✍🏻 अप्रैल फ़ूल
भरी सभा में नेताजी ,
अप्रैल फूल बनाते है ।
विकास का आश्वासन देकर ,
वोट खिंच ले जाते है ।।
आज के कलयुगी मानव ,
अप्रैल फूल मनाते है ।
दो-दो चेहरे लेकर चलते ,
सबको बेवकूफ बनाते है ।।
भाई-भाई रोज लड़ते ,
अप्रैल फूल मनाते है ।
जमीन और दौलत के लिए ,
प्राण तक हर जाते है ।।
कलयुगी माँ-बाप देखो ,
अप्रैल फूल मनाते है ।
बेटी को जन्म से पहले ,
कोख में ही मरवाते है ।।
बेटे भी कम नही आज के ,
अप्रैल फूल मनाते है ।
बहु के आते ही माँ-बाप को ,
वृद्धाश्रम भिजवाते है ।।
दहेज लोभी सास ससुर भी ,
अप्रैल फूल बनाते है ।
बहु को मार देते है और ,
आत्महत्या दर्ज करवाते है ।।
भेड़िये रूप में वहसी दरिंदे ,
अप्रैल फूल बनाते है ।
बहला फुसला कर बच्चियो को ,
हवस का शिकार बनाते है ।।
" कवि जसवंत " करता है अर्जी ,
अप्रैल फूल मत बनाओ ।
अपनी क्षणिक ख़ुशी के लिए ,
दुसरो को दुःख मत पहुँचाओ ।।
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