निशा"अतुल्य"

चलने का नाम जिंदगी 
15 .4.2020


चल मन चले दूर कहीं
जहाँ कुछ पल हो मेरे अपने
कुछ बीती बातें कुछ छूटी यादें
जो है अंतर्मन में दफ़न कहीं ।
वो सुखी सी गुलाब की पंखुरी 
बन्द है किसी किताब में आज भी कहीं
छोड़ आई थी जिसे गुजरे पल की तरह
आज फिर याद आई उसकी बड़ी।
चल मन चलने का नाम जिंदगी 
उमड़ते घुमड़ते यादों के बादल 
आज बरस जाएं शायद कहीं
सूख गए थे जो बीते बरसों में 
आँखों में कहीं।
वो वहीं ठिठके खड़े हैं अब भी 
उसी चौराहे पर 
जिसे अकस्मात बिन बताये
छोड़ आई थी मैं युहीं ।
चल मन चलने का नाम जिंदगी
आज ढूंढ लूं उन्हीं गुजरे लम्हों को 
जो खड़े हैं अब भी इंतजार में वहीं 
चल मन चलने का नाम जिंदगी।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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