निशा"अतुल्य"
देहरादून
भाव विभोर
16.4.2020
काव्य रंगोली
आना तेरा मेरे जीवन में
अनुभूति ख़ुद की ख़ुद से
कठिन समय बीता जैसे
पीड़ा सह गई सारी कैसे ।
आकर बाहों में मेरी प्रियवर
किया मेरे मन को भाव विभोर
तुम जीवन की अनुपम कृति मेरी
सप्तपदी का तुम उपहार ।
नन्ही नन्ही सूरत तेरी
भोली सी मुस्कान खिले
तू मेरा ही प्रति रूप दिखे है
अंग अंग में तू ही सजे।
भाव विभोर हो मैं निस दिन
तेरी क्रीड़ा को देखूँ
मिलता मन को सुख अनोखा
तुझ को जब मैं अंक में भर लूँ।
तू मेरा खिलता उपवन है
तुझसे महके जीवन सारा
रहे सदा उन्नत भाल ये तेरा
विश्व में सदा रहे तेरा नाम ।
आशीष रहे सदा तुम पर
सभी पित्र बड़ों के साथ
प्यार और सम्मान मिले सदा
रहे मित्रों,अपनो का साथ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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