ब्यथा
हमे मत पुछिये कि
आजकल क्या कर रहे हो
हम जीवन की बगिया में
आंसू बो रहे थे
अब कर्म के धागों से
फटा भाग्य, सी रहे है
अपने किये,पर पश्चाताप
अब भी नहीं कर रहे है
बस अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे है
जिस देश में पानी,पैसे से मिलता है
वहां लोगों को,हर चीज
मुफ्त में चाहिये
लोग समाजवाद को,
सड़को पर ढूंढ रहे है
और समाजवाद असलियत में
हमारी दुकान में बंद हैं
संकट की घड़ी में भी देखो
मुनाफाखोर,मुनाफा खा रहा है
ग्राहक पीला और दुकानदार लाल है
बस अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे है
एक महानुभाव,हमारे घर आया
मैंने उनका हाल पूछा
तो आंसू भर लाया
हमने कहा,तू हिम्मत न हार
जबकि वैसा ही है,मेरा भी हाल
पल में जीवन,पल में मृत्यु
पल की महिमा
कोई समझ नहीं पाया
संकट की घड़ी में जो
हौसला नहीं खोया,सचमुच में
आज वही है,सच्चा इंसान
अपने किये पर पश्चाताप
अब भी नहीं कर रहे है
बस अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे है
नूतन लाल साहू
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