कैलाश , दुबे ,

मत हो परेशां आज तू ये अनोखी जंग है ,


कुछ समय और सह ले भले ही जेब तेरी तंग है ,


कर भरोसा यार अपने आप पर भी ,


यहां पर हर आदमी तो इससे तंग है ,


जीवन है इसी का नाम पगले ये अनोखी जंग है ,


खाने से हैं हम परेशां तो क्या हुआ ,


लाकडाऊन के चलते सब यहां पर तंग है ,


जीत ले कोरोना को तू भी क्यों मत भंग है ,


कैलाश , दुबे ,


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