*# काव्य कथा वीथिका #*-93
( लघु कथा पर आधारित कविता)
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हौसले बनाये रखो जी ...
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नीरसता को मत आने दो,
सरस भाव मन मेंं घोलो ।
आशा का दीप जलाओ जी,
मुंह से अच्छा अच्छा बोलो ॥
अच्छा बोलो, अच्छा सोचो,
इसका कु़छ मजा अजूबा है ।
सुंदर लिखना, सुन्दर कहना,
यह भी जीवन की पूजा है़ ॥
उनको देखो, उनसे सीखो ,
जो भोजन देने वालें हैं।
जो दीन दुःखी के लिए खड़े,
लेकर के मधुर निवाले हैं ॥
इस असीम सुख की तुलना ,
क्या भौतिक सुख से हो सकता ।
इस अनुपम सुख को सोचो जी ,
हर कोई उसको पा सकता ॥
जीवन की चिंता को चिता बना,
नाहक ही मरे जा रहे हो ।
नीरसता को जन्मा कर के,
क्या कु़छ नया पा रहे हो ॥
कोयले की बड़ी खदानों से,
हीरा पैदा होते देखा ।
संघर्षो से निकला मैने ,
पथरीला सोना भी देखा ॥
हम उन पूर्वज के वंशज है़,
जो संघर्षो से देश बनाते हैं ।
नालंदा तक्षशिला की मिट्टी से ,
एक भारत नया बनाते हैं ॥
मैने कई बच्चोँ को देखा,
जो सेवा को बेताब दिखे ।
वे आगे बढ़कर आये हैं ,
दुखियों के बीच मेंं आज खड़े ॥
कु़छ पीड़ित मानवता खातिर,
दिन रात जूझते रहते है ।
ऐसे इस कर्मयोगियों को ,
हम ईश्वर की संज्ञा देते हैं ॥
बस एक खास जरूरत है़,
हौसले बनाये रखो जी ।
ढेरों खुशियाँ हैं अब भी शुमार,
धीरू और सोम से सीखो जी ॥
राजेश कुमार सिंह "राजेश"
दिनांक 11-04-2020
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