कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना क्र. सं. २९६
दिनांकः ०३.०४.२०२०
वारः शुक्रवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः 🤔नाशक हैं ये कुल वतन☝️
सारे    मन्दिर  बंद    थे , चलती  रही    ज़मात।
ज़ख़्म    बने  गद्दार  कुछ,किया   वतन   आघात।।१।।
दुश्मन   ये  इन्सानियत , लानत  इन   काफ़ीर।
खेले   जन   ज़ज़्बात से , कौमी  बेच    ज़मीर।।२।।
भूली  सब    सम्वेदना , नीति  प्रीति    आचार।
कोराना  का   यार   बन , माध्यम   है    संहार।।३।।
हाथ जोड़ करता वतन , बस। प्रधान अनुरोध।
स्वच्छ   गेह    रह  दूर  में , माने  नहीं  अबोध।।४।।
फैल रहा बन  संक्रमण ,अखिल राष्ट्र    गद्दार।
गज़ब धर्म मुल्ला वतन , तुला मनुज    संहार।।५।।
बनो सख्त खल दण्ड दो,दानवता    षडयन्त्र। 
शकुनी बन  भड़का  रहा, दुर्योधन अरु  तन्त्र।।६।।
खल कामी मतिहीनता, लोभ  झूठ रति कोप। 
नाशक  हैं  ये कुल वतन , करे मनुजता लोप।।७।।
कैसी  ये  हठधर्मिता , कैसा   ज्ञान  कुरान ।
मानवता का  नाश  हो , यह  कैसा   अरमान।।८।।
कसा शिकंजा तन्त्र का,खुलती दहशत चाल।
कोरोना  की   समस्या ,बनी  ज़माती    हाल।।९।।
कवि  निकुंज उद्घोषणा,कसो जमात नकेल।
देश-द्रोह  का  मुकदमा, ठोको   भेजो  जेल।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...