प्रिया सिंह

मैं बुरा नहीं तो मुझे बनाते क्यों हो
ऐ जमाने वालों मुझे सताते क्यों हो


फरेब बहुत भरा है तेरे अंदर मानव
नजर फिर खुद से भी हटाते क्यों हो


तुम्हे फर्क नहीं पड़ा मेरे चले जाने से
आज रूक कर राह में मनाते क्यों हो


मैं रूठते रूठते पत्थर का हो गया था
अब बेवकूफी पर अपने हंसाते क्यों हो


पाप संभाल कर गठरियों में रखे हो तुम 
फिर सारे पुण्य को नाले में बहाते क्यों हो


जग से परेशान हूँ और तेरे ताने-बाने से
स्वाद इश्क का चखा कर रूलाते क्यों हो


मुझे नहीं खबर दुनिया भर की बातें 
मुझे असलियत आखिर बताते क्यों हो


अदावत अदालत पहुंच जायेगी देखना
अदू पर अपना अधिकार जताते क्यों हो


जिन्दा थे तो तुम ने नींद पूरी नहीं होने दी
आज मेरे बिस्तर पर फूल चढाते क्यों हो



Priya singh


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...