निशा"अतुल्य"

साया
सायली
1,2,3,2,1 वर्णिक विधा


साया
चलता साथ
नही छोड़ता कभी
तन्हाइयों में
भी।



घेरते
जब अंधेरे
मुझे सरेराह दिखता
साया लैम्पपोस्ट 
नीचे।


ऊर्जा
देता सोचने
की शक्ति देता
सदा मुझे
साया


रोशनी
जरूरी आत्मविचार
रहेंगे साथ सभी
ख्यालों में 
चाहे।


मेरा
साया हमदम
नही छोड़ता साथ
ग़ुरबत में
भी ।


साया
होता जीवन 
जब तक रहता
साथ सदा
सबके।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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