  रहे।।


कौन है  जिम्मेदार  यहां  अब,?  किसको  दोषी ठहराए।?
शर्मसार   है,   मां    वसुंधरा,   झंडा    कैसे      फहराएँ।।
बेझिझक यू लुटती देख आबरू, बूत बनी हर मात खड़ी।
कलतक थी जो,सुंदर चंचल,अधजलीबनी वह लाश पड़ी।।
जाने   किसने,   नित  नई,  यह   बेदर्दी   की   रीत  गढ़ी।
हब्शी   शैतानों   की   जैसे,   एक   नई   है   नस्ल  बड़ी।।


क्या  नहीं  है  ऐसा  कोई भी,? जो कुचले इन हैवानो को।
बैठे  हैं  सब  मौन  साध  कर, हो  रहा  दर्द  ना कानों को।।
ना बचेगा कोई आंगन, हर  बेटी  चीखेगी  शोर  मचाएगी।
हर  आंगन  में दहशत  छाएगी, अस्मिता नहीं बच पाएगी।।
——————————


"काव्यरंगोली हिन्दी दिवस आॅन लाइन प्रतियोगिता "                     नाम-रामचन्द्र स्वामी अध्यापक बीकानेर, राजस्थान ।                    


सुन्दर भाषा जो हिन्दुस्तान की ताज है ।                            
हर हिन्दुस्तानी के मन की आवाज है ।।                                          सुरीले जिसके सुर और साज है ।       
यह भारतियों की प्यारी भाषा हिन्दी ...                                  यहाँ जो जन-जन की ओजस्वी आवाज़ है ।                                 हिन्दी है सब भाषाओं की बहना।    
बोली और देववाणी के संग रहना ।।                                                सब भाषाओं की गुरु है हिन्दी ।     
सब भाषी साहित्यों का है गहना ।      
भारत का अभिमान है हिन्दी ।       
भारत की शान है हिन्दी             
भारत की सर्वोच्च उड़ान है हिन्दी 
भारत की पहचान है  हिन्दी ।।      
——————————


- रत्ना वर्मा
धनबाद -झारखंड


"कविता"
राष्ट्र का गौरव हिंदी,
इसपर हमें गर्व है।
हर हिंदुस्तानी का ,
हिंदी दिवस तो एक पर्व है।


हिंदी का सम्मान करें हम,
विश्व में हिंदी प्रचार करें हम।
हिंदी से हिन्दुस्तान  है ,
यही तो भारत की शान है ।
  
——————————
डॉ0 वसुंधरा उपाध्याय,
पिथौरागढ़


हर दिल में बसतीहै हिंदी,
मेरे मन में बसती हिंवदी ।
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
हर भारतीय कीजबान  है हिंदी।


हिंदी में मैं लिखती हूँ
हिंदी मैं ही कहती हूँ
मेरे सुख दुख सहने वाली
तन मन मेरे बसी है हिंदी।।


तुम भी अपनी भाषा बोलो
हिंदी में मन के रस घोलो
हिंदी में  ही लिखना सीखो,
मन भावों को  गड़ना सीखो,
भाषाओँ का मूल है हिंदी
जन जन की पहचान है हिंदी।


शिक्षक,पत्रकार या नेता को
आमजनों  से जोड़े हिंदी
कलम में मेरे धार भरे है
मुझे बहुत  भाती है हिंदी।
नये नये शब्दों को चुनकर
मझे बहुत लुभाती  हिंदी।


गद्य पद्य को रच जाती है,
मनमोहक पद में ढलजाती,
दोहों की सिरमौर है हिंदी
पहेलियों का भण्डार है हिंदी,
मुहावरों का सरताज है हिंदी,
इसमें अनेक चमत्कार भरे है
इसीलिए भाती है हिंदी,
"बसुधा"का अलंकार है हिंदी।।


——————————


-अर्चना द्विवेदी
-ग्राम मलिकपुर,-अयोध्या


हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...


जैसे दुल्हन के माथे पर,सोहे  लाल सुनहरी बिंदी,
वैसे ही हर एक जीवन का,रूप सँवारे भाषा हिंदी।।


ये संस्कृति की संरक्षक,वाहक अनमोल धरोहर है ,
गंगा सी निर्मल ,पावन व  सुंदर  ज्ञान सरोवर है।।


देश की उन्नति और प्रगति की,एकमात्र पहचान है,
प्रेम,स्नेह,अपनत्व निहित,भारत माता की शान है।।


जकड़ा था जब  भारत,अंग्रेजों  की क्रूर गुलामी से,
जाति,धर्म का भेद मिटाकर,बचा लिया नाक़ामी से।।


विविध बोलियों की जननी,हिंदी भाषा कहलाती है
हो जाती है पंगु संस्कृति,बिन भाषा बतलाती है।।


तुलसी,प्रेमचंद,खुसरो,महादेवी ने अपनाया,
विश्व पटल पर निज कृतियों,से इसका मान बढ़ाया।।


माँ बनकर  ये  हिंदी भाषा,हर कर्तव्य निभाती है,
भूलो मत उपकार छोड़कर,आँचल ज्ञान सिखाती है।।


छोड़ विदेशी भाषा को,अपना लो अपनी भाषा,
मिले राष्ट्र सम्मान और  पूरी हो सबकी आशा।।


अपनी बोली,अपनी भाषा में सम्मान निहित है,
निज भाषा बिन पतन देश का होता सर्वविदित है।।
          


——————————


नाम- डॉ. पवनेश ठकुराठी
अल्मोड़ा, उत्तराखंड।


कविता-


हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो@


हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो,
अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।


हिंदी हमारी माता है, माता से बढ़कर दूजा नहीं।
अपनी भाषा को अपना समझो, इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं।
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।


साहित्य अनौखा है इसका, इसका अनौखा है संसार।
इसमें लगालो तुम गोता, हो जाओगे भव से तुम पार।
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।


इसमें ही सूर के हैं कान्हा, इसमें तुलसी के राम बसें।
इसमें मीरा की प्रीत छिपी, इसमें रहीम के शबद हंसें।
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।


इसमें कबीर की वाणी है, इसमें बिहारी का श्रृंगार।
इसमें ही निराला का आक्रोश, इसमें महादेवी का दुलार।
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।


जयशंकर की कामायनी, यही पंत की है गुंजन।
प्रेमचंद, निर्मल की कथा, यही शुक्ल का है तन-मन।
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।


हिंदी भारत का गौरव है, इसका सभी सम्मान करें।
इसके सम्मान से ओ प्यारे, भारत पर अभिमान करें।
हिंदी पढ़ो, हिंदी लिखो, हिंदी बोलो, अज्ञानता के पर्दे पल में धो लो।।
——————————
डॉ0 शिव शरण अमल


विश्व हिंदी दिवस पर विशेष,


आओ सब मिलजुल एकता के गीत गाएं,
सुख,शांति,सशुचिता की सरिता बहाए हम ।
ममता की ज्योति जला, प्यार दिलो में उगाए,
फलती समाज की दरार को मिटाए हम ।
प्रगति की गति कहीं धीमी नही पड़ जाए,
सोए देश प्रेमियों की चेतना जगाए हम ।
हिदू,हिंदी,हिंदुस्तान पहचान अपनी है,


——————————
   - नागेंद्र नाथ गुप्ता
, मानपाडा, ठाणे ( मुंबई )
            
रचना :-- "प्यारी हिंदी"


कितनी प्यारी हिंदी की जुबान है
सारे विश्व में हिंदी की पहचान है।


भारत माॅ के माथे की बिंदी हिंदी
एकमात्र वैज्ञानिक भाषा है हिंदी।


कुछ वर्ण कंठस्य कुछ हैं तालव्य
जीभ से कुछ निकले कुछ ओठव्य।


अक्षर जो बोलेंगे वहीं हम लिखेंगे
हिंदी आगे आए वो इतिहास रचेंगे।


भाषाओं की जननी है हिंदी हमारी
सजे मुकुट हिंदी का पूरी है तैयारी।


राजनीति ने नहीं बनाया राष्ट्रभाषा
आगे अंग्रेजी रहे, करते रहे तमाशा।


दूर न दिन जब हिंदी होगी महरानी
हिंदी की ताकत दुनिया ने पहचानी।


पीछे हिंदी रही इसके हम खुद दोषी
जाने क्यूं भारतवासी होते हैं संतोषी।


वक्त आ गया हम उसका मान बढ़ाए
आओ मिल जुल कर हिंदी अपनाएं।।


——————————


डा० भारती वर्मा बौड़ाई
डांडा धर्मपुर देहरादून ( उत्तराखंड )


हिंदी
———-
हिंदी है माथे कि बिंदी
हिंदी अपना मान है
इसे बढ़ाने हम सब  आएँ
हिंदी अपनी शान है
सबसे सरल हमारी हिंदी
सबके मन को भाती है
जिसके मन में ये बस जाए
मन से कभी न जाती है
इसके प्यारे बोल गूँजते हैं
देखो पूरे हिंदुस्तान में
आओ इसको फैलाएँ हम
गली-गली और ग्राम में
सोच से आगे बढ़ कर देखो
कर्म में इसको अपनाओ
हिंदी तो अपनी प्यारी माँ है
इसको सब गले लगाओ
राष्ट्रभाषा अब बनेगी हिंदी
हर आँख का अपना है
पूरे विश्व में फैले परचम
इसी मुहिम में लगना है
पक्का है विश्वास हमारा
अपनी मेहनत रंग लाएगी
राष्ट्रभाषा के पद पर शोभित
अपनी हिंदी हो जाएगी !
अपनी हिंदी हो जाएगी.....
——————————


देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी
कोलकाता -


..................हिंदी की महत्ता.....................


राष्ट्रभाषा  हिन्दी   की   महत्ता   बनाए   चलिए।
विश्व में अपने राष्ट्र  की  गरिमा  बढ़ाए  चलिए।।


हिंदी  का  वैर  अन्य  भारतीय  भाषा   से  नहीं;
सिर्फ   आंग्ल   भाषा  से  इन्हें  बचाए  चलिए।।


भारत की   अन्य   भाषा  इनकी  सहगामिनी हैं;
सबकी   प्रगति   की    राह    बनाए    चलिए।।


हिंदी   बोलने   पर   तुच्छ   समझनेवालों   को -
अपनी   राष्ट्रभाषा   का  पाठ   पढ़ाए   चलिए।।


कथनी - करनी     में    अंतर    रखनेवालों   से ;
राष्ट्रभाषा   की  अस्मिता  को   बचाए   चलिए।।


सिर्फ हिंदी दिवस पर इनकी समृद्धि बताने वाले;
वास्तव  में  इनकी  उपयोगिता  दिखाए चलिए।।


"आनंद" का  निवेदन  है  देश  के  कर्णधारों  से;
स्वच्छभावना से प्रेरित हो,इन्हे अपनाए चलिए।।


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नाम-सीता देवी राठी
पता--प्रदीप कुमार राठी
कूचबिहार
पश्चिम बंगाल
     ।।  मानव ।।
क्यों सोया गफलत की निद्रा ,
अब तो मानव जाग ,
हीरा जैसे जन्म गंवाया ,
पीकर मदिरा भांग ,
नश्वर ये संसार है ,
समय रहते पहचान ,
अंत समय आ जाएगा ,
रीता रह जाएगा हाथ ,
उठ !हरि स्मरण कर
सुबह -सुबह ,
जब मुर्गा देता है बांग ,
छोड़ कपट मोह का बन्धन ,
झूठा सकल जहान ,
भर ले राम नाम से गठरी ,
आएगी तेरे काम ,
सोच समझकर चिंतन करले ,
क्या क्या जाएगा तेरे साथ ,
फिर तू हरि भजन करेगा ,
दान करेगा दोनों हाथ ।।


अवजीत'अवि
बिसौली
केनरा बैंक मॉडल टाउन बरेली
मिले  तुमको  सदा  खुशियों  का  खजाना
मुबारक   हो   तुमको   जन्मदिन   सुहाना


जहाँ भी जाओ सदा खुशियाँ ही पाओ तुम
बनके  प्रेम  घटा  हर  दिल  में  छाओ  तुम
अपना  लो  सबको  अपना  हो  या बेगाना
मुबारक   हो   तुमको   जन्मदिन   सुहाना


हाथ   से    हाथ    मिलाकर    चलो    तुम
खुशियों   के   दीप   जलाकर   चलो   तुम
दीपों   की   तरह   तुम  सदा झिलमिलाना
मुबारक   हो   तुमको   जन्मदिन   सुहाना


धड़कन   बन   हर   दिल   में  धडको तुम
चाँद  की  तरह  आसमान  में  चमको तुम
नफरत   की   आग  न   कभी   भड़काना
मुबारक   हो   तुमको   जन्मदिन   सुहाना


कर्म   जहाँ   में   कुछ   ऐसे   कर   जाओ
नाम   जहाँ   में   कुछ   ऐसे   कर   जाओ
मुश्किल   हो    सबको    तुम्हें  भुला पाना
मुबारक   हो   तुमको   जन्मदिन   सुहाना


सबके   लिए   एक    आदर्श    बनो   तुम
हर   समस्या    का   निष्कर्ष   बनो    तुम
इस   तरह  नाम  अपना  रौशन कर जाना
मुबारक   हो   तुमको   जन्मदिन   सुहाना


नाम रश्मि लता मिश्रा
सरकंडा,बिलासपुर,छग


हिन्दी है हिन्दी


हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की
ये भाषा हर जुबान की।
इसमे मीठापन है इसमें
तहजीबों की अदाएं
गँगा-जमुनी तहजीब इसे
खूब रही चमकाए।
बंगाली मद्रासी
इसका मान बढ़ाएं
ओड़िसी,कश्मीरी जोड़े
इसमे अपनी शान भी
ये भाषा हर जुबान की
देश ही क्या अब तो
विदेश में ये परचम  लहराए।
अपनी समृद्ध संस्कृति
उनको रही लुभाय।
अपने स्वर्णिम युग की
कथा जानने की चाह भी
ये भाषा हर जुबान की
हिन्दी भाषा  हिंदुस्तान की


प्रतियोगिता हेतू
सुमति श्रीवास्तव
जौनपुर
उ०प्र०


सरसी छंद


नन्हे -नन्हे पाँव चले है ,
नटखट नंद किशोर।
देखो नंद का लाल आया ,
यही मचा है शोर ।
कर में मुरली मुख में माखन ,
छुपे है घनश्याम ।
भागी देखो सारी बाला ,
ले कान्हा का नाम ।।


मटकी फोडी़ खाया माखन ,
आया माखन चोर ।
बाहर आओ देखो माता ,
यही धूम चहूँओर ।
श्याम सलोनी सूरत प्यारी ,
माता करें दुलार ।
प्यारी सी आँखों में झलके,
है प्यारा संसार।।


ग्वाल बाल संग खेले श्याम ,
राज नंद के द्वार ।
पाँव मधुर पैजनी बजे है,
देती हर्ष अपार ।
श्यामल वर्ण सलोनी सूरत ,
अधरों पर मुस्कान।
रूप अलौकिक पडे़ दिखायी ,
मनुज रूप भगवान।।



काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020


अजय यादव"आवारा"
बंगलोर


चल आज पीछे मुड़ कर देखते हैं।


वो मां की गोद और मखमली आंचल,
वो सुरीली लोरी और ममता निश्छल,
उन दिनों की बेफिक्र कहानी देखते हैं,
चल आज पीछे मुड़ कर देखते हैं।


वो रुठना मनाना और खिलौने तोड़ना,
धूल में सन कर फिर पानी में लोटना,
थोड़ा वो अल्हड़ बचपन जीते हैं,
चल आज पीछे मुड़ कर देखते हैं।


वो पगडंडी और वो तितलियों की दौड़,
दोस्तों संग गिल्ली डंडे की वो होड़,
सतरंगी सपनों के रंग देखते हैं,
चल आज पीछे मुड़ कर देखते हैं।


वो जवानी और वो अहं का गुरूर,
कुछ गलतफहमी और थोड़ा सुरूर,
मस्ती में डूबे वो दिन देखते हैं,
चल आज पीछे मुड़ कर देखते हैं।


वो प्रचंड प्रबल तन का बल मेरा,
स्वछंद और अधीर मस्तिष्क मेरा,
जीवन का वो उत्तम छोर ढूंढते हैं,
चल आज पीछे मुड़ कर देखते हैं।


यह भी अनूठा अजूबा एक लम्हा है,
जीवन का चित्र आंखों में घूमा है,
खामोश सा अब अतीत देखते हैं,
चल आज पीछे मुड़ कर देखते हैं।





डा।। वसुधा पु. कामत(गिंडे)
बैलहोंगल, कर्नाटक से
विधा: विधा मुक्त


*हिंदी*


गली गली में शोर है
हिंदी में एक शेर है
अल्फाज इसके बडे निराले
हिंदी में बडा जोर है ।।


विश्व मे अब एक ही चर्चा
हिंदी का ही बोल बाला
हिंदी है प्यारी भाषा
सारे विश्व ने बोल डाला ।।


हिंदी है एक ऐसा माध्यम
जिसने एक-दूसरे को जोडा
टूटता रिश्ता फिर हिंदी ने
प्यार से  सबको जोड डाला ।।


जलाओं अब दिप हिंदी का
कर दो हर कोना रोशन सा
अब सही समय आया है
मिलजुलकर रहने का ।।


जाग ऊठो अब जाग ऊठो
अपने दिल की बात सबसे
खुलकर आज कहना है
हिंदी हम सबकी जान है ।।


भारत माँ की है यह बेटी
सबसे बड़ी निराली
है बड़ी चुलबुली सी
सारा विश्व इसका दासी ।।


भाषा चाहे अनेक है
हिंदी मे ही एकता है
हिंद के हिंद निवासी
मत भूलो हम है भारतवासी ।।


देव लोक से आयी
बनके देवनागरी
है पावन गंगा सी
मेरी नन्ही प्यारी सी हिंदी।।


विश्व पटलपर राज करे
बनके महारानी
भर देती है सब मे उमंगें
ऐसी प्यारी हिंदी मेरी रानी।।


प्रशान्त मिश्रा
(आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश)


गरीबी के दिनों में हर कोई संग मुस्कुराता था
पूरा परिवार इक थाली में ही मिल-बाँट खाता था
'पैसे' खत्म ना हो जाएं इसका डर सताता था
यही डर घर के बच्चों को बिगड़ने से बचाता था
दवा माँ-बाप की बच्चों को अब महंगी सी लगती है
अकेला बाप 10 बच्चे खिलता और पढ़ाता था


था कच्चा घर मग़र उसमें सुकूँ की नींद आती थी
बाप किस्से सुनाता था  तो माँ लोरी सुनाती थी
जो सर्दी कंपकंपाती तो 'अंगीठी' काम आती थी
अगर गर्मी बहुत पड़ती तो माँ 'बेना' डुलाती थी
बहुत कठिनाइयाँ थीं पर सभी से लड़ना आता था
हर एक हालात से लड़कर ज़िंदगी मुस्कुराती थी


वक्त बदला तो उसने घर की भी हालत बदल डाली
और परिवार के लोगों की भी किस्मत बदल डाली
गरीबी हो गयी है दूर , बस आनंद रहते हैं
'अमीरी' आ गयी जबसे,बहुत निर्द्वन्द्व रहते हैं
अपने-अपने मकानों में सभी स्वच्छंद रहते हैं
आमने-सामने कमरा है लेकिन फासला है अब
एसियां(AC)लग गयीं जबसे ये कमरे बन्द रहते हैं


नाम- अनिता मंदिलवार सपना
पता-अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़


*हिन्दी*


निज हिन्दी की शान बढ़ाना
मधुर बोल ही तुम अपनाना


देखो बातें बहुत हुई अब
नीति अमल में लेकर आना।


आगे आकर सभी सिखाओ।
मान राष्ट्रभाषा दिलवाना।।


सबको शिक्षित करके अपने।
भारत का सम्मान बढ़ाना ।।


आओ हिंदी की सेवा में।
कर्म महान हमें कर जाना।।


मस्तक की बिन्दी लगती है।
हिंदी को फिर हमें सजाना ।।


 


- अनमोल विश्वकर्मा
- गोमतीनगर लखनऊ
रचना ......


सूर्य सरीखा तेज बढ़ाकर,
          अम्बर को छूना है|
       हे मानुष! हमें जीवन में
           आगे ही बढ़ना है|


     संकट के कोहरे से जब -जब
               राहें   धुँधली हो जाएं|
     मात-पिता गुरू चरणों मे,
             जाकर  के शीश नवाएं|


      संस्कारों के सांचे में खुद,
         को प्रतिदिन गढ़ना है|
       हे मानुष! हमें जीवन में
               आगे ही बढ़ना है|
              
        सारा जग यह अपना ही है
            इनपर न संदेह करो|
       प्रेम मिलेगा पल-पल तुमको,
         हर मानव से नेह करो|


        भरके स्नेह नयन में प्रतिदिन
       चेहरों को अब पढ़ना है|
         हे मानुष ! हमें जीवन में ,
               आगे ही बढ़ना है|
 
                
          
   
नाम- सोनी केडिया
पता- सीताराम केडिया,
        सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल


विधा - कविता


दरवाजे


भिन्न-भिन्न प्रकार के...


नये, पूराने, छोटे, बड़े,चौड़े और संकरे
हल्के,भारी,  सुंदर भी और कुछ सस्ते
और कामचलाऊ भी।
बड़े बड़े दरवाजों में शान से जाते है
पर छोटे दरवाजों से सर झुकाते  जाते हम।
कुछ पूराने जर्जर दरवाज़े
जिन्होंने देखी है
कई सदियों की दास्तान..
पूरानी विचारधाराओं से झाकते..
और नयी विचारधाराओं की तरफ
छलांग लगाते हुए विचारों को।
फिर तटस्थ बैठें खुद के
नष्ट होने की प्रतिक्षा करते।


कई दरवाजों ने देखें होते हैं
नित्य नये किरदारों को
नये नये चेहरों के भीतर।
कुछ बंद दरवाज़े..
जिसमें सभी झांकना चाहते हैं।
कुछ खुलें दरवाजे..
जिसमें कोई नहीं झांकना चाहता।
कुछ अधखुले दरवाजे
जिसमें लोग अक्सर
नज़र मारते हुए
चलते जाते हैं।
नित्य नये परिवर्तन के साथ
स्वरूप भी बदल गया।
और विशालकाय मजबूत
दरवाजे तब्दील हो गये है
आसानी से खुलने-मिलने वाले
सस्ते दरवाजों में,
जहां कुछ निश्चित नहीं,
कोई विश्वास की बुनियाद नहीं।
पर बूढ़े दरवाजे अभी भी खड़े हैं
उसी शान से सर उठाए..
अपनी धरोहर को समेटे
अपनी संस्कृति कई शिल्पकलाओं
की झलक दिखलाते।


कई दरवाजे होते हैं
प्राचीन की मजबूती से लेकर
नवीनता का समावेश।
अब नवचेतना लिए आ रहे हैं।


ये भिन्न-भिन्न दरवाज़े..
हर जगह हमारे सामने आते,
हर जगह हमें रोकते,
हर जगह की पहचान,
न जाने कितना कुछ कह जाते हैं।


पम्मी सडाना
आगरा


नव अधिमान......


अस्मिता प्रतिदिन लुट रही है
देश बहुत कलंकित हो रहा
आत्मा तड़प कर घुट रही है
स्वयं पर ही लज्जित हो रहा.


प्रतीक्षा कर रही हर बिटिया
संभाव्य हो जाए सवेरा
एक किरण दिख नहीं पा रही
बलात् फैला फिर अंधेरा,


फाँसी पर चढ़वा दो इनको
दीवार में कहीं चुनवा दो
काला पानी वहीं दंड दे
कारागार एक बनवा दो;


यह भी न अगर कर पाओ तो
कदाचित लिंग अभी कटा दो
विकृत मानसिकता के लोग
मूल से ही मसला मिटा दो.


तभी रुकेगा इनका तांडव
शेर नहीं ये, चूहे होंगे
बिल से बाहर नहीं रहेंगे
डर कर अंदर बैठे होंगे,


अशक्त पर उद्यम ताकत का
यही क्या पुरुष का विक्रम है
रक्षा करना धर्म है इसका
कितना ये हो गया अक्षम है;


विष है क्या रक्तवाहिनी में
जो यों नारी को डँसते हो
मानव हो, मानव बने रहो
दानव ही क्यों तुम बनते हो?


दानव हो तो जल जाओगे
कुछ तो निर्णय करना होगा
नियम ऐसे बनाने होंगे
अब तुमको ही मरना होगा.


कृष्णा ने बोला गीता में
कि ‘अर्जुन, कर्म कर जाना है
रिश्ता कुछ भी हो आपस में
इनका वध करके आना है’


नव अधिमान अब तो विचारो
कुछ ऐसा ही करना होगा
जला दो या फाँसी चढ़ा दो
दरिंदों को तो मरना होगा !


नाम ..ड़ा।नीना छिब्बर
  पता 17/653
चौपासनी हाऊसिंग बोर्ड़
जोधपुर ।
     


      भीतरी कैनवास
सुनते हैं बड़ा आमदबद्ध
कायदे और शांति से चलता है यह शहर
निर्मल,साफ सड़कों पर लयबद्ध साँसे दौड़ती हैं यहाँ
सोच कर देखो कितना बेस्वाद, बामज़ा रूखा सा
लगता होगा सांसो का आना जाना भी ।
बेरंग, फीका सा ,सीधा सपाट ,भावहीन प्यार भी
दिखता है कहीं- कहीं मानवों के बीच
अपने भीतर के कैनवास को
देने के लिए कुछ चटख रंग
रंगते हैं चेहरा,होंट,केशों को बेतरतीब ।
चाहते हैं यकिनन कुछ नयापन हरपल
बस इसीलिए, सिर्फ इसलिए कपड़ों ,जूतों, खिलौनों
की दुकानों पर खिचती है बामजा जिंदगी
नहीं देखी ,किसी चेहरे पर चौड़ी सी मुस्कान
आँखों ही आँखों में तौलता है इंसा -इंसा को
नहीं मानते नजर भर में अपना अनजान को।।
पहचानते हैं लोगों को वेशभूषा और रंगरूप से
देते हैं समरूप लोगों को,किंचित सी मुस्कान
ड़रते हैं कहीं मुस्कान चुबंक सी
चिपक ना जाए आँखों से होटों तक
देख जिसे..न आ जाए गैर मुल्क के लोग घरों.तक
क्योंकि उनका घर सिर्फ उनका है ..उनका ही
बड़ी इमारतें ,आधुनिक सुविधायुक्त कमरे
खोखली आड़म्बर मय हवाई वैज्ञानिक बातें
यहाँ मानव नाप -तौल,नफा नुकसान पहले देखता है
तीसरे दुनिया के बाशिंदों की तरह सब अप -टू-डेट
धूला ,साफ,चमकता,आधुनिक यंत्रों से भरा घर
देता है एहसास ऐसे मकान का
जो  काँच ,हीरे-मोती के अलकंरणों से भरा है
जिस पर हर तरफ अलिखित छपाई में लिखा है
सिर्फ देखना,छूना नहीं टूटे तो मूल्य देकर  ले जाना।
    हाँ, यही सत्य है विदेश की हर प्रगति का
   जब तक मन मस्तिष्क से इस देश की प्रगति देख सकते हो
    भरपूर रहो , सीखो, जिओ,लुटो और लुटाओ
       खो जाओ भंवर में।
अपनत्व दिखाया तो....थका ,हारा,टूटा मानव
ले जाओ ...अपने देश छिन्न-भिन्न भावुक भविष्य के लिये


रिपुदमन झा "पिनाकी सरायढेला, जिला - धनबाद (झारखण्ड)


*शीर्षक - खट्टा-मीठा रिश्ता*


याद है तुम्हें वो पहली मुलाकात
अजनबी होकर भी
जाने पहचाने से लगे थे तुम
तुम्हारी आंखें मुझे ही देख रही थीं
बेझिझक, बेरोकटोक, बेपरवाह
नोंक-झोंक वो छेड़छाड़ भरी बातें
चोरी छिपे तुम्हारा मुझको,
मेरा तुमको तकना
पहली मुलाकात में खुल जाना हम-दोनों का
मेरा नाम पहली बार लिया था तुमने
मुझे भी भा गई तुम्हारी वो चंचल खिली खिली हंसी
फिर मिले नहीं हम-तुम महीनों तक
फोन पर बातें करते करते
धीरे-धीरे हम करीब आए एक दूसरे के
फिर चल पड़ा सिलसिला हमारी मुहोब्बत का
मीठी बातों का
हसीन सपनों में खोने का
बातें करने के लिए बहाने ढूंढना
रात ढलने तक हमारा बातें करना
फिर हम परिवार की सहमति
और रस्मोरिवाजों से हम एक दूसरे के हुए
ज़िन्दगी में खुशियां बहार बनकर आ गईं
तुम्हारी आमद मेरे घर आंगन को महका गई
हर क़दम चलने लगे साथ साथ लेकर हाथों में हाथ
कितने हसीन थे वो पल
कभी रूठ जाना बिना बात ही
और फिर मेरा तुमको मनाना
फिर एक हुए
एक दूजे संग एक डोर में बंधे
सपनों को साकार होते देखा था हमने
रह नहीं पाते थे हम अलग-अलग
एक दूजे के बिना
दो जिस्म एक जान हो गये थे
दीया बाती की जोड़ी कहते थे हमें
शुरुआत हुई हमारी नई जिंदगी की
कितना प्यारा रिश्ता था हमारा
था रिश्ता हमारा खट्टा-मीठा
अब ज़िन्दगी के धागों ने उलझा रखा है हम-दोनों को
दिल में प्यार है पर जताते नहीं
कितने अटूट बंधन है प्रेम का पर हम बताते नहीं
वक्त बदला जरूर मगर रिश्ता हमारा
अब भी खट्टा-मीठा ही है।


नाम जय श्री तिवारी
वत्सला बिहार सिविल लाइन, खंडवा मध्य प्रदेश


रचना व्यक्तित्व
बहुत आसान नहीं होता
अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करना
एक-  एक कलपुर्जे को घिसकर मांजना होता है
सफलता का दौर यूं ही आसान नहीं होता
कांटो पर लहूलुहान होकर खुद को तराशना होता है
आलोचना एवं नफरत स्वीकार है मुझे
सत्य के मार्ग पर चलने के लिए इन्हें भी फूलों का हार समझकर पहनना होता है
बुलंदी और शोहरत पाना आसान नहीं जहां में
कांच के टुकड़ों पर चलकर मुस्कुराना होता है
कितना भी अभेद कवच पहन लूं मैं
संवेदनाओ  को मारना आसान नहीं होता है
मेरे जमीर को जिंदा रखने के लिए
मुझे किसी से कोई समझौता करना नहीं होता है
मीरा, अहिल्या ,सीता बनने के लिए
राणा, गौतम,  राम को जन्म लेना होता है
भारत ऐसा देश है मेरा जहां
सती के तप से भगवान को भी बालक बनना होता है



नाम- दीपमाला पांडेय
पता- 45 चंदन सदन जेल रोड माता चौक खंडवा
मप्र


गरीब


जिंदगी का  पता पूछ रही थी
फिर कहीं अपना वक्त ढूंढ रही थी
मैं सवालों में ही उलझ गई
और मेरा अश्क जवाब लिए खड़ा था.....
नजरअंदाज करते हैं जब करीबी अपने
एक गरीब से भी ज्यादा
गरीब लगते  हैं मेरे सपने...
ढह गई अनमोल रिश्ते रूपी धरोहर
बिना प्रेम के जर्जर हो गया
मुझ गरीब का मकान....
कभी-कभी लगता है मैं गरीब हूं या वो????
जो दिन-रात चिंता करता है
पेट भरने के लिए
धूप में मेहनत करता है
दो निवाले के लिए
मैं पूरी थाली सजाकर
अकेला तंहा शान समझता हूं
सिर्फ छप्पन भोग खाने के लिए .....
तूफान बरसात में ढह गई
उस गरीब की झोपड़ी
फिर तिनका तिनका ले जुट गया
अपना मकान बनाने के लिए
और मैं महल बना कर भी
पूरा जीवन तरसता रह गया उसमें
अपनों को बसाने के लिए .......
गरीब हर मंदिर हर दरगाह पहुंच जाता है
छोटी-छोटी खुशियों में खुश हो जाता है
और मैं सिर्फ सोचता रह गया
भौतिक सुख सुविधाओं के साथ
तीरथ मां-बाप को कराने के लिए .....
गरीब मैं था कि वो..........??
  मेहनत से अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया
काबिल बनाया और सौंप दिया उसके हाथों
जिन्होंने अपनी शान समझी
और कीमत मांगी मेरी बेटी के कमरे को सजाने के लिए......


         


विजय तन्हा संपादक - 'प्रेरणा' पत्रिका पुवायाँ,  शाहजहाँपुर
     
****** गीतिका *********


मानवता के पथ पर चलकर, मानव के संग प्यार करो।
फूल ही फूल नहीं जीवन में, कांटे भी स्वीकार करो।


साथ नहीं कुछ लेकर आए, नहीं साथ ले जाना है,
गीता के इन सदबचनो को, सब मिल अंगीकार करो।


हर मानव में प्रभु बसा है, फिर भी मानव जहर उगलता,
मतभेदों की फसल उगाए, मत ऐसा व्यवहार करो।


तन मानव का अनमोल रतन, सभी ग्रंथ बतलाते हैं,
सदकर्मों से इसे सजाकर, जीवन नैया पार करो।


ऊंँच-नीच का भेद मिटाओ, तोड़ो सारे बंधन को,
रीत प्रीती की यहांँ चलाकर, भारत का श्रृंगार करो।


कल की चिंता करना छोड़ो, वर्तमान में सीखो जीना,
जो भी मानव सम्मुख आए, स्वागत औ' सत्कार करो।


वीर शहीदों के सपनों को, छलते रहते नेतागण,
नौजवानों जागो अब,  तुम उनको साकार करो।।


         
नाम_रूबी प्रसाद
        सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल)
हिंदी दिवस आनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2020


कविता


शीर्षक ____स्त्री प्रेम नहीं करती _____


स्त्री प्रेम नहीं करती _
वो पुजा करती है,
उस पुरूष की जो उसे सम्मान देते है !!
स्त्री सौंप देती है अपना सबकुछ ,
उस पुरूष को जिसके स्पर्श और भाव से
वो संतुष्ट होती है !!
स्त्री छुना चाहती है प्रेम में _
"उस पुरूष को" जिनके कंधे पर सर रख ,
खुद को सुरक्षित महसूस करती है !!
स्त्री होकर भी नहीं हो पाती
उस पुरूष की जो खुद के पौरुष की ताकत
हर वक्त दिखाते रहते है कभी उसके तन पर तो
कभी उसके कोमल मन पर !!
स्त्री नफरत करती है ,
उस पुरूष से जो उसके अस्तित्व को पहुंचाते है ठेस !!
स्त्री लड़ना नहीं चाहती पर लड़ जाती है,
उस पुरूष से जिसपर अपना अधिकार समझती है !!
बरबोली होती है स्त्रीयां_
पर खामोश हो जाती है तब जब_
प्रेम में किसी वस्तु की तरह ठुकरा दी जाती है ,
उस पुरूष द्वारा जिससे वो प्रेम करती है !!
और कभी पलटकर नहीं देखती ,
उस पुरूष को जो प्रेम के नाम पर या तो _
उसके शरीर से प्रेम करते है ,
या उसके यौवन से !!
क्योकिं स्त्रियाँ प्रेम नहीं करती _
पुजा करती है प्रेम में ,
उस पुरूष की जो उनका सम्मान करते है !!
जो उन्हें तब तक नहीं करते स्पर्श ,
जब तक वो छू नहीं लेते उसका मन और
वो करने नहीं लगती उनसे प्रेम _
क्योंकि स्त्रियाँ पुरूष के पौरुष से नहीं
उस व्यक्ति से करती है प्रेम जो _
परमेश्वर नहीं होता ,
बल्कि होता है प्रेमी बस एक प्रेमी_
जो पढ़ना जानता हो उनका मौन !
जिसकी दृष्टि में हर वक्त
"वो देखे" ढ़लती आयु में भी अपना सौंदर्य और यौवन  !!




*अभिषेक मिश्र हेमू*
*खमरिया पंडित*
*8127962126*


*हिंदी दिवस ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2020*


बने निशान गिलहरी पर, कहते हैं श्रीराम सत्य हैं ।


जिनको सत्य समझने में,
प्रश्न पटल पर खड़े हुए ।
सिद्ध सत्य करने उनको,
सभी भक्त थे अड़े हुए ।


राम नाम को सत्य बताने,
आगे बढ़कर ठन जाते हैं ।
हाथ मंजीरा लेकर के भी,
व्यक्ति से शव बन जाते हैं ।


तैरते शव जो सरयू में,
कहते हैं वो नाम सत्य है ।
बने निशान गिलहरी पर, कहते हैं श्रीराम सत्य हैं ।


दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज
बहजोई (सम्भल)
गीत


हिन्दी भारत माँ की बिन्दी, आओ हम यशगान करें ।
माता के इस भाल-बिन्दु का,मिल कर सब उत्थान करें ।


'हाय'-'बाय' को त्याग के मित्रो! ,'राम-राम'! ,जय राम! कहें।
मर्यादा-पुरुषोत्तम के हम , सदगुण सभी तमाम गहें  ।
हिंदी में ही हो अभिवादन, भोर-सांझ अभियान करें।


'सर-मैडम' को रट-रट हमने , हिंदी दूर भगायी है।
'भाई' और 'बहन' कहने में, हमें लाज क्यों आयी है?
'आदरणीय' और 'सम्मान्य' से ,वृद्धों का सम्मान करें।


' मोम-डैड ' में क्या रक्खा है ,बोलें 'माता' और 'पिता'
' मैया मैं नहिं माखन खायो ' ,आपना कान्हा कहता था।
इन शब्दों में हैं आपनापन ,इसका अब हम भान करें ।

कौन मूर्ख कहता है मित्रो! ,हिन्दी में  विज्ञान नहीं  ।
' वर्ण-क्रम में वैज्ञानिकता ', वर्ण-वर्ण विज्ञान यहीं ।
' संस्कृत की संतान है हिंंदी ' , इसका हम संज्ञान करें ।


अँग्रेज़ी की त्याग दासता, हिंदी सत्तासीन करें।
वेदों में जो ज्ञान छिपा है,उस पर जरा यकीन करें।
हम हिंदी का ध्वज लहरायें, जग में भी पहचान करें।
हिन्दी भारत माँ की बिन्दी, आओ हम य़शगान करें ।


रानी इंदु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश✒
काव्य रंगोली हिन्दी दिवस ऑन लाइन प्रतियोगिता
***********************


वो गाते रहे गुनगुनाते रहे
दर्दे दिल कुछ यूं जताते रहे


हम नादां कुछभी समझे नही
वो अश्कों के मोती गिराते रहे

हीर रांझा सा कोई किस्सा लगा
वे रो रो कहानी सुनते रहे


कट गई कितनी राते सुनते हुए
कह न देना वो कसमे दिलाते रहे


हरकतें मजनुओं से तो कम न लगी
हम हैरान वो मुस्कुराते रहे


आया फिर जो गुस्सा एक बात पर
दे कर गालियां बड़बड़ाते रहे


रूपेन्द्र गौर
पता- इटारसी, जिला - होशंगाबाद (म.प्र.)
आन लाइन प्रतियोगिता हेतु एक रचना


🌷🌷🌷🌷🌷🌷
*बचपन और आज*
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^


भले ही बचपन में अपना कुछ सम्मान नहीं होता था,
पर उस समय हमसे ज्यादा कोई धनवान नहीं होता था।


जब जी चाहा रो लिए, जब जी चाहा हस लिए,
तब रोने और हसने का विधान नहीं होता था।


दादी और गुरूजी ने कर रक्खा था कब्जा,
अपने पास अपना ही एक कान नहीं होता था।


उन दिनों के इम्तिहान को समझते थे हम विकट,
पर सच में वो इम्तिहान कोई इम्तिहान नहीं होता था।


जरा चमक कम हुई जूतों की तो आ जाता है गुस्सा,
तब उल्टी चप्पलें पहनने का भी भान नहीं होता था।


कार क्या खरीद ली कर दी फेसबुक पर अपलोड,
तब हवाई जहाज उड़ाने का भी गुमान नहीं होता था।


बचपन में झगड़ा करते थे, आज से कहीं ज्यादा,
पर तब के झगड़ों में हिंदू मुसलमान नहीं होता था।


एक पल में दोस्ती, तो एक पल में दुश्मनी,
पर बचपन की दुश्मनी में शमशान नहीं होता था।


गले गले तक कर्जा करके आज तान लिया मकान,
तब लोन और किश्तों का भी ज्ञान नहीं होता था।


मस्ती ही हुआ करती थी उन दिनों अपना मजहब,
पल पल में तब गीता और कुरान नहीं होता था।


धूल और मिट्टी में होकर के सब लथपथ,
तव कीटाणु और जीवाणु का विज्ञान नहीं होता था।


आज चार लफ्ज़ क्या पढ लिये करने लगे भेदभाव,
तब किसी का छोटा बड़ा खानदान नहीं होता था।


मधु शंखधर
प्रयागराज
प्रतियोगिता से विलग


सभी बच्चों को बाल दिवस की अनंत शुभकामनाओं के साथ मेरी यह बाल रचना समर्पित है.


हम बच्चे हैं न्यारे जग से, अपनी धुन में रहते हैं।
मन मर्जी की करते हरदम,खुद को राजा कहते हैं।


अम्मा की गोदी है प्यारी,ममता सदा लुटाती जो।
बाबू जी की डाँट भी भाइ , सत पथ हमें सिखाती जो।
भाई- बहन से हँसी ठिठोली, हम सब करते रहते हैं।
हम बच्चे हैं जग से न्यारे..............।।


गुल्ली डंडा, गेंद अरु बल्ला,खेल-खेलते मस्ती में।
शोर- शराबा, हल्ला गुल्ला,सबब बना है बस्ती में।
मित्र सभी लगते हैं प्यारे, नेह भाव हम रखते हैं।
हम बच्चे हैं न्यारे.....................।।


बंदिश हमको बहुत डराती, दूर गगन  छूना चाहें।
पैसों की परवाह नहीं है, प्यार सदा  दूना चाहें।
लुका छिपी आँख मिचौली,खेल भी हमको फबते हैं।
हम बच्चे हैं जग से न्यारे.............।।


ईर्ष्या, द्वेष, बैर, बुराई , हम मन में न लाते हैं।
मौज मस्ती की बातें करते, गीत खुशी के गाते हैं।
पानी में हम नाव चलाते, मधुमय बातें करते हैं।
हम बच्चे हैं जग से न्यारे..............।।


पढ़ लिख कर सैनिक बन जाएँ,ऐसी मंशा रखते हैं।
देश प्रेम हर प्रेम से ऊँचा, भारत की जय करते हैं।
बाल दिवस पर बाल रूप हम, "मधु" आशाएँ धरते हैं।
हम बच्चे हैं जग से न्यारे...........।।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी
सम्पादक काव्यरंगोली
प्रतियोगिता से विलग
जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!


तेरे आँखो का दुलार तेरी संतान,
तेरे आँचल का प्यार तेरी संतान 
जग आया लेकर अपनी मुराद माँ तेरे द्वार!!
जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!


माँ सबकी भर दे झोली,
कोई खाली ना जाये,
कोई सवाली ना जाये खाली,
तू जग जननी, तू जग कल्याणी,
जग तारणी माँ , नव दुर्गा माता रानी!!
जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ,
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!


तू भय भव भंजक निर्भय कारी दुष्ट संघारी
छमा, दया, करुणा कि सागर जग तेरी करुणा,
कृपा   तरस कि दरश में आया मेरी माँ!!
जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ,
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!


तू भक्ति कि शक्ति,
तू मंगलकारी, शुभ संचारी,
अमंगल हारी
जग तेरे दर पे दर्शन को आया मेरी माँ!!
जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ,
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!


कविता   "मेघा"


आओ मेघा रे मेघा आओ
प्यासी धरा को तृप्त कर जाओ
आओ मेघा रे मेघा आओ


नदी नालों को तुम एक कर जाओ
खेतों की मेड़ों को लबालब कर जाओ
आओ मेघा रे मेघा आओ


सूखी फसलें पुकार रही उनको भी प्यास बुझा जाओ
मेंढक की टर टर का मधुर स्वर सुना जाओ
आओ मेघा रे मेघा आओ


गली नाली को एक कर हमारा बचपन लोटा जाओ
कागज़ की कश्ती से घर आंगन को चह
आओ मेघा रे मेघा आओ


तरुवर की मट मैली पतियों को फिर से हरी कर जाओ
मुरझाए फूलों की महक से बगिया को महका जाओ
आओ मेघा रे मेघा आओ


शुभकरण गौड़
1033 सेक्टर 13पी
हिसार हरियाणा


काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी  2020
नाम -डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव पता -वरिष्ठ परामर्शदाता ,
जिला चिकित्सालय, सीतापुर। मोबाइल 94 500 22 526
हाइकु


1) गरीबी दाग ।
   बदनुमा संसार।
    केवल आस ।
2)पारिश्रमिक ।
नमक रोटी प्याज।
बहा पसीना।
3)वाह रे भाग्य ।
बेमौसम बारिश।
कर्ज़ की मार
4)महके माटी ।
उपवन की छांव।
सुख संतोष ।
5)भूखा और प्यासा।
     दर-दर भटके।
        बेघर बार ।
6)जीवनदान।
रक्तदान महान ।
सुख आधार।
7) प्रातः का भूला
घर लौटा शाम को ।
     अपने आप ।
8)सजल नेत्र।
बोझिल हैजिंदगी।
   हाय रे रोग।
9) गरीब रोया ।
खून पसीना एक ।
    अमीर खुश।
10) दुखी संसार ।
रोगों से बोझिल है।
     घर का द्वार।
11) रोगनिदान।
मिले अभयदान ।
     खुशी अपार ।
12)अनपढ़ हो ।
तजुर्बे कार तो हो।
     बेकार नहीं।
13)कली आली है।
     भय से मत डरो।
      सामना करो।


डा. प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, सीतापुर


स्वधा रवींद्र "उत्कर्षिता"विराम खंड, गोमती नगर, लखनऊ।


एक गीत


जो सुंदर है सरल है और शाश्वत है वो हिंदी है
जो सजती भाल पर माँ भारती के सुर्ख बिंदी है
है जिसमे गद्य की गरिमा है जिसमे पद्य की लाली
बहुत व्यापक ,प्रचुर ,सामर्थ्य से सम्पूर्ण हिंदी है।


ऋचाओं से प्रकट होकर नये नित रंग पाए हैं
मेरी हिंदी ने रंगों से नए धनु फिर बनाये हैं।
वो ले आयी है अल्हड़ सा कबीरा आज दोहों में
है रंगत आज तुलसी की हृदय में घर के कोनों में।
कहीं रसखान बजते हैं कहीं मीरा बुलाती है
कहीं पर सूर के पद संग गोपी मुस्कुराती है।
नरोत्तम ने लिखे जो पद्य अपने ही नरोत्तम पे
उन्हीं में नाचती राधा किशन के पास आती है।
भरी है भक्ति के रस से ,वो सब धर्मों की हिंदी है
तरी है जो अमर सच से , सनातन सिर्फ हिंदी है


जो सुंदर है सरल है और शाश्वत है वो हिंदी है
बहुत व्यापक ,प्रचुर ,सामर्थ्य से सम्पूर्ण हिंदी है।


अलंकृत है जो रस छंदों से भावों से कलाओं से
निपुण है जो सभी अभिव्यक्तियों में भावनाओं से
है जिसमे प्रेम भी वात्सल्य भी सृंगार भी, भय भी
है जिसमे राग भी,सुर भी ,नवल एक ताल भी ,लय भी
की जिसको जानने में फिर से सदियां बीत जाती है
गुज़र कर आदि से भक्ति से ये कुछ भिन्न गाती है
इसे सब रीत कहते हैं कि जिसने रीत बदली है
नयी छाया में इसके बाद नई एक बेल निकली है।
की जिसके पुष्प जयशंकर, निराला ,पंत जैसे हैं
महादेवी से जिसके जन्म से कुछ गहरे रिश्ते हैं।
है जिसमें भावनाओं की प्रबलता सिर्फ हिंदी है
है जिसमें वेदनाओं की प्रवणता सिर्फ हिंदी है


जो सुंदर है सरल है और शाश्वत है वो हिंदी है
बहुत व्यापक ,प्रचुर ,सामर्थ्य से सम्पूर्ण हिंदी है।


तिरिस्कृत आज है हिंदी अपने घर के आंगन में
घिरी है आज फिर हिंदी किसी संकीर्ण साधन से
अटल ने जब अटल होकर किया जयघोष हिंदी का
कहीं तब शांत थोड़ा सा हुआ था रोष हिंदी का
चलो हम सब शपथ लें आज माँ का मान जोड़ेंगे
हैं हम सब पुत्र हिंदी के ना माँ का साथ छोड़ेंगे
हैं जिसमे आज भी दिनकर, हृदय को जोड़ने वाला
उसे अब कौन तोड़ेगा जो रस्ते मोड़ने वाला।
है जिसमें सादगी सम्पन्नता वो सिर्फ हिंदी है
है जिसमें आज और रस छंदता वो सिर्फ हिंदी है


जो सुंदर है सरल है और शाश्वत है वो हिंदी है
बहुत व्यापक ,प्रचुर ,सामर्थ्य से सम्पूर्ण हिंदी है।


काव्य रंगोली हिन्दी कविता प्रतियोगिता
10जनवरी 2020
नाम-प्रज्ञा जैमिनी
पता-44बी,एम आई जी फ्लैट,
पाकेट- सी,फेज-3,अशोक विहार
दिल्ली- 52
फोन-9013384330


विडंबना

माथे ऊपर बिंदी सुशोभित
ज्यों हिन्दू सुहागिन नारी
है हिन्दी मातृभाषा हमारी


है इसलिए भाषा का अजब भंडार
अंग्रेजी, अरबी,उर्दू, फारसी शब्द
सभी सहज हो जाते स्वीकार
है इसकी अपनी अलग मधुर मिठास
सभी भाषाओं के शब्द
हो जाते इसमें आत्मसात ।

फिर भी विडंबना देखिए
संस्कृत की ज्येष्ठ पुत्री हिन्दी
अपने ही देश में परित्यक्त है
राजभाषा होने के बावजूद
इसका कहीं नहीं  वर्चस्व है


हिन्दी का किसी से भी नहीं है विरोध
फिर क्यों करते हो इसका गतिरोध
अंग्रेज हो या अमरीकी, जापानी हो या रूसी
दूसरे देशों में जाकर भी
अपनी ही भाषा का करते हैं प्रयोग
फिर भी हिन्दी बोलने वालों को
हेय दृष्टि से क्यों देखते हैं लोग?


आप भी सोचिए-समझिए
अब तो विदेशी लोग भी
समझने- समझाने लगे हैं, हिन्दी में अपनी बात
तभी तो एक के बाद एक
केबल नेटवर्क पर,होने लगी है
हिंदी चैनलों की  बरसात


भाषाएँ आप भी बहुत- सी सीखिए
लेकिन मातृभाषा को नज़रअंदाज मत कीजिए
हिन्दी हिन्दी  न जाने
क्या यह शर्म की बात नहीं
वह सचमुच मनुष्य नहीं, निरा पशु है
जिसे मातृभाषा का करना आता सम्मान नहीं


अपर्णा शर्मा
          "शिव संगीनी"
अंकलेश्वर,  गुजरात


     


       *हिन्दी दिवस*


हिन्दी मेरी भाषा हैं
हिन्दी मेरी मीठी बोली हैं ।


शब्दों कि असीम खान हैं हिन्दी
एकता कि पहचानहै हिन्दी ।


हिन्दी से हिंदुस्तान हैं
हिन्दी हिन्द कि आन बान और शान हैं ।


हिन्दी आसान भाषा है
यहीं हमरी जिज्ञासा हैं ।


हिन्दी विशव  भाषा हैं
हिन्दी गूढ़  गहरी भाषा हैं  ।


साहित्य का संसार हैं हिन्दी
संगीत में राग मल्हार हैं हिन्दी ।


गीतो कि झंकार हैं हिन्दी
सब भाषाओ कि जान हैं हिन्दी ।


स्नेह, सर्मपण ,त्याग और प्यार हैं हिन्दी
जो जन जन तक पहुँचे वो हैं हिन्दी ।


नाम-सुधा शर्मा


भिनसारे-- अम्माँ  जी को,
मुन्ना बो ला गुड मार्निंग.!


अम्माँ  जी अचकचाये के पूछिन..
बिटवा जी का कहनिन??


मुस्काने दद्दा.   फिर बोले,
ई... है, राम जोहार!


बढ़िया बीतै आज का दिन,
यो.. पोता कहे,  तुम्हार. !


ई...... भाषा अंग्रेजन की !
अब याहे पढाई. जात. !


गिटिर पिटिर मा बच्चा बोले ..
मात पिता सुनि के  बिटवा का !
फूले  नाहिं समात. !


भूले अपनी बोली चाली !
भूलि रहे  संस्कार !


भागैं  अंग्रेजी के पाछै !
भूले आपन सम्मान!


दुसरे की भाषा के भीतर,
दुसरेन का संसार. !


नाहीं वहि में अपनापन,
औ..! नाहीं आपन अस प्यार.!


यासै.. अपनी भाषा(हिन्दी) बढिया !
यहि मा ग्यान. हमार.  ! 


आपन देस दिखावै यहि मा !
प्यारा हिन्दुनस्तान.!


श्रीमती सुशीला शर्मा
जयपुर


हिंदी की बिंदी को अपने, शीश लगाओ
-----------------------------


पुस्तक के जंजाल में, फँसे पड़े हैं सब
ढाई आखर प्रेम का ,पढ़ न पा रहे अब
पढ़ न पा रहे अब,विषय हैं इतने सारे
एक के ऊपर एक ,गुरुजन आते जा रहे ।


हिंदी के ऊपर अंग्रेज़ी, और समाज -विज्ञान
अपने घर को छोड़कर, छूने चले आसमान
छूने चले आसमान, लटकते रह गए सारे
मातृभाषा को भूल, विदेशी पढ़ गए प्यारे ।


अपनी माता रोए, औरों की पुचकारें
वतन को अपने छोड़, विदेशों में बस जाएँ
बड़े बड़े विद्वान न अब वापस हैं आते
सौंधी रोटी छोड़, बटर, बिस्कुट हैं खाते ।


पुस्तक पढ़ पढ़ भूल गए हैं, संस्कार ये सारे
मातृभाषा को बोलने में, अटक रहे हैं प्यारे
बदल के ये परिधान, आधुनिक खुद को मानें
अपनी जननी को भी ये, अब ना पहचानें।


इनको हिंदी की मिश्री सी, तान सुनाओ
अपनी भाषा मधुर है, इनको ये समझाओ
दुनियाभर में इसका अब, परचम फहराओ
हिंदी की बिंदी को , अपने शीश लगाओ ।


कैलाश सोनी
भरतपुर
नशे पर कविता


पूछ रहा हूं देखो भैया में हर नौजवान से
बच्चे बूढ़े घर के मुखिया हर मजदूर किसान से
जीवन की खुशहाली में खुद ने आग लगा ली है
जीते जी मर गया नशे की जिसने आदत डाली है
कमबख्तों ने मर्यादा में रहना तक भी छोड़ दिया
स्वाभिमान  के दर्पण को अपने हाथों से तोड़ दिया
ना कोई शर्म रही रिश्तो में ना और कोई मर्याद
बेटे से ज्यादा वालिदऔर  वालिद से ज्यादा दादा
और भाई भाई के चलते जामों पर देखो जाम है
नशेबाज के घर का देखा बहुत बुरा अंजाम है


ये वो ऐसी करनी है परिवार को रोना आता है
तो भी इसका हर कारज उत्सव में होना पाता है
जिस घर में दारु है भैया और दारु पीने वाला है
कलह कलेस होते रहते सुख का नहीं निवाला है
गांव शहर हो होटल हो मंदिर हो या स्कूल हो
गांजा सुल्फा दारू व्हिस्की सिगरेट कूलम कूल हो
इसको पी भद्दे उनके अल्फाज सुनाई देते है
बेटे तक अब अपनी मां को गाली देते दिखते हैं
कैसे हुई तहजीब शराफत यूँ उनकी बदनाम है
नशेबाज के घर का देखा बहुत बुरा अंजाम है


अनजानों की क्या बात करूं अपनों से भी डर लगता है
नशे के आदी लोगों में हैवानी रूप झलकता है
शर्म नहीं आती है ऐसी बेशर्मी धारी है
कोड खाज की तरह फैल गई नशे की ये बीमारी है
इनको समझाने वालों की हर कोशिश नाकाम रही
नशे के आदी लोगों से मानवता बदनाम हुई
टूट रहे परिवार यहां पर बच्चे भूखे मरते है
नारी करती पोछा बर्तन तब घर के चूल्हे जलते हैं
कैसे-कैसे कर पाती रोटी का इंतजाम है
नशेबाज के घर का देखा बहुत बुरा अंजाम है
भारत माता को भी इन पर ऐसा रोना आता है
हर लम्हा हर पल इनको बस दारू में खोना आता है
छेद कर लिए जिगर में अपने  खो बैठे तन की ताकत
दारू पीकर ये सरेआम करते हैं  बेहूदा हरकत
आठो याम नशा करते हैं नहीं होश में आते हैं
अपने और पराए को पहचान नहीं ये पाते हैं
वोट मांगने को भी नेता दारू लेकर आता है
और दारू में ही कुर्सी का सौदा ये कर जाता है
कैसा लगा चुनावों में भैया दारू का इंतजाम है
नशेबाज के घर का देखा बहुत बुरा अंजाम है
बच सको तो अब भी बच लो जिसको बचना आता है
सुबह का भूला शाम को आता गलत कहां कहलाता है
अगर नहीं संभले तो फिर ऐसा धोखा खाओगे
अपने घर की शान रहा की धूल में यार मिलाओगे
अब भी है वक्त नहीं बदला अब भी है सब कुछ भाई
हम चाहें तो कर सकते हैं इस घटना की भरपाई
सोच बदल जाए अपनी और आदर्श फटाफट बन जाए
कदम बढ़े नेकी  के दर पर मंजिल झटपट मिल जाए
आओ हम सब मिलकर ले वदी  से इंतकाम है
नशेबाज के घर का देखा बहुत बुरा अंजाम है
नशेबाज के घर का देखा बहुत बुरा अंजाम है
नशा नाश है तिरस्कार है परिहास है
नशा घर परिवार का विनाश है
नशा है तो नित्य कलह कलेश
नशा से कितनी मां बहनों के सुहाग हुए निशेष हैं
नशा है तो बच्चों के कोई सपने नहीं है
नशा है तो नशेबाज के कोई अपने नहीं है


नाम: डॉ मीरा त्रिपाठी पांडेय
पता: ए/७०१, साई तीर्थ टॉवर, बारह बंगला के पास, सिद्धार्थ नगर, स्टेशन रोड़, ठाणे पूर्व, ४००६०३
मोब न: 9167081827


*घेरे का आसमान ।*


मेरे महाकाव्य की पीड़ा के
         सूत्रधार, तुम्ही तो हो...
मैंने कब चाहा कि
          मुझे पूरा आसमान मिले
लेकिन
          मैं पूरे आसमान में उड़ना तो
                    चाहती थी
घेरे का आसमान
               मुझे कब पसंद था
मैंने कब चाहा था
           फिर उधार के सिन्दूर जैसे
घेरे का आसमान भी
           नहीं चाहिए...
                      मुझे...


मेरे नियति की तबाही
      संदर्भों में मेरे नियंता को भी
                स्वीकार थी...
आसमान का घेरा
        या मेरे लिए
घेरे का आसमान
मैंने वापस किया, उधार
         के सिन्दूर की तरह दोनों
अपने हिस्से के घेरे का
      आसमान भी
और, नायकत्व की भूमिका में
           उनका संकल्प भी
मैं अपनी पीड़ा में महाकाव्य रचूँगी
           पीड़ा के रूप में मेरी रचना मुझे,
          उत्प्रेरित करती
            रहेगी
और मैं,
   जी लूँगी, अपनी 
   महाकाव्य की
        पीड़ा में
महादेवी की तरह ।।


आशा त्रिपाठी
डीपीओ उत्तराखण्ड
*भारत का अभिमान है हिन्दी*।।


सरस ,सहज,नवरस अभिलाषा,
जन-मन- गण की सुरभित भाषा।
शुभग कलश पूरित नव आशा।।
ओज परम् शुभ गान है हिन्दी।
*सहज कण्ठ मृदु बान है हिन्दी*।
*भारत का अभिमान है हिन्दी*।।
शुभग ,मुदित,मकरन्द यही है,
भाव,भक्ति,कवि छन्द यही है।
भारत भू की विस्तृत भाषा।
संपूर्ण धरा की गंध यही है।।
संस्कृति देश प्रतिमान है हिन्दी।।
*भारत का अभिमान है हिन्दी*।
प्रेमचन्द्र की अद्भुत रचना,
अभिव्यक्ति की सरल संरचना।
गरल काव्य नव छ्न्द विपुल हो,
हिन्द प्राण प्रण शब्द अतुल हो।
प्रेम प्रीति रसगान है हिन्दी।
*भारत का अभिमान है हिन्दी*।
मीरा के भावों की गागर,
महादेवी का अविरल सागर।
रामकथा शोभित तुलसी की।
नानक ,कबीर,रसखान है हिन्दी।
*भारत का अभिमान है हिन्दी*।
हृदय कुंज ,भव पुंज सहजता,
अस्तित्व हिन्द, तम तेज सरसता।।
अमिय प्रीति से पूर्ण विधा यह,
मातृभूमि की प्राण सुधा यह।
आन बान और शान है हिन्दी।
*भारत का अभिमान है हिन्दी*।
हिन्द देश की प्राण प्रिया यह,
वन्दनीय जन-मान जिया यह।।
काव्य ,ग्रन्थ,पुराण आत्म भव,
गीत ,रीत  ,संगीत छन्द नव।
शारदा सृत वरदान है हिन्दी।
भारत का अभिमान है हिन्दी।
विश्व पद्म पद पावन हिन्दी,
सरस,सहज मनभावन हिन्दी।
शाश्वत मृदुल लुभावन हिन्दी।।
जन मन रंजन गायन हिन्दी।।
आशा की पहचान है हिन्दी।
भारत का अभिमान है हिन्दी


# *श्रृंगार   धरा  का*#
विधा-   कविता
स्पर्धा हेतु    हाँ
रचनाशिल्पी
का नाम  ----डॉक्टर आभा
                  माथुर
पता   ---. 1045 गाँधी
               नगर,ईदगाह
                रोड,उन्नाव उ प्र
आओ करें श्रृंगार धरा का
नूतन वस्त्राभूषणों   से
हरीतिमा  की  चूनर  लाओ
शर्माई  धरती  को  सजाओ
पुष्पगुच्छ के  कर्णफूल  हों
पकी फ़सल हो स्वर्णमेखला
कर सोलह श्रृंगार वधू का
प्रियतम के समीप ले जाओ
कलकल ध्वनि से  वह   हास करे
खग कलरव से नित
नृत्य  करे
शृंगार धरा का मिट न सके
ऐसा हम तुम उद्योग करें
आओ करे कुछ काम अनोखा
लहराये आँचल धरती का
     
स्वप्निल प्रदीप जैन
खंडवा
हिन्दी


हिन्दी तो हिन्दुस्तान कि
उद्गम हुआ है इसका संस्कृत
प्राकृत भाषा से
जो, भाषा मे मीठापन है
अपने पन कि प्यार है
देती हिन्दी प्यारी सी मुस्करान रे
गीत और गाने फिल्मी हिन्दी मे गुनगुनाते है
सुर संगीत कि  शान है
मेरी हिन्दी भारत के हर झेत्र कि जान है
हिन्दी का नमस्ते पूरे विश्व मे है मशहूर
चर्चा मे रहता है  मेरा राष्ट् गान यह


डा0महताब अहमद
देवबंद
"प्यारी भाषा है हिंदी"


सुंदर जिससे हिमालय का ताज!
मीठे जिसके सुर और साज है!!
वह  प्यारी  भाषा  है  हिंदी.   !
यह जन जन की जो आवाज है!!


हिंदी उर्दू बहना -बहना!
दोनों का संग संग रहना!!
भारत की पहचान है दोनों!
दोनों है साहित्य का गहना!!


हिंदी लगे यारों बेगानी!
अंग्रेजी अब लगे महारानी!!
हिंद के लोगों की नादानी!
देख के आया ऑखों में पानी!!


देश का अभिमान है हिंदी!
भारत की यह शान है हिंदी!!
"आजाद"की बातें लगती सच्ची!
भारत की पहचान है हिंदी!!


नाम    रेखा जोशी
पता.    565/16A,फरीदाबाद, 121002
रचना
हिंदी हमारी
पहचान अपनी
जान हमारी
……………
राष्ट्र की भाषा
मिले सम्मान इसे
है मातृ भाषा
……………..
आन है यह
भारत हमारे की
शान है यह
..............
दिल हमारा
हिन्दोस्तां धड़कन
सबसे प्यारा
.................
हमारी हिन्दी
है भारत की भाषा
जय भारती
जय भारत जय हिंदी


आचार्य गोपाल जी
                   उर्फ
        आजाद अकेला (बरबीघा वाले)
पता :- प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा
          शेखपुरा बिहार


शीर्षक :- हिंदी हमारी शान है


भारत की पहचान है
हिंदी  देश की मान है
भारत का अभिमान है
हिंदी हमारी शान है


दुहिता है ये संस्कृत की
हिंदी बड़ी महान है
देती सबको सम्मान है
हिंदी हमारी शान है


न्यारी है ये हिंदी हमारी
हमें ये अभिमान है
आत्मसात करती  हिंदी
हिंदी हमारी शान है


हिंदुस्तान की मुस्कान है
अपनी पहचान है
हम सब का सम्मान है
हिंदी हमारी शान है


नाम शशांक मिश्र भारती
पता हिन्दी सदन बड़ागांव शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश


कविता
चार मुक्तक
एक
तुलसी कबीर मीरा और जिसमें रसखान मिलते हैं
प्रसाद पन्त निराला और महादेवी के गान मिलते हैं ।
भारतीय एकता की सदा मूलमंत्र रही हिन्दी को
आजादी के दशकों बाद क्यों न अधिकार मिलते हैं ।
दो
विदेशियों से मुक्त हुए कई दशक बीते हैं
मत जो पहले था अभी भी उसी में  जीते हैं ।
भाषा संस्कृति के नित आक्रमण हम पर होते
स्वभाषा संस्कृति की रक्षा में हम क्यों पीछे हैं ।
तीन
विदेशी बोलते अपनी भाषायें पर हम विदेशी में जीते हैं
स्वभाषा गौरव की रक्षा न प्याला गरल का पीते हैं ।
निजभाषा उन्नति ही अपनी एकता का सूत्र होती
उसके स्वाभिमान की रक्षा बिन स्वप्न सभी रीते हैं ।
चार
भारत का सम्मान बिन्दु हिन्दी देश के मस्तक की यह बिन्दी
देश में ममता का नाम सूर मीरा तुलसी का गान हिन्दी ।
प्रसाद पन्त निराला का मान हिन्दी  रसखान के रसों की खान हिन्दी
कबीर जायसी रहीम भूषण से एकता का वरदान हिन्दी ।।


सुनीता असीम
आगरा
विधा-गीत


हलचल


पहचान जबसे हुई मौन से
हलचल हुई है मन में...
बिन बोले मुखर हुआ है मौन
हवा चली कुछ कह गई
मैं उसमें ही बह गई
हलचल हुई है मन में...
आवाजाही कलरव की
मनपंछी को भरमाती
सूरज की किरणें आकर
सोना सा हैं बरसातीं
हलचल हुई है मन में...
है नहीं कुछ जरूरी कि
बातें हों मुख से मुख की
धड़कन की सरग़म भी
बरसात करें सुख की
हलचल हुई है मन में...
परछाईं यादों की
दिल दुखाएं रातों में
फिर सोचूँ पगली सी मैं
क्या मजा है बातों में
हलचल हुई है मन में...


अंकिता जैन 'अवनी
अशोकनगर मप्र
कविता
"शिकन"
आसमान में छाये जो,
मैं वो काले घन नहीं हूं,
जो कालिमा लेकर आये,
मैं वो कोई ग्रहण नहीं हूं।
मैं तो तेरा मान हूं बाबा,
तेरे माथे की शिकन नहीं हूं।
जो वेदना देती तुमको,
मैं वो कोई चुभन नहीं हूं,
जो आहूतियां मांगे बस,
मैं ऐसा कोई हवन नहीं हूं,
मैं तो तेरा गौरव बाबा,
तेरे माथे की शिकन नहीं हूं।
जो तेरे वंश को आगे बढ़ाये,
जानती हूं, मैं वो तेरा रत्न नहीं हूं,
जिसके जन्म की चाह थी तुम्हें,
मैं वो तेरा श्रवण नहीं हूं,
पर मैं तेरी लाडो प्यारी,
तेरे माथे की शिकन नहीं हूं।


नाम-डाँ. जितेन्द्र "जीत"भागड़कर
बालाघाट,म.प्र


            "दोहा"
––-–---------------- - - -
हिन्दी सदा हुई रही, भारत माँ की शान।
इस से बलिहारी हुये, कबीर औ रसखान।।
----–--------- - – – -----


डॉ राजीव पाण्डेय गाजियाबाद(उ0प्र0)


हिन्दी पर व्यंग्य कविता


एक दिन हिंदी के महान,नव उदीयमान
कवि जी आये,आमने सामने टकराये,
नव उदित भाषा में फरमाये।
मैंने पूछा भई क्या हाल है,
लिखा क्या नया माल है?
        वो ही कुछ सुनाइये-
उन्होंने मन में कुछ गुनगुनाया,
फिर दो चार पंक्तियों को सुनाया,
अंत में रुककर बोले, साहब!
'लास्ट लाइनों' में आपका विशेष ध्यान चाहूँगा।
और कुछ आपका आशीर्वाद भी पाना चाहूंगा।
मैंने कहा -
आप हिंदी की कविता में अंग्रेजी का क्यों प्रयोग कर रहे हो?
अंतिम पंक्ति या अंतिम बन्ध की जगह 'लास्ट लाइन'क्यों बोल रहे हो?'
कवि जी कुछ शरमाते हैं और तपाक से फरमाते हैं-
'सॉरी सर' अब नहीं कहूँगा।
मैंने उन्हें फिर समझाया -
आपने खेद व्यक्त करने के लिये 'सॉरी' क्यों लगाया?
कवि जी फिर झेंपते हैं और बोलते हैं-
जल्दी में 'मिस्टेक' हो जाती है'
मैंने कवि जी को रोका और 'मिस्टेक' के फिर लिये टोका।
उनकी जिव्हा ने लिये हिचकोले और फिर संभलते हुए बोले
क्या करूँ 'सर' कुछ 'हैबिट' ही पड़ गयी है
मेरे 'माइंड' में बुरी तरह अड़ गयी है
निकालता हूँ निकलती ही नहीं है।
अंत में मैंने 'सॉरी, मिस्टेक, हैबिट माइंड आदि गलतियों का गट्ठर थमाया।
उन श्रीमान जी ने मुझे 'थैंक्यू' फ़रमाया।
मैने कहा बेटा संसार में बहुत नाम कमाओगे
दादा पुरुखों का नाम चलाओगे
अंग्रेजी परम्परा को अच्छी तरह निभाओगे
और कुछ हो न हो,कविता के इश्क में
अमर जरूर हो जाओगे,
अमर जरूर हो जाओगे।


 


दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" कलकत्ता
"काव्य रंगोली"
जीवन एक अनबुझ पहेली ,
इसमें भरी है काव्य रंगोली ।
जीवन से करो इतना प्यार ,
रंगोली में उतने रंग हजार ।
काव्य के है जैसे रंग हजार ,
जीवन उतना ही सुंदर संसार।
रंग रूप अनेक,अनेक भाषा बोली,
अनोखी है ये अपनी काव्य रंगोली।
संबंध है जितना गहरा दामन चोली,
उतनी ही शानदार है काव्य रंगोली।
छटा प्रकृति की ऋतु और हरियाली,
सब इसमें समायी है काव्य रंगोली ।
जीवन हो जाता अंधेर काली ,
होती नहीं यदि काव्य रंगोली ।
प्रेम, त्याग,मिलान ,विरह की लाली,
सुखमय जीवन जहाँ काव्य रंगोली।
माया,मोह,ममता,माता,पत्नी,साली,
सब रंग अपने में समेटे काव्य रंगोली।
व्रत,त्यौहार,ईद,दीवाली और होली ,
"दीनेश" मिले सब,जहाँ काव्य रंगोली।
आज विश्व हिंदी दिवस की लाली,
सब मिल के मनाए काव्य रंगोली।


ममता कानुनगो
इंदौर मध्यप्रदेश


रचना : आत्म-अभिव्यक्ति
कथन औ कथ्य से परे
स्वतंत्रभिव्यक्ति चाहती हूं
बंधन औ बाध्य से परे
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


समय गतिमान है
ना रुकता है,ना ही रुकेगा
काल के प्रवाह को
स्वगति देना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


कल्पित-कपोल रुढ़ियों से
अनचाही परंपराओं से
मुक्त हो नवीन संरचना चाहती हूं
स्वहित हेतू कुछ नियम बदलना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


अविरल धारा सी
होती रहूं प्रवाहित मैं
होकर समाहित सागर में
थाह उसकी पाना चाहती हूं
सीप का मोती बनकर मैं
स्वयं में सागर समाना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


शब्द राग से परे
भावनाओं से व्यक्त हो
ना साज हो ना आवाज हो
अपनेपन का स्वच्छंद एहसास हो
निच्छल प्रेम का मैं
गीत गुनगुनाना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


हर श्वांस और प्रश्वांस में
खुद को ढूंढना चाहती हूं
हर एक स्पंदन में
मैं आत्मानुभूति चाहती हूं
स्वयं को पाकर मैं स्व में खोना चाहती हूं
निर्बाध मौन को मैं
सांसों में सहेजना चाहती हूं।।


नीरजा'नीरू
लखनऊ
गीत:
~~~


जब जड़ पर करो प्रहार कड़ा...
~~~~~~~~~~~~~~~


विष का मर्दन तो विष से ही
हर बार सदा हो पाता है
जब जड़ पर करो प्रहार कड़ा
तब रोग जड़ों से जाता है


बचने को बड़ी कतारों से
तुम धन को आगे करते हो
दो पल का समय बचाने को
सिद्धांत ताक पर धरते हो
करते हो रोपण लालच का
पथ यही गलत अपनाते हो
बातें तो करते बड़ी बड़ी
पर अमल शून्य कर पाते हो


ये छोटा दिखता कदम सुनो
अब तुमको खड़ा चिढ़ाता है
जब जड़ पर करो प्रहार कड़ा
तब रोग जड़ों से जाता है


हो अधिकारी या हो बाबू
सब मिल कर लूटा करते हैं
हो काम कोई छोटा सा भी
ये जेबें पहले भरते हैं
छोटों से लेकर बड़े बड़ो
का अपना अपना हिस्सा है
हर सरकारी दफ्तर का ही
अब होता ऐसा किस्सा है


इन काले काले नागों से
ये तंत्र भ्रष्ट बल खाता है
जब जड़ पर करो प्रहार कड़ा
तब रोग जड़ों से जाता है


जो महलों में बैठे रहते
वो ही तो ज्यादा भूखे हैं
धन दौलत के अंबार भरे
पर मन के एकदम रूखे हैं
कर कर के चोरी ये कर की
देते सरकार को धोखा हैं
ऋण लेकर चंपत हो जाते
भरते सब झूठा खोखा हैं


इन चोरों की ही चोटों से
विकास सदा लंगड़ाता है
जब जड़ पर करो प्रहार कड़ा
तब रोग जड़ों से जाता है


बचपन से ही जो देख रहा
छल कपट धूर्तता लालच को
वो बीज बड़ा होकर बाँटे
इनके ही मानो इस सच को
जाने अनजाने ही जब भी
करते हम सब कुछ भूल कहीं
पीढ़ी दर पीढ़ी ही चुभते
फिर हमको वो ही शूल कहीं


र्यूँ संस्कारों से रिक्त बने
जो कल का भाग्य विधाता है
जब जड़ पर करो प्रहार कड़ा
तब रोग जड़ों से जाता है


    '


    नाम ..अनन्तराम चौबे अनन्त
पता....113/ए नर्मदा नगर
         ग्वारीघाट जबलपुर म प्र
मो..9770499027       
   कविता  हिंदी का गुणगान करो


काव्य रंगोली  हिंदी दिवस आन लाइन प्रतियोगिता 2020
दिनांक 10/01/2020
शीर्षक...। हिंदी का गुणगान करें ।


          हिन्दी का गुणगान करें


मान करे सम्मान करें
हिन्दी का गुणगान करें ।
हिन्दी भाषा कितनी प्यारी
सब मिलकर सम्मान करें ।


कोई कहे हम मलियाली हैं
कोई कहे हम वंगाली हैंं ।
वंगाली मलियाली कहकर
बोलते वैसे ,अपनी बोली है।


महाराष्ट गुजरात के भाई
मराठी,गुजराती भाषा बोले ।
बुन्देल खंड़ी बुन्देली बोले
बखेल खंडी बखेली बोले ।


छत्तीस गढ़िया कहते बढ़िया
भाषा बोलें छत्तीस गढ़िया ।
बिहार बाले बिहारी बोले
आसाम की भाषा हैअसमिया ।


तमिल और केरल की भाषा
उनकी भी है अपनी भाषा ।
राजस्थानी, हरियाणा वासी
पंजाबियो की पंजाबी भाषा ।


कौन बोलता हिन्दी भाषा
जो हिन्दी का गुणगान करें ।
हाँ हिन्दी दिवस सभी मनाते
बस नाम का सब गुणगान करें ।


बच्चों को सब अग्रेजी पढ़ाते
क्षेत्रीय भाषा न वहां कोई बताते ।
हिन्दुस्तानी सब भाई भाई फिर भी
हिन्दी को राष्ट भाषा नहीं बनने देते ।


बस हिन्दी दिवस सभी मनाते
नाम का हिन्दी, गुणगान करते हैं ।
राष्ट भाषा हिन्दी को बनवाओ
निवेदन सभी से हम करते हैं ।
     अनन्तराम चौबे अनन्त
         जबलपुर म प्र
     
  


काव्य रंगोली हिन्दी दिवस
आनलाइन  प्रतियोगिता  10 जनवरी 2020


    "हिन्दी हमारी शान है"


हिन्दी हमारी शान है
हिन्दी हमारी जान है
हिन्दी हमारी भाषा में
  पूरा  हिन्दुस्तान है।।


हिन्दी  तो अनमोल है
जिसका न कोई मोल है
हिन्दी हमारी भाषा में 
भावों के मीठे बोल हैं ।


हिन्दी हमारी है  सरल 
हिन्दी हमारी  है सहज
हिन्दी हमारी भाषा  तो
सब भाषाओं में विरल।


हिन्दी  में  है  ममत्व
हिन्दी में  है हिन्दुत्व
हिन्दी हमारी भाषा में
है  अधिक  अपनत्व।


हिन्दी में   ममता है
हिन्दी में  समता  है
हिन्दी हमारी भाषा
सिखाती है  एकता ।


हिन्दी में  ही  राम है
हिन्दी में  ही श्याम है
हिन्दी हमारी भाषा में 
शिव शंकर भगवान् है।
 
हिन्दी में ही है माधुर्य 
हिन्दी  में है  सौन्दर्य 
हिन्दी हमारी  भाषा 
सबसे अधिक औदार्य।।


आशा जाकड़ (कवयित्री)


नाम- राजेश शर्मा
पता- एच -94 गली नो0 -6 गंगा विहार ,गोकुलपुरी, पूर्वी दिल्ली
मो0- 8810259668
*हिंदी दिवस ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2020*( *10 जनवरी 2020)*
*शीर्षक-गुम हैं कही वो लम्हे*
गुम हैं कही मेरे वो लम्हे
जो साथ कभी मेरे थे
जिंदगी के अनजान सफर में
कभी हमराही मेरे थे
एक बेपरवाह पथिक का
सम्बल भी वही थे
मेरी जिंदगी जीने का
एकमात्र सहारा भी वही थे
पर वो भी आज मुझसे
नाराज़ बैठे हैं
मेरी जिंदगी को  एक  
भूली किताब समझ बैठे हैं
वो किताब जो धूमिल
सी हो चुकी हैं
शब्द प्रेमियों के
क्षितिज से परे हो चुकी हैं
पर यकीन हैं मुझे
वो लम्हे मुझे ढूंढ  ही लेंगे
आखिरकार वो लम्हे हैं *इंसान* नही!
         


*हिंदी दिवस ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 2020*
नाम*डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
*पता*19/303 इंदिरा नगर लखनऊ  उ. प्र. 226016
*मो*8787009925
*कविता*
पाहन पूजक हैं कहाँ-----


बेटी को सम्मान में,
लिखा गया अध्याय ।


क्षमा करो तुम निर्भया
जीत नहीं यह फंद
अंतर्मन जो भिद चुका
मेंट सके जो द्वंद्व
माटी तन माटी हुआ;मृत्यु
दण्ड अभिशाप


अनिच्छा उदासीनता,
हुआ देर से न्याय ।


दीन करे अहसास को,
नींद न आये  रैन
हिंसा हिंसक जात क्या
मन करता बेचैन
कदम ताल करते रहे
नीतिपरक संदेश


मिटें अराजक देश से
जाग उठे संकाय ।


रात ऊँघती भोर तक
लगे अनसुना शोर
मौन सुनेगा पातकी
आर्तनाद झकझोर
खत्म न होंगे सिलसिले
रक्तबीज ये दाग


पाहन पूजक हैं कहाँ
मूर्त करें समुदाय ।
           डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी


काव्य रंगोली हिन्दी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10जनवरी 2020


विषय- *ठंड का मौसम* 
विधा - कविता


ठंड का मौसम अपने आप मे
एक तराना ले कर आता है ।
कहीं हाड़ कंपा देने वाली ठंडी,
तो कहीं मखमली रजाई की गुदगुदी।
कहीं गरमागरम पकौड़े के चटकारे,
तो कहीं दो रोटी के लाले।
ठंड का मौसम जरकिन पे टोपी,
कही अधनंगा ठिठुरता वदन।
कहीं विरहन को    जलाती     , राते है,
तो कहीं प्रणय  के     मिलन की  आशा है।
कही प्यार से सरावोर फूली नहीं समाती राते,
तो कहींं माइनस के तापमान मे सीमा पर डटे जवान।
कहीं शाजिसो के अलाव मे हाथ तापती राजनीति ,
तो कही दुश्मन की नींद उड़ाती यह बर्फीली राते।
कहीं जिस्म को गलाने वाली सिहरन मे खेत में  पानी दे रहा किसान,
तो कहीं पत्थर तोड़ता मेरे वतन का श्रमिक।
ठंड के मौसम मे लौरिया गाती माँ,
तो कहीं  ठंडे  मौसम मे साजन का इन्तजार करती सजनी।
कहीं फटे कपड़े मे स्कूल जाते हुए देश के भविष्य,
तो कहीं मौसम को चुनौती देते हुए शाला मे राष्ट्र निर्माता।
ठंड के मौसम के तराने कुछ हम गा रहे है।
कुछ तुम्हे गुन गुनाने है ठंड के मौसम मे ।


स्वरचित मौलिक रचना के साथ सौदामिनी खरे दामिनी रायसेन मध्यप्रदेश ।


नाम - ऋचा वर्मा
अनिसाबाद
पटना


कविता
मंगलकामनाएं


जाते - जाते ऐ दिसंबर मुझको एक उपहार देना,
एक टुकड़ा धूप का मेरे बिस्तर पर डाल देना।
इतनी सर्द सी रातों के बाद एक मौसम खुशगवार देना,
दबी-दबी सिसकियों के बदले चेहरों पर हंसी बेशुमार देना।
उदास सा था साल पिछला, इस वर्ष तुम खुशियां अपार देना,
हवस की आग में जला दिये जिस्म कितने,इस वर्ष एक न ऐसा गुनाहगार देना।
न सहमे कि स्त्री हैं हम, न लड़ें धर्म के नाम पर, एक ऐसा संसार देना,
खुशहाल रहे सारी जनता, सबके हाथ में एक न एक रोजगार देना।
स्वस्थ तन, स्वस्थ मन, स्वस्थ जल, स्वस्थ थल और स्वस्थ बयार देना,
शांतिप्रिय हम हैं तो फिर, दुश्मनों के हाथ ना कभी तलवार देना।
जाते-जाते ऐ दिसंबर सबको ऐसा समृद्ध संस्कार देना,
हाथ न फैलाये कोई, अन्न से भरा भंडार देना।
ऋचा वर्मा




*लड़ो, तुम्हे लड़ना होगा*


लड़ो, तुम्हे लड़ना होगा
अपनी आत्मरक्षा के लिए
अपनी आत्मसम्मान के लिए
अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए
तुम्हे लड़ना होगा।


अगर नही लड़ सकते तो
मरो, मर गए है कितने
कितने मर रहे है
तुम भी मार दिए जाओगे
एक न एक दिन
और नहीं बच पाएगा
तुम्हारा वंश ,
वो भी खत्म
कर दिए जायेंगे
तुम्हारे साथ ही ।


याद रखो तुम्हारी चुप्पी
कहीं न कहीं
बढ़ावा दे रही है
उसमे छिपे
हिंसक प्रवृत्ति को
जो कल किसी और
का कत्ल किया था
आज तुम्हारे बारे मे
सोच रहा है ।


तुम गीदड़ की औलाद नही
तो कायर क्यों बनते हो?
मरने से नही डरते तुम तो
हौसले क्यों नही
अपनी बुलंद करते हो?


सूर्य की तरह तेज है तुझमें
सिंह की तरह दहाड़ दो
सोच भी नहीं सके खिलाफ तेरे
ऐसे तुम उसे पछाड़ दो
शक्ति तुझमे है निहित
तुम खुद को सिर्फ पहचान लो।


दिखावटी लड़ाई लड़ो जितना घर में,
पर मन मे रखना कोई बैर नहीं
बुरा चाहने वालो का सोच भी पनपे अगर
समझा दो उसको , उसकी खैर नहीं
कोई नही आएगा बचाने ,
साहस तुम्हीं में है , वो कोई और नहीं।   
नाम - संतोष कुमार वर्मा  कविराज
पता - 15/17/1 नया नगर स्थिर पाड़ा रोड , पोस्ट - कांकिनाड़ा, उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल।


*काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020*


काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020


घनाक्षरी
*******
पहली बार जो बोला,वो हिंदी का आखर है।
हिंदी मेरी मातृभाषा,हिंदी में सिद्धस्त हैं।।
पढ़ लिख बाबू बन,अंग्रेजी भाषा सीखी।
मातृभाषा गयी भूल,गुलामी से ग्रस्त हैं।।
घर में तो हिंदी बोलूं,बाहर विदेशी भाषा।
दो दो चेहरे से मन,बड़ा अस्त व्यस्त हैं।।
कर जोड़ निवेदन, करती निवेदिता है
हिंदी का सम्मान करो,हिंदी मातृहस्त हैं।।
          #निवेदिताश्री
        विपुलखण्ड,गोमतीनगर
            लखनऊ


*नाम*- *नीतेश उपाध्याय*
*पता*- *ग्राम केवलारी उपाध्याय पोस्ट हिनौती पुतरीघाट तह-तेंदूखेडा जिला दमोह 470880 मध्यप्रदेश*
*मो*- *7869699659*
*विधा*-गजल


उम्रदराज नहीं होता


इश्क कितना भी पुराना हो जाए
वो कभी उम्रदराज नहीं होता


जो दिल से कहा गया हो कभी
फिर कभी वो गुजरा हुआ अल्फाज नहीं होता


मानाकि खामोशियों के तले इश्क बसर करता है
पर बेजुबान इश्क का मतलब बेआवाज नहीं होता


हर मर्ज का इलाज है दवाखाने में यारो
एक मोहब्बत ही ऐसा मर्ज है साहेब जिसका कहीं इलाज नहीं
होता


नजरों के दरमियाँ जो ख्वाब होते हैं ख्वाहिशों के
जो बयान हो इस तरह वो कभी फिर यारो राज नहीं होता


जो दिल से हो अपना वो रुठता है कुछ पल को
उम्रभर गैरों की तरह वो कभी नाराज नहीं होता


जो इश्क की दुनिया में कदम रख चुका हो कभी
वो इस जमाने से फिर कभी आजाद नहीं होता


जिसे निभाना हो तो उम्रभर का साथ निभाए
आधा सहारा देने का इश्क में रिवाज नहीं होता


जो करे न इज्जत इनायती इजाद ए इश्क की
उसका खुदा की नजर में कभी लिहाज नहीं होता 


हिंदी ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020
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अब ना छोड़ेंगे तुझे
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अब जवानों की शहादत ,व्यर्थ न यूँही  जाएगी
जाग उठा है देश ये सारा, आँच अब ना आएगी
धैर्य सब टूटा है अब, ज्वालामुखी है रिस रहा
अब ये दावानल जलेगा, सुप्त अब तक जो पड़ा ।


हर वक्त तूने ही तो अपनी, धृष्टता दिखलाई है
हारकर भी क्यों ना तुझको, अक्ल अब तक आई है
पाल कर आतंक तेरा ,नाश होता जा रहा
और अमानुष तू बना अब ह्रास होता जा रहा ।


देश और मजहब को लेकर,जंग तूने छेड़ दी
और पराई भूमि खातिर, आँख तूने टेक दी
वीर सैनिक का लहू, अब शांत हो ना पाएगा
इसकी कीमत अब तेरा ,विनाश ही चुकाएगा।


याद रख हर बार ही तो, जीत हमनें पाई है
और खदेड़ा है तुझे , औकात भी दिखलाई है
पीठ पीछे वार करना ही तो तेरा धर्म है
अब ना छोड़ेंगे तुझे ,क्योंकि ये मेरा कर्म है।


सुशीला शर्मा
64-65 विवेक विहार
न्यू सांगानेर रोड, सोडाला
जयपुर 302019
मोबाइल. 9214056681


🇮🇳   *विश्व हिन्दी दिवस*  🇮🇳
*हिन्द के समस्त हिन्दी प्रेमियों को सादर अभिवादन*


क्या मात जननी का हम पर
कोई एहसान नही है ,
क्या मातृ भूमि का हम पर,
कोई एहसान नही है ।
शुद्ध हृदय से हम भी कभी,
इस पर भी मंथन किया करें ,
क्या मातृ भाषा का हम पर ,
कोई एहसान नहीं है ।।


जननी ने हमको जन्म दिया,
खुद लाखो भर उठाती है ,
भूमी भी हमको खिला-कुदा,
खा पीकर ज्वान बनाती है ।
इनके अंचल के ऋण से हम,
उद्धार हुए न होंगे कभी ,
सांसारिक जीवन हो सुखमय,
भाषा साकार बनाती है ।।



माँ, भूमि और भाषा का ,
क्यों उज्ज्वल पर्व नहीं है ,
हम सब का उत्थान करे,
क्या ये गंतव्य नहीं है  ।
हिन्द की देवी का परचम,
हम सकल जहां में फहरायें ,
क्या हिन्द के बेटों का,
माता प्रति ये कर्तव्य नही है ।।
विपिन विश्वकर्मा 'वल्लभ'
कानपुर देहात  उत्तर प्रदेश
8601114755


आज दिखी एक बूंद टपकती फ़िर आँखों से शबनम की,
कैसे कह दूँ देख नहीं पाया मैं पीड़ा मातम की।


कब तक क्रूर दरिंदे अस्मत को बहनों की लूटेंगे,
कब तक हम यूँ मोमबत्तियां जला जला कर फूंकेंगे।


सरकारें सारी केवल सत्ता की लोलुप रहती हैं,
राज पिपासा प्यारी इनको सदा डरी सी रहती हैं।


छोड़ के डर अब राजसुखों का बड़े फैसले फ़िर से लो,
जो बहनों की अस्मत लूटे बीच चौक में फांसी दो।


कैसे बिटिया पढ़ने जाए कैसे उसे बचाएं हम,
हर घर बेटी वाला घर है कैसे उसे सजाएं हम।


एक एक कर के इतनी बहनें हमने लुटते देखीं,
पर सरकारें केवल निंदा कर हमने ठगते देखीं।


मत वालों के मत मत देखो केवल जनमत ध्यान रखो,
ऐसे नीच दानवों का वध करने का बस ध्यान रखो।


है धिक्कार हमें हम बहनों की ख़ातिर कुछ कर न सके,
जात पात पर लड़े भिड़े पर इनकी ख़ातिर लड़ न सके।


बेटी बस बेटी होती है उसकी ज़ात नहीं होती,
जो इनकी रक्षा करते हैं उनकी मात नहीं होती।


एक विधेयक ऐसा लाओ काँप उठें सारे वहशी,
अंग भंग कर डालो इनके रहें ये आँखें धंसी धंसी।


दावा करता हूँ जननायक अपनी शपथ उठाता हूँ,
कांड न फ़िर से ऐसे होंगे ये भरोस दिखलाता हूँ।


भारत माता की जय बोल के राक्षसों को लटका डालो,
इक कतार में खड़ा रखो फ़िर एक साथ टपका डालो।


भारत माता की जय,
वंदे मातरम् ,,


अश्क़ बस्तरी
उरमाल


काव रंगोली हिंदी दिवस आॅनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020


विषय : राधा-कृष्णा
****************
  (1). मात्रा भार : 17
पाँव में पहनूँ मैं पैंजनिया।
सर से मोरे सरके चुनरिया।
मनमोहक छवि तेरे लिए है,
प्यार में तेरी हूँ बाँवरिया।
(2)
सुनो ओ कान्हा दरस दिखा दो।
मुरली की जरा तान सुना दो।
देखो राधा कब से खड़ी है,
अब तो सुधा-रस पान करा दो।
(3)
इक तू ही नहि तड़पे अकेली।
सुलझाऊँ कैसे ये पहेली।
कैसे दिल की बातें बताऊँ,
घेर खड़ी हैं संगी- सहेली।
(4)
राधा-कृष्णा दो नहीं जानो।
एक-दूजे के पूरक मानो।
राधा कृष्ण है, कृष्णा राधा,
है यही सत्य इसे पहचानो।
                 गीता चौबे 
                रांची झारखंड


काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता
10 जनवरी 2020
नाम- राहुल मौर्य
पता- बेचापुर पोस्ट बांकेगंज जिला लखीमपुर खीरी
मोबाइल- 9452383538


हिन्द देश की प्यारी हिंदी,
भाषाओं में न्यारी हिंदी,
शब्द-शब्द गौरव गाथा हैं,
राजदुलारी, प्यारी हिंदी ।


वैज्ञानिकता की खान है हिंदी,
भावों  का  संसार  है  हिंदी,
सरल स्वभाव है इसका सबसे,
हम  सबकी  जान  है  हिंदी ।


भाव सागर है ज्ञान का हिंदी,
हम सबकी पहचान है हिंदी,
कड़वे को भी जो मीठा कर दे,
मिष्ठानों  का  भंडार  है हिंदी ।


तुलसी, सूर, कबीर की हिंदी,
कृष्णदिवानी मीरा की हिंदी,
अनंत काल तक गूंज जिसकी,
छंदबद्ध,   लयकारी    हिंदी ।


हमको पुरखो की देन है हिंदी,
हिन्द देश के सम्मान की हिंदी,
जो सबको प्यार में बंधे रखती,
रग - रग  में  बहती  है  हिंदी ।


*काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~


नाम :- प्रमोद सोनवानी "पुष्प"


पता :- तमनार , पड़िगाँव - रायगढ़ (छत्तीसगढ़) पिन - 496107


मोबाईल नं. :- 9399527981


कविता ...


*उन्माद ऋतु , वसंत*
  ~~~~~~~~~~~


वसंत में सुषमा , श्रृंगार - सुमन ,
सौरभ से सुरभित हो उठते हैं ।
भ्रमर का गुंजन , गुंजे मन उन्मन में ,
प्राण - पिक प्रणयातुर हो उठते हैं ।।


उन्माद ऋतु वसंत में ,
याद प्रियतम की बड़ी आती है ।
प्रणयाराधिका भी मानसी मीरा ,
राधिका बन जाती है ।।


कवि - धनवान , बुढ़े - जवान ,
सभी अलमस्त हो झूमते हैं ।
वसंत में सुषमा , श्रृंगार - सुमन ,
सौरभ से सुरभित हो उठते हैं ।।1।।


वसंत यौवन का - प्रेम का ,
उमंग का रंग बन गया है ।
नवजीवन के सुख का - समृद्धि का ,
सुत्सव का वह सुमन बन गया है ।।


कामिनी , कुटज - कुवलय ,
पीक पान भी प्रफुल्लित हो उठते हैं ।
वसंत में सुषमा , श्रृंगार - सुमन ,
सौरभ से सुरभित हो उठते हैं ।।2।।


इस अल्हड़ सी मौसम में ,
गेहूँ भी हरियायें हैं ।
वन - उपवन की सुन्दर काया ,
मन सबका हर्षाये हैं ।।


वसंतराज के अगुवानी में ,
कमल - कामिनी विहंस पड़ते हैं ।
वसंत में सुषमा , श्रृंगार - सुमन ,
सौरभ से सुरभित हो उठते हैं ।।3।।


खेत - खलियान , मैदान अब ,
मस्ती में सब झूम रहे हैं ।
सुन्दर - सुन्दर पुष्प प्यारे ,
सोलह श्रृंगार धरा का कर रहे हैं ।।


वासंती बयार के गुंजन में ,
मदहोश सा पुरवाई भी लगते हैं ।
वसंत में सुषमा , श्रृंगार - सुमन ,
सौरभ से सुरभित हो उठते हैं ।।4।।
              ***
  *नई राह अपनाओ*
~~~~~~~~~~~


ओ नफरत में जीनें वालों ,
पग प्रेम का अपनाओ ।
गुण - ज्ञान से इस दुनियाँ में ,
अपनत्व भाव जगाओ ।।


कोई न हिन्दू , कोई न मुस्लिम ,
कोई न सिक्ख - ईसाई हैं ।
आओ मिल - जुल गले मिलें सब
हम तो भाई - भाई हैं ।।


अपनें संस्कारों से यही सब ।
अन्तर्मन में गीत सजाओ ।।
ओ नफरत में जीनें वालों ।
पग प्रेम का अपनाओ ।।1।।


निर्भय हमको बनना है ,
शोषित कभी न होना है ।
कुकर्मों से लोहा लेकर ,
सबल हमें तो बनना है ।।


समय यही है करके चिंतन ।
नई राह अपनाओ ।।
ओ नफरत में जीनें वालों ।
पग प्रेम का अपनाओ ।।2।।


          ****


विषय- भ्रूणहत्या


क्यो मार रहे मुझको पापा मुझको भी जीवन जीवन जीने दो।
जो पियूष यहाँ पी चुके आप वो पियूष हमे भी पीने दो।
क्यो मार रहे मुझको पापा ।


मै फूल सी कोमल हूँ पापा फिर क्यों तुम पत्थर मार रहे ।
बेटे क्यों प्राणों से प्यारे और हो हमको दुत्कार रहे ।
हो हमको दुत्कार रहे ।
सारा जीवन न दे पाओ केवल दस बीस महीने दो।
क्यो मार रहे मुझको पापा मुझको भी जीवन जीने दो।


क्या पता आपको है पापा बेटी ही लछ्मीबाई थी।
बेटीअनुसुइया मा पन्ना थी बेटी ही सीतामाई थी।
बेटी ही सीतामाई थी।
जो मा के सुख की फटी चादर वो आकर हमे भी सीने दो।
क्यो मार रहे मुझको पापा मुझको भी जीवन जीवन जीने दो ।


है बोलो ज़ुर्म हमारा क्या जो हमसे इतनी नफरत है।
जो सच पूछो मेरे पापा तो दिल में इतनी हसरत है।
दिल मे बस ये हसरत है ।
मा की नैनो मे जो आँसू वो आकर हमे भी पीने दो।
क्यो मार रहे मुझको पापा मुझको भी जीवन जीवन जीने दो ।


   नाम- सन्दीप कटियार यश
   पता- पूजा गाँव मुङिया लखीमपुर ।


हम बच्चे मिलकर 


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कूड़ा करकट यहाँ-वहाँ मत फैलाओ 


कूड़ेदान में ही कूड़ा डाल के आओ 


आओ-आओ प्यारे-प्यारे बच्चों आओ 


एकसाथ मिलकर भारत स्वच्छ बनाओ 


स्कूल हो या घर, सड़क हो या मैदान 


सर्वत्र चलायें स्वच्छता अभियान 


स्वच्छ रहे परिवेश हमारा करलो ये प्रण 


निश्चय ही बलवान बने अपना तन-मन 


बापू ने स्वच्छता की अलख जगाई थी 


मोदीजी ने पुन: हम सबको याद दिलाई थी 


कभी खुले में शौच नहीं करेंगे भाई 


शौच के बाद साबुन से करेंगें हाथ धुलाई 


गली-मुहल्लों में कीचड़ न बनने देंगे 


मच्छर-मक्खी,कीट पतंगे न पलने देंगे 


हम बच्चे मिलकर नया भारत बनायेंगे 


स्वच्छता अभियान को सफल बनायेंगे 


- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 


ग्राम रिहावली, डाक तारौली, 


फतेहाबाद, आगरा, 283111


मो. 9627912535


हिन्दी दिवस ऑन लाइन काव्योत्सव 2020
  नाम  -सुशील खरे " वैभव"
पता- डॉ, बाला प्रसाद होम्यो क्लीनिक 119 बेनीसागर मोहल्ला पन्ना ,मध्यप्रदेश पिन 488001
मो0 न0 9993329352


कविता
     मेरी माँ
सुबह से शाम तक घर का,
काम करती थी मेरी माँ।
रात मैं देर तक पढ़ता
साथ जगती थी मेरी माँ।
काम अन्दर के बाहर के ,
प्रफुल्लित होके निपटाती,
मेरे ख़्वावों में जीती थी,
और मरती थी मेरी माँ।
बहुत कम खर्च हो घर का,
स्वयं भूंखी रही लेकिन,
मुझे घी, दूध,फल,आदि
खिलाती रोज मेरी माँ।
धरा पर है कहाँ ईश्वर,
बहुत खोजा नहीं पाया
आदिशक्ति जगतजननी
धरा का भूप मेरी माँ।
नहीं कोई देवता तुझसा
न तुझसी कोई देवी है,
देव सारे देव देवी
महादेवी है मेरी माँ।
मैं मानूँ कैसे मेरी माँ,
नहीं अब साथ में मेरे
मेरे अन्तर में ख़्वावों में
सदा वसती है मेरी माँ।
बिना तेरे आज मेरा,
हुआ क्या हाल बतलाऊँ
किन्तु धीरज अभी भी यह,
साथ अब भी है मेरी माँ। 


----सुशील खरे "वैभव"
पन्ना मध्यप्रदेश


🌹🙏🌹शुभ प्रभात🌹🙏🌹
*काव्य रंगोली हिन्दी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10जनवरी 2020*


*शीर्षक: भूगोल बदलना बाकी है*


खेल अभी तो शुरू हुआ, परिणाम अभी तो बाकी है
इतिहास तो हमने बदल दिया भूगोल बदलना बाकी है


सेना के दो अंगों का   ट्रेलर तो तू देख चुका है
नौसेना जंगी बेड़ा का हर खेल अभी भी बाकी है


नए साल पर याद आ गया,बता दूँ तुझको बात पुरानी
समझ फुलझड़ियाँ केवल छोड़ी थी अभी राकेट उड़ाना बाकी है


देखा था तुमने तब केवल, कमाल उड़े मिराजों का
अभी तो मुझको नया नया, राफेल उड़ाना बाकी है


क्या गीदड़ भभकी देता है, परमाणु बमों की हरदम तू
जिसे पकड़ न पाए कोई दुनिया में,वो ब्रह्मोस उड़ाना बाकी है


लेकर काश्मीर का नाम, हरपल क्यों चिल्लाता है
काश्मीर में तिरंगा लहर गया, बस पी ओ के में बाकी है


खेल अभी तो शुरू हुआ परिणाम अभी तो बाकी है
इतिहास तो हमने बदल दिया भूगोल बदलना बाकी है।।


                       नीरज कुमार द्विवेदी
                    गन्नीपुर - श्रृंगीनारी, बस्ती(उत्तर प्रदेश)
दूरभाष संख्या - 8874987272


👆👆काव्यरंगोली  हिन्दी  दिवस  ऑनलाइन  प्रतियोगिता  10  जनवरी  2020
     पता--
बसन्ती पंवार
90, महावीरपुरम,
चौपासनी  फनवर्ल्ड  के  पीछे, 
जोधपुर-342008 ( राजस्थान )


मेरी  कविता
--------------------------------------
                       वो
                     परौस 
                    लाते  हैं
            थाल  व्यंजनों  से  भरा
                     जिसमें
          अहसान  की  चपातियाँ
                ईर्ष्या  की  दाल
           नफरत  की  सब्जियां
              द्वेष  का  रायता
                  होता  है .....
                 एक  जैसा
               खा- खा  कर
            मन  ऊब  गया  है ......
                कभी-कभी
               अपनत्व  का
                 मीठा  भी
         परौस  दिया  करो.......
           --- basanti Panwar,                      jodhpur  rajasthan


*काव्य रंगोंली हिंदी दिवस आनलाइन प्रतियोगिता 10जनवरी*2020*
*नाम*- विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र
*पता*-नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र
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हिंदी है मेरी मातृ सदृश हिंदी की गौरव गाथा है ।
हिंदी में लिखना भाव प्रकट
हिंदी ही हमारी भाषा है ।
हिंदी वैज्ञानिक लिपि वाली।
नहि मूक स्वरों का समावेश
निज भाषा उन्नति से ही
मिल एक  हुआ सम्पूर्ण देश ।
विस्तृत कलेवर हिंदी का
विश्व में  दूसरा  स्थान
कई बोलिया इसमें शामिल
देवनागरी लिपि निशान।
पांच उपभाषाए है इसमें
अट्ठारह  बोलियां वर्गीकृत
हिन्दवी देहलवी खडी बोली
कई नाम से है गर्वित।
भारोपीय परिवार की भाषा
हिंदी भाषा की बोली लिपि ।
343 से 351 तक वर्णित है भाषा विधि।
हिंदी श्रंगार भारत माँ की
मस्तक की बिन्दी बनी हुई
504 कुंजिया है संगणक मे लिखी हुई।
भाषा की फिल्मे विश्व जगत मे अपना स्थान बनाती है।
मारीशस नेपाल पाकिस्तान सहित
कई देशों में देखी जाती हैं ।
कवि रचनाओ फिल्मों  गीतो से
हिंदी हमारी समृद्ध रही
आदि जननि संस्कृत संग
तत्सम शब्दों से  बद्ध रही।
गौरव हमारी भाषा है,
समृद्ध हमारी भाषा है ।
दूसरी विश्व में स्थान लिए
पहली बनने की आशा है ।


   विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र


काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता 10-01-2020

नाम: डाॅ.रेखा सक्सेना
पता:मानसरोवर कालोनी मुरादाबाद। उ. प्र
मोबाइल न0 9719054766


कविता


आज कुसुमित प्रफुल्लित सुरभित फिजा।
जो  कि मादक बनाती है रब की रज़ा।।
ग़र उल्लंघन है रब का तो उसकी सजा।
आँधियों सी कयामत की होगी फिजा।।


पंखुरी - पंखुरी पुष्प की शान है।
नाना रंगों के पुष्पों का यह चमन।।
सारी जगती में इसकी जो पहचान है।
देता  पैगाम सबको यहाँ का अमन।।


वैदिक सभ्यता ही सनातन है सच।
पल्लवित है युगों से अमरबेल यह।।
ड़ूबते  को  सहारा दिया है सदा।
शरणागत भक्त-वत्सल के खेल यह।।


देव से संस्कारित  यहाँ हिन्दी है।
इक अदब की अदायगी उर्दू में है।।
गंगा-जमुनी तहजीबी दुशाले यहाँ।
स्वार्थ की राजनीति इरादों में है।।


सबकी अरदास है प्यार की खाद से।
पौध ऐसी उगाओ तुम खुशहाली की।।
जंगली  कैक्टस  न  उगाओ यहाँ।
वरना तस्वीर देखोगे बदहाली की।।


स्वरचित
डाॅ.रेखा सक्सेना
मौलिक  10-01-2020


काव्यरंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020



एक नए गीत की रचना हुई है , अपना आशीष दीजिये


श्यामधणी तेरा दर्शन पाकर हो जाऊ मशहूर ,
औ साँवरे कहीं जाना न हमसे दूर ,


दुनिया में सब रिश्ते नाते दुःख में न वो पास रहे ,
संकट की हर घडी में बाबा सदा तुम्हारी आस रहे ,
सबकी परख करा देता ये काल बडा ही क्रूर ,
औ साँवरे कहीं जाना न हमसे दूर


लाखो ठोकर जग की खाकर तेरे द्वारे आया हु ,
जितनी हुई खटाये उनका माफ़ीनामा लाया हु ,
जो भी तेरे दर आया तूने प्यार दिया भरपूर ,
औ साँवरे कहीं जाना न हमसे दूर


सदा रहे चरणो में शर्मा सर पर तेरा हाथ रहे  ,
दुनिया की अब नहीं जरुरत श्याम तुम्हारा साथ रहे,
गाके भजन तेरा......अब हो गया /गयी मशहूर ,
औ साँवरे कहीं जाना न हमसे दूर
Kavi Mangal sharma


नई चाहतों को जताने लगे हैं
हमें देखकर मुस्कुराने लगे हैं


बताती हैं उनकी अदायें हमें ये
कि बातें वो दिल की छुपाने लगे हैं


बराबर जो क़ातिल बने रोशनी के
वो घर दूसरों के जलाने लगे हैं


मुहब्बत की आहें हैं दिलकश ही इतनी
खुशी से नये ज़ख्म खाने लगे हैं


जो पहुँचे न खुद ही खुदा तक कभी भी
खुदा का वो रस्ता बताने लगे हैं


शिवांश भारद्वाज
दिल्ली
8802358838


काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10जनवरी2020


नाम-अर्चना पाठक
पता-अम्बिकापुर, सरगुजा छ.ग.पिन-497001


विधा-चौपाई
          --------
विषय-हिन्दी भाषा
         ---------------


प्यारी बड़ी हिन्द की भाषा।
मत बनने दो इसे तमाशा ।।
विश्व पटल पर ये छा जाये ।
गढ़ो कुछ कि सबको भा जाये।।


अति प्राचीन  हिन्दी हमारी।
सदा चमके बिन्दी तुम्हारी।।
निजी भाषा  सशक्त  बनाओ।
दुनियाँ में लोहा मनवाओ।।


सहज सुबोध हमारी हिन्दी।
गरिमा इसकी न करो चिन्दी।।
श्रेष्ठ सृजन कर मान बढ़ाओ ।
पावनता का पाठ पढ़ाओ।।


   विकसित हो ऊँची ये भाषा।
   सदा परिष्कृत है अभिलाषा ।।
   सभी इसे सम्मान दिलाएँ ।
   उच्च शिखर पर इसे बिठाएँ।।


   कर मिश्रित न विदेशी भाषा ।
   हो पुष्पित पूरी अभिलाषा।।
   तुम उर्दू फारसी हटाओ ।
   विशुद्ध हिंदी सब अपनाओ।।


अर्चना पाठक 'निरंतर'


काव्यरंगोली हिन्दी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगीता 10 जनवरी 2020


विरोध व्यक्ति का नहीं,शक्ति का कीजिए।


शक्ति की आशक्ति, एक सामान्य मनुष्य को भी आतातायी होने पर विवश कर देती है। जब शक्ति के पीछे,दण्ड का भय और जिम्मेदारी की जवाबदेही खत्म हो जाए,तो समाज आक्रान्त हो जाता है। शक्ति कभी भी स्वयं, दुरुपयोग नहीं करती जब तक कि शक्ति से समक्ष दबने वाले लोग हथियार डाल कर विरोध करना न छोड़ दें,वरना बर्बर बरतानिया हुकूमत के सामने एक लाठी लिए नंग-धरंग महात्मा देश की आज़ादी के सपने कभी पूरा नहीं कर पाता। मार्क्स वेबर कहते हैं- शक्ति के प्रदर्शन के लिए भीरू और मानसिक रूप से अपंग भेड़ चाल जैसी जनता की भी आवश्यकता होती है।
ऑस्कर विजेता फ़िल्म सिण्डलर्स लिस्ट में बहुत ही मार्मिक संवाद है-
"शक्ति क्या है?"
"अगर आपके पास किसी को जान से मारने की हर वाजिब वजह और आप फिर भी उसे माफ कर देते हैं, तो यह शक्ति है और आप दुनिया के सबसे शक्तिशाली पुरुष हैं"
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय कहते थे"जुल्म करने वालों को जब तक अपने जुल्म का अहसास न हो,डटे रहो। जुल्म करने वाले से कोई घृणा का भाव नहीं होना चाहिए बल्कि जुल्म से घृणा होना चाहिए।जुल्म करने वाला भी इंसान है,उसमें भी परिवर्तन की चाह अंतिम साँस तक बची हुई होती है। हर साधु का एक अतीत होता है और हर पापी का एक भविष्य।"
इस देश ने आपातकाल को भी देखा है और सत्ता के मद में चूर शासकों का पतन भी। जब उसी शासक ने दम्भ का दामन छोड़ दिया तो जनता ने दुगुने जोश से उसे उसी ताज पर बिठा दिया। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है कि जनता किसी को राजा तो किसी को रंक बना सकती है। शक्ति अगर नियमों के दायरे में इस्तेमाल किए जाएँ तो एक स्वस्थ जनतंत्र की पराकाष्ठा तक पहुँचा जा सकता है। वरना इतिहास ने शक्ति के गलत इस्तेमाल से हिटलर और मुसोलिनी का उदय भी देखा है और अपनी प्रजा के ही हाथों उनका खून भी होते हुए देखा है। और किसी ने बहुत सही कहा है -
"तुमसे जो पहले यहाँ तख्तनशीं था,
उसे भी खुद के खुदा होने पर इतना ही यकीन था"


शक्ति कोई "जीरो सम" गेम नहीं होता। आप अपनी शक्ति का प्रयोग दूसरे की कमजोरी की वजह से जरूर करते हैं लेकिन शक्ति इस्तेमाल करने और दिखाने के कई रूप होते हैं। अगर आप छात्रों पर राजनीतिक शक्ति का प्रयोग कर के उन्हें क़ाबू में रखना चाहते हैं तो छात्र अपनी सांस्कृतिक और युवा शक्ति से आप पर पलटवार भी कर सकते हैं। और इसी का चरितार्थ बहुत कुछ स्वराज आंदोलन के समय देखने को मिला। शक्ति हमेशा अपने शासकों का हाथ बदलती रहती है और हर शासक अपनी सत्ता पर काबिज रहने की हर कोशिश करता है। अतैव शक्ति के मद में ऐसा कुछ न कर बैठे कि अगला शासक आपके प्राण का प्यासा हो जाए।
"दुश्मनी जरूर करो,पर इतनी जगह जरूर रखो कि कभी मिलो तो आँखें मिला सको।


सलिल सरोज
नई दिल्ली


काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑनलाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020
संतोष शर्मा शान हाथरस उत्तर प्रदेश
ब्रज  नव गीत


बड़ा नटखट है बंसी बज‌ईया
राधा जी का सांवरिया ।
भोर भए जब पनघट पे  जाऊं
गागर भरे मैं सर पर उठाऊं
मारे कंकरिया  फोरै  गगरिया
राधा जी का सांवरिया ।।
जब री सखी दही बेचन को जाऊं
रोके गैल दही कैसे बचाऊं
छीने  दहिया और मोरे कलाइयां
राधा जी का सांवरिया।।
यमुना के तट मेरा चीर चुराया
ग्वाल बाल संग खूब सताया
जल में रोती रही मेरी सखियां
राधा जी का सांवरिया।।
नंद भवन हम जुर  मिल जावें
चलो सखि  याको मजा चखा में
कान तोरेगी फेर जसुदा मैया
राधा जी का सांवरिया।।



अब्दुल हमीद इदरीसी (हमीद इदरीसी)


179,मीरपुर कैण्ट कानपुर-208004


9795772415


हमीद के दोहे


रब  से  मेरी  है  दुआ , भर भर  कर दे हर्ष।
बीस बीस का आगमन, दे सब को  उत्कर्ष।


फिक्र आखिरत की करो,हो जाओ गम्भीर।
इक सराय  है  ये जहां,समझो मत जागीर।


बीता पिछल़ा वर्ष कुछ, थोड़ा यदि उन्नीस।
वर्तमान को कर जतन, करिये उससे बीस।


ऐवानों  में   बैठकर ,  दिया  गया  आदेश।
बाहर आ  देखा नहीं, पब्लिक का आवेश।


चमकदमकसबजाहिरी,अन्तसबड़ामलीन।
ऊपर ऊपर  मेकअप,बिगड़ी पड़ी मशीन।


झूठ बिक रहा  धूम से, आज सरे बाज़ार।
सच्चाई  खातिर हुआ, तंग बहुत घर बार।


सपनें  उनके  बेधड़क , चढ़ते  हैं परवान।
अवसर को अच्छी तरह,जो लेते पहचान।


बनना  है  तुमको  अगर , दूरंदेश  कबीर।
हल्की फुल्की बात पर,होना नहीं अधीर।


हमीद कानपुरी


काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑन लाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020


सुरेश चन्द्र "सर्वहारा"
        3 फ 22 विज्ञान नगर,
    कोटा - 324005 (राज.)
हिन्दी दिवस- आनलाइन काव्योत्सव प्रतियोगिता के लिए
-------------------------------------------------------------------------हिन्दी
हिन्दी केवल नहीं हमारे
भावों की अभिव्यक्ति,
यह तो है जीवन की ऊर्जा
प्राणों की है शक्ति।
देती आई राष्ट्र - एक्य को
एक यही आधार,
भारत के भाषा - पुष्पों का
यही पिरोती हार।
एक सूत्र में जोड़ रही है
यह सारा ही देश,
इसको बोलें तो लगता है
महका - सा परिवेश।
हो आदर से भरा हमारा
हिन्दी के प्रति भाव,
ना दें अपने व्यवहारों से
हम हिन्दी को घाव।
पढें लिखें बोलें हिन्दी में
हो हिन्दी का मान,
अखिल विश्व में हो गुंजारित
हिन्दी का जयगान।
      *****
       
    


काव्य रंगोली हिंदी दिवस ऑन लाइन प्रतियोगिता 10 जनवरी 2020
नाम - डॉ. रंजना वर्मा
पता - सम्प्रति - शॉर्लोट , U.S.A.


गीत


हैं  ठगे  से  नयन  देखते  बावरे ।
मूर्ति बन तुम खड़े सामने साँवरे ।।


बाँसुरी  की  मधुर
धुन रसीली  सुनूँ ,
प्रीति की अधखिली
भाव कलियाँ चुनूँ ।


है अनोखी जहाँ प्रीति की छाँव रे ।
मूर्ति बन तुम खड़े सामने साँवरे ।।


दूर हों अब श्रवण से
कथाएँ सभी ,
भूल जायें हृदय की
व्यथाएँ सभी ।


चल सुरभि से भरे नेह के गाँव रे ।
मूर्ति बन तुम  खड़े सामने साँवरे ।।


सृष्टि  भर  में  लगे
सबसे प्यारा मुझे ,
अब बढ़ा हाथ दे दे
सहारा  मुझे ।


हैं अनवरत चले थक गये पाँव रे ।
मूर्ति बन  तुम खड़े सामने साँवरे ।।
------------------------डॉ. रंजना वर्मा


सूर्य नारायण शूर
प्रयागराज
काव्य रंगोली हिन्दी दिवस आन लाईन प्रतियोगिता 10जनवरी  2020


साबरमती के संत।
साबरमती के संत का देखो जरा कमाल।
कैसे बदल दिया वो दुश्मन जनों की चाल।
साबरमती के ।।।।।।
लेके छड़ी वो न्याय की करता रहा सफर।
ढूंढती थी उसको दुनिया की हर नजर।
हंसते हुए दुश्मन का काटा था उसने जाल।
साबरमती के संत ।।।।।
हिंसा की तो जरूरत बिल्कुल नहीं पड़ी ।
कद ही बड़ा नहीं था थी सोच भी बड़ी ।
हल कर न पाये दुश्मन उसका कोई सवाल ।
साबरमती के संत ।।।
पर धीनता की बेडी पैरों में थी पड़ी ।
काटा उसी बेडी की हर कड़ी -कड़ी ।
कर्मों से अपने भारत को कर दिया निहाल।
साबरमती के संत ।।।
आजाद आज हम हैं आजाद है नगर।
हम देश के हैं रक्षक अब देश अपना घर।
अपना हुआ महीना अपना हुआ है साल।
साबरमती के संत का देखो जरा कमाल


नाम- माधवी गणवीर
राज्य- छत्तीसगढ़
शीर्षक-  खुदा के दरबार मे


गीतिका


हर चेहरे पर एक चेहरा मिलता है बाजार में,
देर है पर अंधेर नही खुदा के दरबार मे।


लाख छुपाओ पर छुपती नही असली सिरत,
किसी- किसी की तो मिलती नही सूरत किरदार में।


मसअला छोटा हो या बड़ा, हल हो ही जाता है,
जान क्यो गवाते हो फिर नफरतो- तकरार में।


सबको मिलना  ही है एक दिन खाक में,
क्यो दर्ज कराते हो नाम जुर्म के दावेदार मे।


कतरा-कतरा कुर्बान हो गया मुल्क पर,
लूट और बेइमानी से सराबोर खबरे है अखबार में।


जाया नही होने देंगे कुर्बानी उनकी
खड़े है मन्नत के धागें धामे खुदा के दरबार मे।



हिंदी दिवस आनलाइन काव्योत्सव
प्रतियोगिता 2020


नाम।    मीना भट्ट
पता । 1308कृष्णा हाइट्स
       ग्वारीघाट रोड जबलपुर
        मःप्रः


कविता  
     
श्यामल  वर्णा प्रेमांजलि
प्रेम की  मनुहार हो तुम
कामिनी दामिनी हो तुम
प्रेयसी हो प्यार हो तुम


मखमल  से होंठ सुर्ख हैं
कपोल की आभा रक्तिम
आह्लादित  हर बोल करे
ओज चेहरे  पर स्वर्णिम
त्याग समर्पण की मूरत
कमनीय अभिसार हो तुम


कुंदन सा रूप दमकता
कुंतल मध्य रहे गजरा
बदन सन्दल सा महकता
नयनों मे लागे कजरा
मुख छुपा रही घूंघट में
अपरिमित श्रृंगार  हो तुम


रमणीक कंदराओं की
शाँति की तो हो पहचान
मलयाचली हवाओं की
सुगन्धित मधुरिम  मुसकान
तेरी हर छुअन  निराली
सावन की फुहार हो तुम


अवनि पे बिछी हरीतिमा
वीणा की मधुर झंकार
किसलय पल्लव की प्रतिमा
सुंदर अलौकिक उपहार
उस चितेरे की अनोखी
कल्पना साकार हो तुम


  


संदीप मिश्र 'सरस'
-बिसवां,जिला-सीतापुर(उ प्र)


हमारी मातृभाषा है हमारा प्यार है हिन्दी।
सृजन की साधना है हृदय का उद्गार है हिन्दी।
हमारी भावना को सौंपती है शब्द का संचय,
सदा अभिव्यक्ति के सामर्थ्य का आधार है हिन्दी।


      
नाम , शिवानंद चौबे
पता,ग्राम महथुआ, पोस्ट औराई , जिला भदोही


_________________________


हिंदी गौरव भारत वर्ष का
स्वागत है अभिनंदन है ,
ये केवल भाषा ही नहीं है
माँ जैसी है वंदन है
_____________________
कोटि कोटि जन के
समप्रेषण का माध्यम जो
प्रेम भाव वात्सल्य है माँ सा
मुकुट मणि यह चंदन है
_____________________
चिंतनीय अस्तित्व पे
संकट आया है
बेटे तुझको भुला रहे माँ
हो गया कैसा बंधन है
_______________________
मैं तेरा तू मुझमे बसती
भाव संजोये हृदयो में ,
तन मन से है पूजा तेरी
फिर तेरा क्यों रुदन है
_________________________
गौरवशाली इतिहास कहे
तेरी गौरव गाथाओं को
शब्द शब्द की गहराई में
दिखता कैसा अपनापन हैं
______________________


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