संकल्प
7.4.2020
मनहरण घनाक्षरी
स्वर्ग नर्क सब यहीं
कर्म हो सद्भाव सभी
परहित की भावना
अब मन रखिये।
कर्म बस जाए साथ
रहे नही कुछ हाथ
करनी अपनी भोग
संसार से जाइये ।
वंश उनका ही चले
बड़ो का जो मान करे
रहे सभ्यता संस्कृति
संकल्प ये धारिये ।
धरा बने स्वर्ग जैसी
न हो बात नर्क जैसी
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये
भावना ही रखिये ।
निशा"अतुल्य"
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