निशा अतुल्य

आज की लघु कथा
मुख्यमंत्री का भाषण सुनने के बाद शर्मा जी के मन में विचार आया कि वे भी मुख्यमंत्री कोष में सहायता प्रदान करेंगे|
 उन्होंने अपने बेटी से कहा बिटियाँ मेरा चेक बुक ले आना।
 पापा किस को चेक दे रहें हैं आप?  बिटियाँ ने पूछा।
 अरे_ मुख्यमंत्री कोष के लिए सहायता देना   चाहता हूंँ।
 हांँ पापा यह लो चेक बुक।
 शर्मा जी चेक लिख रहे थे,तब उनकी बेटी ने कहा पापा आपसे एक बात कहूंँ,
 हमारी गंगाबाई को इस बार छुट्टी की वजह से मम्मी ने पगार नहीं दी।
 क्या हम उसको पैसे नहीं दे सकते?
 अरे? शर्मा जी ने कहा,क्यों नहीं दी?
 मुझे यह बात नहीं मालूम थी।
 उन्होंने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा
 तुमने गंगा को पैसे नहीं दिये?
 उनकी अर्धांगिनी ने सफाई दी"अरे उसके पैसे हमारे पास अटके रहेंगे,तो वह काम पर आएगी,वरना उसका कोई भरोसा नहीं है|कहीं और काम लग जाएगी तो,मुझे मुश्किल हो जाएगी, इसलिए मैंने उसके पैसे रोक लिये ।
" पर मम्मी उनका खर्चा कैसा चलेगा" बिटिया ने कहा।
" सही है,तुम्हारे पास नंबर हो तो उसे बुला लो।शर्मा जी ने कहा|
 मिसेज शर्मा ने फोन करके गंगा को बुलवा लिया।
 गंगा हाथ बांधे खड़ी थी।
 शर्मा जी ने अपनी श्रीमती से पूछा "कितना 3000 देती हो ना इसको? 
हाँ, मिसेज शर्मा ने कहा। लेकिन अभी तो 10 दिन ही काम की है|
 "ठीक है" कहते हुए शर्मा जी ने ₹3000 निकाल कर के गंगा को देने बिटियाँ के हाथ में थमा दये। 
"बंद खत्म होने पर आ जाना" 
गंगा के आंखों में खुशी के आंसू थे।
 उसने बिटिया से ऐसे कहा की शर्मा जी को सुनाई दे "अच्छा हो गया पैसे मिल गये नहीं तो आज घर में खाने को अनाज नहीं था, राशन का चावल भी खत्म हो गया,बच्चों  की स्कूल भी बंद है,तो स्कूल से भी खाना नहीं मिल रहा है।
 बिटियाँ सोच रही थी मुख्यमंत्री कोष में पैसा जमा करने के साथ,अच्छा होगा अगर वे सामने के झुग्गी झोपड़ी में राशन दे आय।
 उसने अपनी बात पापा से कहीं, और शर्मा जी को वह बात भाग गई |
 उन्होंने बिटिया को चाबी दे कर 5000 रु निकालने कहा,और किराने की दुकान वाले को फोन किया॥ 
स्वलिखित, डॉ श्रीमती कमल वर्मा


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