मंजू किशोर 'रश्मि'

हो रहा है मन परेशां बहुत ।
कहां छिपे हो,हे ! मन भावन ।।


यहाँ चाँदनी सहमी अकेली।
व्याकुलता की बनी पहेली।।


आओ मिलकर प्रेम पखारो ।
चन्द्र बदन तारों में छिपकर।।


चांदनी की ना तुम राह निहारो।
अलौकिक  ये रात न  बुहारो‌।।


ढल ना जाए बिन मिलन के।
मत ना मन को क्लेश पे वारो।।


आओ 'राम' रंग यौवन पर वारो‌।
घड़ी मिलन की बीती जाती।।


नयन भर तन-मन निहारो।
तम पर भारी मधुर मिलन हो।।


चन्द्र-चाँदनी के भाग्य पर ना।
विरह संताप के गीत लिखे हो ।।


              मंजू किशोर 'रश्मि'


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