निशा"अतुल्य"

जीत
10.4.2020


मन के जीते जीत है 
मन के सोचे हार 
मन से तू ना कभी हारना
लेगा फिर दुनिया तू जीत।


बीती बातें यादें मेरी 
जब तब आती मन के द्वारे 
विचलित करती कभी कभी वो
और कभी आल्हादित करती ।


सपने जो आँखों मे पलते 
पूरे करने की कोशिश भी
मुश्किल राह भले मिले 
राहें आगे चलती जाती ।


थकना मत तू पथिक कभी भी
मंजिल अब भी वहीं खड़ी
इस राह जो नही मिली तो 
राह बदल लें तू अपनी ।


चलते रहना नही हारना 
जीवन की है उप्लब्धद्धि बड़ी
मंजिल स्वयं पास आएगी
रखना चलते हुए आस बड़ी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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