*# काव्य कथा वीथिका #*-95
( लघु कथा पर आधारित कविता)
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सो सच्ची सच्ची कहता हूँ ।
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काव्य कथा वीथिका मेंं ,
जीवन का हर पुट रहता है ।
मैने उस भारत मेंं जन्म लिया,
जो भारत गावों मेंं रहता है ॥
मेरी लकड़ी की पटरी थी,
संग मेंं जूट का टाट भी था ।
सुन्दर सुलेख की कापी थी,
अच्छा खासा ठाट भी था ॥
बचपन मेंं पेन को क्या जानू ,
सरकंडे से हम लिखते थे ।
दुनियाँ हम बना दिया करते,
जिसे नक्शा भूगोल का कहते थे ॥
इतिहास और विज्ञान हमें,
हिन्दी मेंं पढ़ाया जाता था ।
वह शक्ति हमें दो दयानिधे ,
प्रार्थना कराया जाता था ॥
इंगलिश का दर्शन हमको,
कक्षा छः मेंं ही हो पाया ।
इंगलिश मेंं अब भी कच्चा हूँ,
गई नही इसकी साया ॥
ऐसा मत समझो अज्ञानी था,
स्नातक विज्ञान का छात्र मै था ।
बलिया के टी डी कालेज का,
एक सुयोग्य पात्र मै था ॥
यद्यपि था ठेठ गांव वाला,
पर ला पढ़ने लखनऊ आया ।
तब नशा राजनीति का था,
कारण बलिया का मै जाया ॥
बचपन से कविता लिखता था,
पर नही कवि मै बन पाया ।
पांडुलिपियाँ बनी कई लेकिन,
लेकिन पुस्तक ना बन पाया ॥
चिकित्सा संवर्ग का छात्र बना,
फार्मेसी की खास पढ़ाई की ।
जीवन अर्पित इसके संग की,
इसके ही साथ सगाई की ॥
यह क्षेत्र प्रेम करुणा का है,
सेवा करने का अवसर है ।
साहित्य साधना अभिरुचि है,
पर स्वास्थ सेवा सर्वोपरि है ॥
था कंप्यूटर का ज्ञान नही,
पर चाहत अन्तर्मन की थी ।
अक्सर बेबस हो जाता था,
कारण उम्र बावन की थी ॥
एक मेल लिखाने के खातिर,
घंटो लाइन मेंं रहता था ।
आदर्श, शशांक ही सुनते थे,
भईया बाबू मै कहता था ॥
लेकिन नसीम ने सुन ली थी,
अब कंप्यूटर भी पहचान मेंं था ।
मै अपने फील्ड का मास्टर था,
केवल इसका ही ज्ञान न था ॥
जीवन मेंं मेहनत करके मैने,
काफी कु़छ शोहरत पाई है ।
पर इंगलिश, कंप्यूटर के कारण,
हर बार हुईं खिचाई है ॥
यह हास्य व्यंग्य सा लगता है़,
पर शतप्रतिशत सच्चाई है़ ।
चाहे कोई उपहास करे,
मेहनत के दम पर पाई है़ ॥
माँ सरस्वती ने शक्ति दी है़,
तॊ कथा वीथिका लिखता हूँ ।
अब असली सच सब देख रहे,
सो सच्ची सच्ची कहता हूँ ॥
राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 13-04-2020
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