निशा"अतुल्य"

हाइकु
29.4.2020


*प्रभु प्रणाम*


प्रभु प्रणाम
वंदन चंदन धूपदीप
करो स्वीकार 


त्राहिमाम है
क्यों कर जग सारा 
करो उद्धार।


निर्मल मन
दो भक्ति शक्ति ज्ञान
जग कल्याण।


कठिन घड़ी
पुकार रहे द्वार
दे दो सयंम ।


निर्गुण तुम
या सगुण हो तुम
भटका मन।


करो निदान
है ईश्वरीय सत्ता
मन ये जाने ।


तर्क वितर्क
है सभी निरर्थक
तुम अनन्त।


भटका मन
चाहे अब निदान
आया शरण ।


साँसों का लेखा
है तुम्हारे ही पास
सब ये जाने।


आई शरण
प्रभु करो उद्धार 
दो मुझे ज्ञान ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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