राजेश कुमार सिंह "राजेश"

*# काव्य कथा वीथिका #*-93
( लघु कथा पर आधारित कविता)
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हौसले बनाये रखो जी ...
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नीरसता को मत आने दो, 
         सरस भाव मन मेंं  घोलो । 
आशा का दीप जलाओ जी, 
      मुंह से अच्छा अच्छा बोलो ॥ 


अच्छा बोलो, अच्छा सोचो, 
     इसका कु़छ मजा अजूबा है ।
सुंदर लिखना, सुन्दर कहना,
      यह भी जीवन की  पूजा है़ ॥ 


 उनको देखो, उनसे सीखो , 
             जो भोजन देने वालें हैं। 
जो दीन दुःखी के लिए खड़े,  
        लेकर के मधुर निवाले हैं ॥ 


इस असीम  सुख की तुलना , 
  क्या भौतिक सुख से हो सकता । 
इस अनुपम  सुख को सोचो जी ,   
       हर कोई उसको पा सकता ॥ 


जीवन की चिंता को चिता बना, 
           नाहक ही मरे जा रहे हो । 
नीरसता को जन्मा कर के, 
          क्या कु़छ नया पा रहे हो ॥  
 
कोयले की बड़ी खदानों से, 
               हीरा  पैदा होते देखा । 
संघर्षो से निकला मैने , 
          पथरीला सोना भी देखा ॥ 


हम उन पूर्वज के वंशज है़, 
         जो संघर्षो से देश बनाते हैं । 
नालंदा तक्षशिला की मिट्टी से , 
          एक भारत नया  बनाते हैं ॥ 


मैने कई बच्चोँ को देखा, 
           जो सेवा को बेताब दिखे । 
वे आगे बढ़कर आये हैं , 
     दुखियों के बीच मेंं आज खड़े ॥ 


कु़छ पीड़ित मानवता खातिर, 
             दिन रात जूझते रहते है । 
ऐसे इस कर्मयोगियों को ,
          हम ईश्वर की संज्ञा देते हैं ॥ 


बस एक खास जरूरत है़, 
              हौसले बनाये रखो जी । 
ढेरों खुशियाँ हैं अब भी शुमार, 
     धीरू और सोम से सीखो जी ॥ 


राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 11-04-2020


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