प्रखर दीक्षित फर्रुखाबाद

*नीरवता का गान*


नीरवता ने सुर साधे प्रिय
सांय सांय का कोलाहल था
निपट विपिन सी पंथ उपत्यिका
सघन कालिमा ज्यों परिचित सी
स्वराज कोकिला मौन उदासी
आगत लेख सुनाने लगी है।


जिधर देखिए दृश्य भयावह
मर्त्य अमर्त्य की उपापोह वश
दग्ध ह्रदय में प्रबल ज्वाल घन
दर्द दवा बन मौन थकित सा
निकष त्रास ने लिखी वेदना
टूटा बिखरा हारा जीवन
फिर भी यह जीवटता अपने
पियरे छंद गाने लगी है।।


मानवता विह्वल आशंकित
भग्न स्वप्न हैं सूनी आंखें
ढ़लक गाल पर सूखे आँसूँ
आह इमारत स्वयं लिख गए
वो मदांध क्या जाने पीड़ा
उन्नति अवनति कि जादूगर जो
चीत्कार आरती स्वर गुंजित
कब भव से यह पाप छंटेगा
मीत बलवती आशा पावन
साहस कि परचम कर थामें
नवजीवन स्वयं मनाने लगी है ।।


प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद


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