निधि मद्धेशिया कानपुर

प्रेम


प्रेम एक लोचा है
कब किससे हो 
किसी ने सोचा है
हुआ मुझ से था 
रोग को 
न छोड़ा साथ अभी तक
जैसे राधा में कृष्ण घुले
मुझमें रहे रोग मनचले
विवाह उपराँत औषधि 
से हुआ गठबंधन
पवित्र भावो को घिस 
कर किया चंदन
उसी चंदन से जला 
भविष्य का आँचल
निकट भय के हुई, 
सिसकता रहा प्रांजल...



निधि मद्धेशिया
कानपुर


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