कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

स्वतंत्र रचना क्र. सं. ३०२
दिनांकः २१.०४.२०२०
दिवसः मंगलवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः प्रेम-धन 
दुनिया   ऐसी  है    समां , लुटा   मुहब्बत  शान।
दो पल    की  ये  जिंदगी , लुट   जाएगा   मान।।१।। 
प्यार बड़ा    अनमोल है , बढ़ता  जितना  खर्च।
दान मान सुख दे अमन , मंदिर  मस्ज़िद    चर्च।।२।।
दीन हीन   या  धनी हो , हो  पादप  खग  जन्तु।
दुनिया सिंचित प्रेम जल ,  प्रमुदित बिना परन्तु।।३।।
निर्भय   निच्छल है  सहज , प्रेम भाष     उद्गार।
मानव     दानव    देव   भी , प्रेमातुर     संसार।।४।।
जीतो मन रिपु प्रेम से , समझ   प्रेम    ब्रह्मास्त्र।
प्रकृति प्रेम जीतो जगत् , सबका नेह    सुपात्र।।५।।
प्रेम सिन्धु अति गह्वरित,पाओ जित माणिक्य।
गौण  प्रेमरस   सामने , सुख सम्पद  आधिक्य।।६।।
प्रेम नाम बलिदान का , अर्पण  तन  मन  चित्त।
राष्ट्रप्रेम  जननी   धरा ,  हो    परहित    आवृत्त।।७।।
कोमल मधुरिम चारुतम , क्षमा  हर्ष  अभिधान।
शीतल शशि सम चन्द्रिका , प्रेमामृत    मधुपान।।८।।
छल प्रपंच   मिथ्या   विरत , प्रेम  सृष्टि  वरदान।
दुर्जय   पावन   प्रेम धन , लालायित    भगवान।।९।।
अमर सत्य बस  प्रेम है , अमर    गीत    संगीत।
बाँटो  पाओ   प्रेम  को  , अमोल   प्रेम  नवनीत।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना :-- मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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