स्वतंत्र रचना क्र. सं. ३०२
दिनांकः २१.०४.२०२०
दिवसः मंगलवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः प्रेम-धन
दुनिया ऐसी है समां , लुटा मुहब्बत शान।
दो पल की ये जिंदगी , लुट जाएगा मान।।१।।
प्यार बड़ा अनमोल है , बढ़ता जितना खर्च।
दान मान सुख दे अमन , मंदिर मस्ज़िद चर्च।।२।।
दीन हीन या धनी हो , हो पादप खग जन्तु।
दुनिया सिंचित प्रेम जल , प्रमुदित बिना परन्तु।।३।।
निर्भय निच्छल है सहज , प्रेम भाष उद्गार।
मानव दानव देव भी , प्रेमातुर संसार।।४।।
जीतो मन रिपु प्रेम से , समझ प्रेम ब्रह्मास्त्र।
प्रकृति प्रेम जीतो जगत् , सबका नेह सुपात्र।।५।।
प्रेम सिन्धु अति गह्वरित,पाओ जित माणिक्य।
गौण प्रेमरस सामने , सुख सम्पद आधिक्य।।६।।
प्रेम नाम बलिदान का , अर्पण तन मन चित्त।
राष्ट्रप्रेम जननी धरा , हो परहित आवृत्त।।७।।
कोमल मधुरिम चारुतम , क्षमा हर्ष अभिधान।
शीतल शशि सम चन्द्रिका , प्रेमामृत मधुपान।।८।।
छल प्रपंच मिथ्या विरत , प्रेम सृष्टि वरदान।
दुर्जय पावन प्रेम धन , लालायित भगवान।।९।।
अमर सत्य बस प्रेम है , अमर गीत संगीत।
बाँटो पाओ प्रेम को , अमोल प्रेम नवनीत।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना :-- मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
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