कैलाश , दुबे ,

कोरोना जब से आ गया ,


मुश्किल है निकलना बहार ,


बड़े प्रेम से हैं खा रहे ,


ले ले पड़ोस से उधार ,


बड़े प्रेम से भोग लगाते ,


रोज सबेरे पड़ोस उधार मांगने ही जाते ,


कह पंछी कवि राय कमाने हम क्यों जायें ,


जितना भी हो सके उधार मांग कर ही खायें ,



कैलाश , दुबे ,


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