कवि✍️डॉ. निकुंज

स्वतंत्र रचना क्र.सं. ३०७
दिनांकः २७.०४.२०२०
वारः सोमवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः 🤔परहित जीवन दान✍️


 मिथक  प्रपंची  लालची ,  संस्कार      लाचार ।
 गद्दारी    करता   वतन ,  बना   श्रेष्ठ      संसार।।१।।


 जन गण मन जयगान का , परहित मन संयोग।
 मृग द्विज देवासुर मनुज,  फँसे   प्रेममय   रोग।।२।।


 मानसरोवर   प्रेम  का  , शीतल जल अनमोल।
अवगाहन  कर हंस  सम , सद्भावन  मन  घोल।।३।।


कंचन संगति काँच की , मरकटि माणिक ज्योति।
सत्संगति  पा मनुज भी , ज्ञानवान   पथ  नीति।।४।।


शील त्याग गुण कर्म नित , मानुष की पहचान।
घीस  छेद  पीटे जले ,  शुद्ध  कनक  तू   मान।।५।।


नीति रीति सह प्रीति पथ , धीर ललित उदात्त।
कवि रचना शब्दार्थ रस  , अलंकार गुण जात।।६।।


रोग   शोक  मिथ्या  कपट , मुक्त  बने संसार।
कीर्ति मुकुट  माणिक बने , मानुष  प्रेम उदार।।७।।


मिटे रात्रि अब दीनता,कुसमित सुख मुस्कान।
प्रेम भक्ति अर्पण वतन, परहित  जीवन  दान।।८।।


सादर,
कवि✍️डॉ. निकुंज 🙏


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