*# काव्य कथा वीथिका #*-88
( लघु कथा पर आधारित कविता)
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ये रिश्ता , प्रकृति और मानव का ।
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हे नागफनी !
तूं रूप बदलकर,
क्यों हँसती है़ ।
तेरे तन पर कांटे हैं ,
काँटों मेंं मस्ती है़ ॥
तेरी मस्ती मेंं रूप तेरा ,
न्यारा देखा ।
तुने पत्ते धारे ,
पुष्प भी प्यारा देखा ॥
शायद मेरी नजरों मेंं,
कु़छ अंतर आया ।
शायद मेरा घर ,
मेरा आंगन भाया ॥
कांटे फ़ूलों मेंं बदले ,
या मौसम बदला ॥
क्या, कु़छ खुशियाँ आई,
या गम बदला ॥
तेरा मेरा रिश्ता ,
माना सच मेंं नाजुक था ।
शायद कुछ गलती की थी,
इस कारण भौचक था ॥
प्रकृति और मानव का,
रिश्ता बहुत पुराना है़ ।
मन की गहराई को समझा,
यह पक्का याराना है़ ॥
यदि यह यारी,
फिर से कायम होगी ।
सच मानो ,
सारी बीमारी गायब होगी ॥
राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 06-04-2020
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