निशा"अतुल्य"

धनुष पिरामिड
24.4.2020
*भूख*


ये
भूख
देखती
नही कभी
कौन है यहां
अमीर गरीब
लगे समान रूप
समान व्यवहार
फर्क इतना है
नही लगती
अमीरों को
बेहाल है
गरीब
भूख
से।


है
दाता
कृषक
देता अन्न
मिटाता भूख
बहाता पसीना
उगाता है फसल
देवता तुल्य स्थान
नमन है सदा
देता जीवन 
रह कर
स्वयं से
भूखा
ये।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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