🐰आओ चलें प्रकृति की ओर🐰
आओ चलें प्रकृति को ओर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
जिसकी न तो सीमा कोई,
और न कोई छोर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
फूलों संग हम भी मुस्काएॅ॑।
गीत मधुर कोयल संग गाएॅ॑।
कभी शांत बैठें बगुले सा,
करें न कोई शोर।
आओ चले प्रकृति की ओर।
आओ चले प्रकृति की ओर।
चिड़ियों सा हम चहकें भाई।
उड़ें गगन मन पंख लगाई।
उठ जाएॅ॑ चिड़ियों के जैसे,
होते ही हम भोर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
आओ चले प्रकृति की ओर।
झरने को हम मीत बना लें।
बैठ पास हम भी मुसका लें।
बहे ज़िंदगी बन जलधारा,
करें न चिंता घोर।
आओ चले प्रकृति की ओर।
आओ चले प्रकृति की ओर।
पर्वत जैसे ऊॅ॑चे सपने।
रहें सदा आॅ॑खों में अपने।
पूरे हों या ना हों सारे,
बने नहीं हम चोर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
चमकें नभ बन चांद सितारे।
लगते हैं जो सबको प्यारे।
बन सूरज तम दूर करें हम।
भैया निश-दिन भोर।
आओ चलें प्रकृति की और।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
चलें हवा बन मंद सुगंधित।
कर दे जो मन को आनंदित।
तूफां बन कर चलें कभी ना,
नाश करे जो घोर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
उपजाऊ धरती बन जाएॅ॑।
पेट सभी का हम भर पाएॅ॑।
पा आशीष भूख पीड़ितों का,
नाचेगा मन मोर।
आओ चले प्रकृति की ओर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
बादल हम भी वो बन जाएॅ॑।
जो धरती की प्यास बुझाएॅ॑।
हमें नहीं बनना वो बादल,
जो बरसें घनघोर।
आओ चलो प्रकृति की ओर।
आओ चलें प्रकृति की ओर।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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